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'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते...तत्र..!' (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

परिपक्व कहे जाने वाले या माने जाने वाले लोकतंत्र की हथेली पर बैठी बेहाल नारी पांचों उंगलियों पर दया दृष्टि डाल रही थी। किसी में उसे परेशान जनता नज़र आ रही थी, तो किसी में मीडिया। बाकी उंगलियों में उसे लोकतंत्र की स्तंभ​ कही जाने वाली विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका नज़र आ रही थी, परेशान और भौचक्की सी।

"हे भारतीय नारी, क्षमा प्रार्थी हूं। समानता, सबलता, सशक्तिकरण करने के तमाम प्रयासों के बावजूद हम तेरी आबरू नहीं बचा पा रहे!" सभी की उदास, रोती सी शक्लें यही बयां कर रहीं थीं।

नारी ने बारी-बारी से सबकी शर्मिन्दगी को अपनी आंखों से नापा। एक लम्बी सी आह के साथ वह बोल पड़ी- "जिस देश में मुझे महान कहा जाता है, पूजा जाता है, वहां ही ऐसा है, तो कोई तो कसूर मेरा भी है!"

"नहीं, नहीं, तुम्हारा नहीं! सारा कसूर मेरा है !" मध्यमा में उपस्थित मीडिया ने कहा।

"नहीं, तुम नहीं, हम ज़िम्मेदार हैं तुम्हारी दिशा और दशा के लिए!" बायीं तरफ़ की उंगली पर उपस्थित जनता ने मीडिया से कहा।"

लोकतंत्र के तीनों स्तंभ रूपी शेष उंगलियां अंगूठे सहित कभी जनता की और देखने लगीं, तो कभी मीडिया की ओर।

"नहीं, नहीं, तुम लोगों का कोई कसूर नहीं, हम ही कहीं न कहीं ग़लती पर हैं!" तीनों ने एक स्वर में कहा।

नारी पुनः उन बेबस पांचों को बारी-बारी से घूरने लगी।

"शायद तुम में से कोई दोषी नहीं! मैंने ही अपनी लक्ष्मण रेखा लांघी है प्रकृति और धर्म की बनाई हुई!"

लोकतंत्र की हथेली पर अब वे पांचों स्तंभ भी अपनी-अपनी लक्ष्मण रेखा देख रहे थे।


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 6:12am
मेरी यह कटाक्षपूर्ण प्रस्तुति आपको पसंद आई, प्रयास सफल हुआ। तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय indravidyavachaspatitiwari जी, डॉ. आशुतोष मिश्रा जी, मोहम्मद आरिफ़ जी व आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 27, 2017 at 11:51am
बहुत ही उत्तम ममस्पर्शि भावों का समावेश किया है इस लघुकथा में आदरणीय..सादर
Comment by Nita Kasar on June 26, 2017 at 3:48pm
प्रतीकात्मक रूप से लिखी गई कथा के लिये व नायिका के दृष्टिकोण को उजागर करती कथा के लिये बधाई आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 26, 2017 at 3:19pm
जबरदस्त अंदाज में लिखी यह लघु कथा बेहद पसंद आयी आदरणीय शेख जी ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Mohammed Arif on June 25, 2017 at 6:44pm
आदरणीय शेख शहज़ाद ऊस्मानी जी आदाब, लघुकथा के बहाने अच्छा कटाक्ष । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by indravidyavachaspatitiwari on June 25, 2017 at 6:24am

आ0 शेख शहजाद उसमानी आपके इस लघुकथा ने नारी की दुुर्दशा के दोषी को संुदर ढंग से रखा है। आपको हार्दिक बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 24, 2017 at 2:18pm
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय Shyam Narain Verma जी।
Comment by Shyam Narain Verma on June 24, 2017 at 10:58am
इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीय

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