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'ये लहू दिल का चूस्ती है बहुत'

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान

ज़ह्न में यूँ तो रौशनी है बहुत
पर जमी इसमें गंदगी है बहुत

इतना आसाँ नहीं ग़ज़ल कहना
ये लहू दिल का चूस्ती है बहुत

एक एक पल हज़ार साल का है
चार दिन की भी ज़िन्दगी है बहुत

चींटियाँ सी बदन पे रेंगती हैं
लम्स में तेरे चाशनी है बहुत

फ़न ग़ज़ल का "समर"सिखाने को
एक 'दरवेश भारती'है बहुत
---
लम्स-स्पर्श
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on July 19, 2017 at 11:06am

आदरणीय समर साहब आपकी शानदार गजल के लिये दिली मुबारक बाद कुबूल करें । यूँ तो पूरी गजल ही बहुत अच्‍छी है हमें ज़ाती तौर पर ये शेर बहुूत पंसद आया

एक एक पल हज़ार साल का है
चार दिन की भी ज़िन्दगी है बहुत.....  सनातन धर्म की मान्‍यता के अनुसार  ब्रह्मा का एक दिन कई सालों का होता है उसकी याद आ गई । दरवेश भारती जी से परिचय नहीं है इसलिये मकते पर श्‍ेार की दिशा को लेकर विचार कर रहे है । क्‍यूंकिआपका कहा कुछ भी निरर्थक नहीं होता ये हम जानते है ।सादर

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 19, 2017 at 7:43am
वाह वाह क्या बात है । लाजबाब ग़ज़ल हुई ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 18, 2017 at 10:05pm

इतना आसाँ नहीं ग़ज़ल कहना
ये लहू दिल का चूस्ती है बहुत

एक एक पल हज़ार साल का है
चार दिन की भी ज़िन्दगी है बहुत

बहुत खूब आदरणीय समर भाई जी | हार्दिक बधाई आपको |

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 18, 2017 at 9:19pm
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है ,शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
Comment by Mohammed Arif on July 18, 2017 at 3:01pm
आदरणीय आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आदाब , सावन के महीने में बेहतरीन ग़ज़लों की झड़ी लगी है । बहुत ख़ूब ! मज़ा इ गया । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । कुछ शे'र क़ाबिले गौर है:-
चींटियाँ सी बदन पे रेंगती हैं
लम्स में तेरे चाशनी बहुत है ।
फ़न ग़ज़ल का "समर"सिखाने को,
एक "दरवेश भारती"है बहुत ।

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