२१२२, २१२२,२१२
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बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?
हो गए हैं स्वप्न सब साकार क्या?
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सत्य से बढ़कर तो ईश्वर भी नहीं,
राष्ट्र क्या फिर मित्र क्या परिवार क्या?
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राष्ट्र की सेवा सभी का धर्म है,
कर रहे हो तुम कोई उपकार क्या?
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देख कर इक कोमलांगी के अधर,
कल्पना लेने लगी आकार क्या?
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आचरण में धर्मग्रंथो को उतार,
बाद में दे ज्ञान उनका सार क्या.
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निलेश "नूर"
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मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया आ. सतविन्द्र जी
शुक्रिया आ. गिरिराज जी
शुक्रिया आ. बृजेश जी
आदरनीय नीलेश भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है .. बधाइयाँ स्वीकार करें ।
शुक्रिया आ. योगराज सर ..
//देख कर इक कोमलांगी के अधर,
कल्पना लेने लगी आकार क्या? //
वाह वाह वाह! क्या तखय्युल है, आफरीन आ० भाई निलेश नूर जी.
शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ सिंह जी
शुक्रिया आ. डॉ. आशुतोष जी
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