For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धूप की तिरछी किरणें

बारिश की बूँदें

रंभाती हवाएँ

सभी एक संग ...

धूल के कण

मानो उड़ रहे हैं सपने

विचित्र रूप ओढ़े है धरती

सारा कमरा

चौकन्ना हो गया है

असंतोष मुझको है गहरा

लौट-लौट आ रहे हैं

दर्दीले दृश्य दूरस्थ हुई दिशाओं से

भूली भीषण अधूरी कहानी-से

उलझे ख़याल ... 

तुम्हारे, मेरे

मकड़ी के जाल में अटके जैसे

हमारे सारे प्रसंग

जिनका आघात

हम दोनों को लगा

सोचता हूँ, यह अंत है खेल का

या, एक और खेल है अंत में

या, तैरते-उतरते

पुण्य और पाप को संकेतित करती

यह अंतिम पलों की लीला है क्या

कि हवा में घुल-घुल कर

प्रकाश-बिम्ब-से

स्पष्ट हो रहे हैं मानो अब अर्थ व्यर्थ

अजनबी हुई अकुलाती आकांक्षाओं के

आत्मा के आस-पास शायद इसीलिए

साक्षी हैं श्रद्धा के द्वार पर

ध्वनिगुंजित पल

स्वप्निल आत्मीयता की उष्मा के

दर्दभरी संकुचित दूरी में भी

स्नेह के सत्य में मेरे अटूट विश्वास के

और, जो हुआ, सही था, या गलत हुआ

तुम्हारी सोच में नि:संदेह उसमें

कहीं न कहीं मेरे अपराध के

काल-सर्प-से इस अंतिम समय में

किस-किस असंग प्रसंग में

क्या-क्या सँवारेंगे हम

कि जिस वेदना में पलती हो तुम

छुपने के लिए उसीसे

कुछ और गहरे

गहरे उतर जाती हो मुझमें

मुझको .. जाते इन पलों में

उसकी भी वेदना है

         ---------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1210

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 10:08am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, भाई लक्ष्मण धामी जी।

Comment by vijay nikore on July 30, 2017 at 10:42am

// निःशब्द हूँ मूक हो गए हैं सब शब्द ... अहसासों को जिस सजीवता से आपने चित्रित किया है वो अनुपम, अतुलनीय है। भाव प्रवाह इतना सशक्त है कि आरम्भ से अंत तक जिज्ञासा का अंत नहीं होता //

आपकी यह सुन्दर प्रतिक्रिया मेरे लिए पारितोषिक है, मेरे भाई सुशील जी। 

आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय भाई।

Comment by vijay nikore on July 30, 2017 at 10:40am

//बहुत ही सुंदर अहसास और भाव युक्त कविता//

इस मान के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई तस्दीक अहमद जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2017 at 11:13pm
आ. भाई विजय जी इस भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई ।
Comment by Sushil Sarna on July 25, 2017 at 12:47pm

काल-सर्प-से इस अंतिम समय में
किस-किस असंग प्रसंग में
क्या-क्या सँवारेंगे हम
कि जिस वेदना में पलती हो तुम
छुपने के लिए उसीसे
कुछ और गहरे
गहरे उतर जाती हो मुझमें
मुझको .. जाते इन पलों में
उसकी भी वेदना है

वाह आदरणीय विजय निकोर जी निःशब्द हूँ मूक हो गए हैं सब शब्द ... अहसासों को जिस सजीवता से आपने चित्रित किया है वो अनुपम, अतुलनीय है। भाव प्रवाह इतना सशक्त है कि आरम्भ से अंत तक जिज्ञासा का अंत नहीं होता। इस अप्रतिम प्रस्तुति के लिए ढेरों बधाईयां आदरणीय। मां शारदे आप पर सदा मेहरबान रहें। सादर ...

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 24, 2017 at 10:36pm

मुहतरम जनाब विजय साहिब , बहुत ही सुंदर अहसास और भाव युक्त कविता हुई है
मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ

Comment by vijay nikore on July 24, 2017 at 11:19am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहित जी।

Comment by vijay nikore on July 23, 2017 at 8:45am

धन्यवाद, भाई आरिफ़ जी।  वर्तनीगत त्रुटियों को मैं सुधार रहा हूँ। आभार।

Comment by Mohammed Arif on July 23, 2017 at 7:52am
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब,क्षमाप्रार्थी कह कर मुझे शर्मिंदा न करें । आप मुझ से बड़े हैं । ओबीओ का मंच तो सीखने-सिखाने का मंच है । हम सब मिल -जुलकर सीख रहे हैं । मैं स्वयं भी सीखने के प्रारंभिक दौर से ही गुज़र रहा हूँ । जहाँ तक बात वर्तनीगत अशुद्धियों की है तो कुछ ध्यान दिलाना चाहूँगा कि-संवारेंगे-सँवारेंगे ,आकाक्षाओं-आकांक्षाओं ,बूंदें-बूँदें , रंभाती-रम्भाती हैं ।
Comment by vijay nikore on July 23, 2017 at 6:44am

प्रिय मोहम्मद आरिफ़ भाई, क्षमाप्रार्थी हूँ... अभी-अभी ध्यान में आया कि आपसे मिली निम्न अमूल्य प्रतिक्रिया का उत्तर देना रह गया।

आपने सदैव जो मान दिया है, मैं हृदयतल से आपका  आभारी हूँ। वर्तनीगत अशुद्धियों को मैं सुधारना चाहूँगा, अत: आप कृपया इनकी ओर संकेत दें ताकि मैं सुधार दूँ। ओ बी ओ की यही विशेषता है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service