For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भैया मेरे (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

पोस्टमेन भी उस समय मुस्कराकर एक अजीब सी ख़ुशी हासिल कर रहा था, जब चिट्ठी हाथ में थामते हुए सलीम मुस्कराया। उसे पता था कि इस दौर में भी इस घर में अगर चिट्ठी आती है तो बहिन की चिट्ठी हुआ करती है। सलीम को बहुत दिनों बाद बहिन का ख़त मिला था। बीवी से नज़रें बचाकर जब उसने ख़त पढ़ा, तो अपने आंसुओं को रोक नहीं सका। आंसू पोंछ कर फिर से उसने वह ख़त पढ़ा। दो भाइयों की इकलौती बहिन यास्मीन के ख़त की कुछ पंक्तियां उसे झकझोर रही थीं :

"हर बार की तरह इस बार भी रक्षा-बंधन का दिन मैंने तुम दोनों के साथ गुजारा। राखियां बांधीं। तुम दोनों के पसंद के कपड़े पहन कर, तुम दोनों के पसंद की मिठाइयां खिलाईं और खाईं। अल्लाह तआला सब लड़कियों को मेरे जैसा शौहर दे। हां, तुम्हारे दूल्हा भाई बिना किसी एतराज़ के इस बार भी पंडित अवस्थी चाचाजी के घर मुझे ले गये थे। उनके दोनों बेटों अवध और अभिषेक में मुझे तुम दोनों नज़र आते हो। आज भी मेरा कितना ख़्याल रखते हैं वे दोनों, तुम दोनों की तरह! शुक्र है अब्बूजान का, जो हमें अच्छी तहज़ीब तो सिखा गये। और सुनो रत्ती भर भी परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। ई़द, जन्मदिन या शादी की सालगिरह पर मुझे या दूल्हा भाई को कोई गिफ़्ट वगैरह देने या मुझे लेने आने की कोई ज़रुरत नहीं है। मुझे यहां कोई तकलीफ़ नहीं है, किसी बात की कोई कमी नहीं है। मैं तुम दोनों की माली हालत और दीगर परेशानियों से वाक़िफ़ हूं। सब मेरी वज़ह से हुआ। मेरी शादी और दहेज़ के लिए पैसे जमा करने के चक्कर में वालिद साहब तुम दोनों को ढंग से पढ़ा नहीं पाये। लेकिन उनकी दूर की सोच की वज़ह से सलीम तुम मिस्त्री तो बन सके और अरशद इतनी उर्दू और अंग्रेज़ी तो सीख सका कि गृहस्थी किसी तरह चला लेते हो। सच कहूं, तो तुम दोनों भाइयों और अब्बूजान के मुझ पर बहुत अहसान हैं। भाइयों के फर्ज़ आज भी तुम दोनों निभाना चाहते हो, जानती हूं। लेकिन एक बहिन के भी तो कुछ फर्ज़ होते हैं न; जब भी हमारी किसी तरह की मदद की ज़रूरत हो, बेझिझक बताना। ....... यह ख़त कूरिअर से भेजने वाली थी, लेकिन सलीम भाई की हिदायत याद आ गई। फ़िज़ूल ख़र्च मत करो। जानती हूं, तुम दोनों फोन के खर्चे भी सोच समझ के ही करते हो। रक्षा-बंधन के दिन मैंने तुम्हें फोन किया था, लेकिन लगा नहीं। इसलिए ख़त ही लिख रही हूं। ..............।"


तभी किसी की आहट सुन कर सलीम ने ख़त ज़ेब में रख लिया।

"सुनो, आज शाम तक मेरे भाईजान और अम्मी वग़ैरह यहां आने वाले हैं, फोन आया है। रात के खाने का कुछ अच्छा सा इंतज़ाम कर देना।" सलीम अपनी बीवी के इन लफ़्ज़ों को कानों से सुन रहा था, लेकिन उसकी निगाहें बीवी के हाथ में फंसे मोबाइल फोन पर टिकी हुई थीं।

(मौलिक व अप्रकाशित)
(७ अगस्त, २०१७)

Views: 708

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 8, 2017 at 10:10pm
बहुत बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहब मेरी इस रचना पर अपनी राय से वाक़िफ़ कराने व सार्थक मार्गदर्शन के लिए। आपकी दोनों बातें बिल्कुल सही व महत्वपूर्ण हैं।
१- मुझे अभी लघु रचना में लघुकथा कहना सीखने में बहुत वक़्त लगेगा। कोशिशें जारी हैं। इस रचना की बात करें, तो रक्षा-बंधन पर्व के दिन ही अपने कुछ अनुभव समेटकर यह रचना मात्र दो घंटों के भीतर लिख कर पोस्ट कर दी थी। जबकि गुणीजन कहते हैं कि एक लघुआकार सार्थक सशक्त लघुकथा पकने में कम से कम एक महीना और अधिक से अधिक कुछ महीने तो लगते ही हैं। अपनी दिनचर्या के साथ ऐसा कर पाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है। इसलिए मेरे द्वारा पोस्ट की गई रचनाओं पर कभी न कभी और समय देकर उन्हें निखारने/पकाने की कोशिश करूंगा। इस विषय पर मैं भी वरिष्ठजन की टिप्पणियों व मार्गदर्शन की प्रतीक्षा करता हूं।

२- पिछले तीन महीनों से अपने मोबाइल फोनों संबंधित परेशानियों की वजह से ओबीओ पर सभी विधाओं व आयोजनों की रचनाओं पर टिप्पणियां नहीं कर पा रहा हूं। मैं गूगल क्रोम पर ओबीओ चलाता हूं। इस पर टिप्पणियां टाइप करने में अक्सर परेशानी हो रही है। लिखो कुछ और टाइप कुछ और होता है।कर्सर कहीं का कहीं पहुंच जाता है या कहीं पर अड़ जाता है। कुछ समय सोशल मीडिया के लघुकथा समूहों पर भी दे रहा हूं। वैसे मोबाइल फोन सही होते ही आपकी शिक़ायत दूर करने की कोशिश करूंगा।

पुनः मार्गदर्शन प्रदान करने व हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया।
Comment by Samar kabeer on August 8, 2017 at 6:57pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा और सन्देशप्रद लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आपके लिए मेरे पास दो सवाल हैं,इस उम्मीद पर लिख रहा हूँ कि आप अन्यथा नहीं लेंगे ।
1-पहले आप पटल की सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रया देते थे,आजकल आप लघुकथाओं तक ही सीमित क्यों हो गए हैं ?
2-लघु का अर्थ होता है 'छोटी'लघुकथा यानी छोटी कथा, इसके बरअक्स देखता हूँ कि बड़ी बड़ी लघुकथाएं यहाँ भी और आयोजन में भी देखने को मिलती हैं,मिसाल के तौर पर यही लघुकथा मुझे तो बड़ी लगी,फिर इसके साथ लघु शब्द क्यों जोड़ा गया है,मेरे ख़याल में लघुकथा का सही पैमाना यही है कि ज़ियादा से ज़ियादा दस पंक्तियों में लिखी जाये,जैसे ग़ज़ल ,इसकी दो पंक्तियों में बड़ी बड़ी दास्तानें समा जाती हैं,और नज़्म में वही दास्ताँ कई सो पंक्तियों में कही जाती है,उसी लिहाज़ से कथा नज़्म हुई और लघुकथा ग़ज़ल की तरह दो नहीं तो दस पंक्तियों की होना चाहिए,कृपया इस पर अपने विचार आप और मंच के लघुकथाकार साझा करने का कष्ट करें ।
Comment by vijay nikore on August 7, 2017 at 9:05pm

बहुत ही अच्छी संदेशप्रद लघु कथा के लिए दिल से बधाई, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 7, 2017 at 12:18pm
त्वरित प्रतिक्रिया, अनुमोदन सहित विचार साझा करने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब। ओबीओ के प्रति आपकी सक्रियता व सीखने-सिखाने की ललक काबिल-ए-तारीफ़ है।
Comment by Mohammed Arif on August 7, 2017 at 12:12pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, कथानक में नयापन , ताज़गी का पुट , जिज्ञासा का भरपूर संचार, संवादों में भी कसावट । हमारा देश साम्प्रदायिक सद्भावना वाला देश है । यहाँ गंगा-जमनी तहजीम का प्रवाह रहा है । आपकी यह कथा इसका बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करती है । साम्प्रदायिक सद्भावना का अच्छा संदेश दिया आपने । दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
22 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service