For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नूर की हिंदी ग़ज़ल ..दर्पणों से कब हमारा मन लगा

२१२२/२१२२/२१२ 
.
दर्पणों से कब हमारा मन लगा
पत्थरों के मध्य अपनापन लगा. 
.
लिप्त है माया में अपना ही शरीर
ये समझ पाने में इक जीवन लगा.
.
तप्त मरुथल सी ह्रदय की धौंकनी
हाथ जब उस ने रखा चन्दन लगा.
.
मूर्खता पर करते हैं परिहास अब
जो था पीतल वो हमें कुन्दन लगा.
.
प्रेम में भी कसमसाहट सी रही
प्रेम मेरा आपको बन्धन लगा.
.
जल रहे हैं हम यहाँ प्रेमाग्नि में
और उस पर ये मुआ सावन लगा.
.
मंदिरों की सीढ़ियों पर भूख थी 
चन्द्र भिक्षापात्र सा बर्तन लगा.
.
माँ को अम्मी कह रहा था मित्र, बस!
उसका आँगन अपना ही आँगन लगा.         
.
निलेश "नूर"
.
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2017 at 8:54am

शुक्रिया आ. महेंद्र जी 

Comment by Mahendra Kumar on May 15, 2017 at 12:36pm

आदरणीय निलेश जी, हमेशा की तरह एक और बढ़िया ग़ज़ल पढने को मिली आपसे. हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.

Comment by Samar kabeer on May 13, 2017 at 10:35am
जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,बहुत सही क़दम है ये,इससे दूसरे ऐसे लोग भी सबक़ ज़रूर लेंगे ।ओबीओ ज़िंदाबाद ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2017 at 9:47am

धन्यवाद आ. योगराज सर,



प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 13, 2017 at 9:33am

राघव प्रियदर्शी जी शायद इस मंच पर कोई निजी अजेंडा लेकर आए हैं जिसका एकमात्र उद्देश्य मँच के एक अति सम्माननीय सदस्य को निशाना बनाकर उनका अपमान करना हैI ऐसा व्यवहार न पहले बर्दाश्त किया गया है न ही भविष्य में किया जाएगाI अत: राघव प्रियदर्शी जी की सदस्यता तुरंत प्रभाव से समाप्त की जा रही हैI   

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2017 at 8:35am

आ. शिज्जू भाई,
आप मंच  पर चल रहे एक कुत्सित खेल से व्यथित होकर टिप्पणी करने आये जिसके लिये आप का हार्दिक धन्यवाद..
राघव जी को मैंने भी एक जवाब दिया था लेकिन फिर डिलीट  कर दिया क्यूँ कि मुझे जॉर्ज बर्नाड शॉ का एक quote याद   आ गया जो बचपन में  पढ़ा था और अबतक अमल में लाता हूँ...
quote    कुछ यूँ था ..
"I learned long ago, never to wrestle with a pig. You get dirty, and besides, the pig likes it."
अत: मैंने इन सज्जन को इनकी सज्जनता के साथ यूँ  ही कुढने देने का तय किया है ...
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 13, 2017 at 6:52am
जनाब राघव जी मुआफ़ी चाहता हूँ बीच में कूदने के लिए, अपने विचार या अपनी विचारधारा आप दूसरों पर थोपने की कोशिश करें और प्रतिरोध न हो ये नहीं हो सकता, अनुराग जी ने इस ग़ज़ल पर जो नुक्ताचीनी की है वो फ़क़त कोरी मलामत है जिसका रचनाकर्म या भाषा से संबंध नहीं है। इस ग़ज़ल में भाषा का कोई ऐसा प्रयोग नहीं हुआ है कि इस पर तल्ख टिप्पणी की जाए। किसी पर बेसबब बदला निकालने के लिए पत्थर मारेंगे तो आपको भी वही जवाब मिल सकता है। ग़ज़ल में अरूज से संबंधित गलतियाँ हो तो इंगित करें। फिर से माजरत चाहूँगा सिर्फ गलतियाँ निकालनी है तो निकालते रहें निकालने वाले वो कोई महान भाषाविद नहीं हैं जिनकी बात को गंभीरता से लिया जाए।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 12:21pm

आ. अनुराग जी 
.

""अब आप अपनीवाली पे उतर आये हैं."" 
नहीं हुज़ूर,,, मेरी वाली तो मेरी ग़ज़ल में है .. ये तो आप की वाली है ...जिसे आप सुनना पसंद करते हैं..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 12:18pm

आ. योगराज सर,

मेरी भाषा और भावों को कृत्रिम कहा गया है,,, यदि माक़ूल जवाब न दूँ तो ये आरोप स्वीकार करने के जैसा घोर पाप होगा,,,
टिप्पणीकारों को चाहिए कि जो भाषा अथवा भाव वो समझ पाने में असमर्थ हैं, उस के प्रति पूर्वाग्रह   से ग्रस्त हो कर टिप्पणी न किया करें ...
बाक़ी आप कहें तो रचना डिलीट कर देता हूँ मैं.....वो भी बिना किसी अफ़सोस के ..
सादर 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 11, 2017 at 12:13pm

आ० भाई निलेश नूर जी व अनुराग वशिष्ठ जीI क्या आपको नहीं लगता कि अब इस बहस को विराम दे देना चाहिए? 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
7 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
19 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service