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बोलती है चुप्पी भी ( कविता)

बोलती है चुप्पी भी
अपने तरीके से करती है बाते

इधर उधर देखती है
कभी मन्द मुस्कुरा देती है

कभी आँखों से करती है बयान
कभी चहरे पर भाव दिखाती है

बोलती है चुप्पी भी
ख़ामोशी से ही सही

पर कभी कभी दे जाती है
बड़े घाव ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Mohammed Arif on June 10, 2017 at 9:54pm
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,बहुत ही बेहतरीन रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 10, 2017 at 8:43pm
गहरे भावों की शानदार प्रस्तुति..हार्दिक बधाई
Comment by Mahendra Kumar on June 10, 2017 at 5:09pm

//बोलती है चुप्पी भी
ख़ामोशी से ही सही
पर कभी कभी दे जाती है
बड़े घाव// वाह आ. कल्पना मैम. इस बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Sushil Sarna on June 9, 2017 at 3:09pm

पर कभी कभी दे जाती है
बड़े घाव ।
वाह आदरणीय कल्पना भट्ट जी अनुपम प्रस्तुति ... अंतर्मन के भावों का सहज प्रस्तुतीकरण इस रचना का सौंदर्य है ... इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

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