For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐडजस्टमेन्ट्स (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

पता नहीं क्यों ज़ुबैर के क़दम कभी पापा के बेडरूम की ओर बढ़ जाते, तो कभी उस कमरे की ओर जहां उसकी मम्मी की सभी चीज़ें कबाड़ की तरह रख दीं गईं थीं। यही तो वे वज़हें हैं जो उसे नाना-नानी के घर से वापस पापा के घर खींच लाती थीं। मंहगाई और कलह के वातावरण में न तो कोई रिश्तेदार उसे ढंग से अपने पास रख पा रहा था, न ही पापा उसे किसी होस्टल में डाल पा रहे थे। पापा को नई मम्मी के साथ ख़ुश देखकर वह ख़ुश हो भी तो कैसे? दो साल पहले उसने अपनी आंखों से देखा था पैसों के ख़र्च के मसले पर बढ़ी बहस में पापा को मम्मी पर कुल्हाड़ी से वार कर उनकी हत्या करते हुए! चाचू और मामू दोनों की तरफ़ से कितनी होशियारी से मामले को रफ़ा-दफ़ा कर दिया गया था कोर्ट-कचहरी के चक्कर और ज़ुबैर के भविष्य की दलीलें देकर!

पढ़ाई-लिखाई छूट चुकी थी। उसे स्कूल भेजा गया था लेकिन वहां उसका मन ही नहीं लगा। मन तो पहली मम्मी और दूसरी मम्मी में ही उलझा रहता था।

"ये जब पापा की चहेती दूसरी बीवी बन सकतीं हैं, तो मेरी मम्मी जैसी मेरी चहेती माँ क्यों नहीं?" अक्सर वह पापा के बेडरूम के पर्दे से झांक कर यह सोचता।

"पापा के दिल में मम्मी की इन चीज़ों के लिए ज़रा भी चाहत क्यों नहीं?" दूसरे छोटे से कमरे में अपनी माँ की चीज़ों को छू कर मम्मी को महसूस करता ज़ुबैर अक्सर सोचता।

"पागल सा हो गया है, किसी मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती करवा देंगे!" पापा को आज जब नई मम्मी से यह कहते हुए सुना तो नाना जी और मामूजान उसे फिर याद आ गये, लेकिन उनके घर की औरतों के ताने याद कर वह फिर से सिहर उठा।

तभी उसे नाना जी की समझाइश याद आ गई। "बेटा, थोड़ा वक़्त लगेगा, बरदाश्त करने का माद्दा रखो, तुम पापा के पास ही रहो, यही तुम्हारे लिए बेहतर है, यहाँ एडजस्ट करना सीख लिया, तो दुनिया में भी एडजस्ट करना सीख जाओगे!" आठ साल का ज़ुबैर नाना जी की इन बातों को कितना समझ पाया, यह उसका चेहरा देख कर ही समझ में आ जाता था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 476

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 15, 2017 at 2:06am
रचना पर उपस्थित होकर अनुमोदन व प्रोत्साहित करने के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2017 at 9:30pm

बढ़िया लघुकथा है आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 10, 2017 at 5:24pm
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर समय देने व प्रोत्साहन देने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।
Comment by नाथ सोनांचली on July 10, 2017 at 5:15am
जनाब शेख उस्मान साहब आदाब, बढ़िया मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने, बधाई स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service