For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मफ़लरधारी (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

नेता, जनता और कुर्सी खेल के सामान हैं। जी हां, मदारी का खेल। नकलची बंदर-बंदरिया का खेल। तमाशबीन जनता का खेल। सादे या रंगीन मफ़लरधारी नेताओं का खेल। मीडिया द्वारा घेरे जाने का खेल। लेकिन यहां बंदर-बंदरिया नहीं नाच रहे हैैं। मफ़लरधारी नाचता हुआ थक कर 'ज़मीन' पर बैठा हुआ माथे पर हाथ धरे जनता को निहार रहा है। रस्सी से बंधी कुर्सी रूपी बंदरिया सजी धजी हुई है। ऐसे ही बंधी हुई जनता रूपी बंदर चीख कर कुछ कहने की कोशिश कर रहा है।

"अब कितना नाचोगे? मेरा मोह छोड़ दो, मुझे मुक्त कर दो! कुर्सी ने मफ़लरधारी पर अपना हाथ मारकर कहा।

वह कुर्सी को निहारने लगा। कितने जतन से इस जनता के लिए, इसी जनता के द्वारा यह कुर्सी उसने हासिल की थी। फिर वह जनता को निहारने लगा।

"उस पर भरोसा मत करो, वह इस देश की जनता है, दोगली जनता!" कुर्सी ने कमर मटका कर कहा। मफ़लरधारी को उसकी बात कुछ सही लगी। जनता मफ़लरधारी की हालत देख 'आह' भर रही है या 'वाह' कह रही है, यह तो मीडिया तय करेगा। मफ़लरधारी मीडिया की तरफ़ मुख़ातिब हो या मीडिया उसकी तरफ़। यह उलझन कुर्सी भली-भांति समझ रही है। मीडिया कवरेज में लगा हुआ है।

"थोड़ा जनता के हिसाब से नाचो, और थोड़ा मीडिया के हिसाब से!" यह कहते हुए कुर्सी ने फिर से अपना हाथ मारकर मफ़लरधारी से कहा -"हो सके तो असली मदारी बन कर मीडिया को अपने हिसाब से नचा लो! मैं तुम से नहीं, जनता से बंधी हुई हूं और जनता मीडिया से!"

मफ़लरधारी अब भी माथे पर हाथ धरे हुए है, उसे कुछ नया सा सूझ रहा है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 997

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 29, 2017 at 12:16am
मेरी इस लघुकथा को पसंद करने और मेरी हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहब और जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 29, 2017 at 12:14am
दृश्य शाब्दिक करते हुए पाठकों को बांधने के लिए ये पंक्तियां आरंभ में ली गई हैं। बढ़िया सुझाव और हौसला अफज़ाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय कल्पना भट्ट जी।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 27, 2017 at 7:58pm
मुहतरम जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब ,अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 27, 2017 at 5:00pm

आदरणीय शहजाद जी 

नेता, जनता और कुर्सी खेल के सामान हैं। जी हां, मदारी का खेल। नकलची बंदर-बंदरिया का खेल। तमाशबीन जनता का खेल। सादे या रंगीन मफ़लरधारी नेताओं का खेल। मीडिया द्वारा घेरे जाने का खेल। लेकिन यहां बंदर-बंदरिया नहीं नाच रहे हैैं। मफ़लरधारी नाचता हुआ थक कर 'ज़मीन' पर बैठा हुआ माथे पर हाथ धरे जनता को निहार रहा है। रस्सी से बंधी कुर्सी रूपी बंदरिया सजी धजी हुई है। ऐसे ही बंधी हुई जनता रूपी बंदर चीख कर कुछ कहने की कोशिश कर रहा है।

क्या इसको किसी और तरीके से लिख सकते है ? एक ही भाव है नाचना जो अलग अलग पात्र कर रहे हैं | थोडा गर कसावट आ जाये कथा में तो और निखर जाएगी | 

लग रहा है जैसे कोई सूत्रधार कहानी पढ़ रहा है | सादर | 

Comment by Samar kabeer on August 27, 2017 at 2:33pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,मुझे तो ये लघुकथा अच्छी लगी,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 27, 2017 at 8:44am
मेरी इस लघुकथा पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय नीता कसार जी व आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 27, 2017 at 8:43am
मेरी इस लघुकथा पर समय देकर हौसला अफज़ाई व अपनी राय से अवगत कराने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता जी। सुझाव पर ध्यान दूंगा।
Comment by Nita Kasar on August 25, 2017 at 8:09pm
मफलरधारी की क़लई खोलने में मीडिया की प्रमुख भूमिका होती जनता जानती है सब ।बधाई कथा के लिये आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।
Comment by Mohammed Arif on August 24, 2017 at 11:02pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, बहुत ही अच्छा कटाक्ष । नेता (मफलरधारी),क्षजनता और का खेल निराला है । इस दंगल का आँखों देखा हाल मीडिया दिखा रहा है । मीडिया भी बिकाऊँ है । वह झूठ-सच , मनगढ़ंत जो चाहे सो दिखा रहा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 24, 2017 at 10:13pm
रचना का विषय निस्सन्देह उम्दा चुना है और प्रस्तुतिकरण भी अच्छा बना है लेकिन रचना एक कथ्य से अलग एक सूत्रधार के संदेश नुमा भाव में ढल गयी है। बरहाल उम्दा प्रयास के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करे भाई शेख उस्मानी जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
5 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
5 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
5 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
6 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
9 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
10 minutes ago
Sushil Sarna posted blog posts
40 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
46 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
16 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service