For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 221 2121 1221 212

 

बदनाम है जरूर मगर नाम तो हुआ 

अफसाना जिदगी का सरे आम तो हुआ

 

आँखों में बंद था कभी सागर शराब का  

वह तज्रिबे आशिक से लबे जाम तो हुआ

 

महफिल थी जम गयी उनके खयाल की  

था जश्न थोड़ी देर पर दिल-थाम तो हुआ

 

उतरा था एक बार मुहब्बत की जंग में

नाकाम जंग होना था नाकाम तो हुआ   

 

कहते है यार इश्क है अंजाम-बद बहुत

होना था जो अंजाम वो अंजाम तो हुआ

 

उसको न कुछ मिला तो मुझे भी कहाँ मिला

यह बेक़सूर व्यर्थ में बदनाम तो हुआ

 

नाकाम जो मुहब्बत हो गयी तो क्या करें 

दीवाना कह रहा था भई काम तो हुआ .

 

मरहम बना तमाम वक्त बीत जो गया

जख्मे-जिगर के दर्द को आराम तो हुआ

 

 (मौलिक/अप्रकाशित )

 

Views: 772

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on February 24, 2017 at 4:58pm
आदरणीय समर साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आप अपनी महती राय देने इस ग़ज़ल पर आये दरअसल उस वक्त आपकी तबीयत का इल्म नहीं था अन्यथा आपको ज़हमत न देते । जानकारी देने का बहुत बहुत शुक्रिया।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 19, 2017 at 9:07pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहुत अच्छी गज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।  तज़्रिबे को ले कर बहुत सार्थक चर्चा भी हुआ है ... खयाल कीजियेगा ।

Comment by Mahendra Kumar on February 19, 2017 at 12:06pm
आदरणीय गोपाल नारायन सर, इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाई प्रेषित है। सादर।
आदरणीय समर कबीर सर, ऊपर वाले से प्रार्थना है कि आप शीघ्र ही पूर्णतः स्वस्थ हो जाएँ। सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 18, 2017 at 2:45am
आदरणीय गोपाल सर आपकी इस ग़ज़ल से सोच को नए पर मिले हैं गहरी सोच और सूंदर भावों की इस ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई ।आपकी इस रचना के माध्यम से आदरणीय रवि सर और समर सर की प्रतिक्रियाओं से उम्दा जानकारी भी हासिल हुयी सादर
Comment by Samar kabeer on February 17, 2017 at 10:18pm
जनाब गोपाल नारायन श्रीवस्त्व जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,इस ग़ज़ल पर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
वैसे तो जनाब रवि शुक्ल साहिब ने अपनी टिप्पणी में सभी कुछ लिख दिया है जो मुनासिब भी है । आजकल मेरी तबीअत कुछ ठीक नहीं चल रही इस कारण से अपनी सक्रियता नहीं दिखा पा रहा हूँ लेकिन रवि जी ने अपनी टिपण्णी में मेरा ज़िक्र भी किया है इसलिये अख़लाक़न मुझे मंच पर आना पड़ा ।

//तज्रिवे आशिक इस लफ्ज की तरकीब पर समर साहब और अन्‍य उदॅू दां आलिम की राय जानना चाहेगे//

"आँखों में बंद था कभी सागर शराब का
वह तज्रिबे आशिक से लबे जाम तो हुआ"

पिछले दिनों मंच पर मैंने 'इज़ाफ़त' के बारे में जानकारी साझा की थी । 'तज्रिबा' शब्द भी उन शब्दों में से है जिन में इज़ाफ़त नहीं लगाई जाती ,क्यूँकि हिन्दी और अरबी भाषा के शब्दों में इज़ाफ़त नहीं लगाई जा सकती और 'तज्रिबा' शब्द भी अरबी भाषा का है इसलिये इसमें इज़ाफ़त नहीं लगाई जा सकती,सानी मिसरा इस तरह कर सकते हैं :-

"आशिक़ के तज्रिबे से लबे जाम तो हुआ"

बाक़ी शुभ-शुभ ,आप सबसे दुआओं की दरख़्वास्त है।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 17, 2017 at 5:35pm
आदरणीय डा.साहब आपकी इस ग़ज़ल को मैंने बार बार पढ़ा..बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई..दरअसल आदरणीय मैं इस बहर को समझने की कोशिश कर रहा हूँ..बहुत ही कठिन लेकिन प्यारी बहर है कोशिश करूँगा कुछ लिख सकूँ.
Comment by TEJ VEER SINGH on February 17, 2017 at 1:04pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी। हार्दिक बधाई।बेहतरीन गज़ल।

मरहम बना तमाम वक्त बीत जो गया

जख्मे-जिगर के दर्द को आराम तो हुआ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 16, 2017 at 9:41pm

आ० रवि शुक्ल जी , आपने गजल को अपना बहुमूल्य समय देकर मुझे अनुग्रहीत किया , इस हेतु मैं आभारी हूँ . आपने जो इस्लाह की उसके लिया मैं आपका शुक्रगुजार हूँ . मैं अपनी मूल कापी में संशोधन करूंगा सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 16, 2017 at 9:38pm

आ० दिनेश जी , बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 16, 2017 at 9:37pm

आ ० आरिफ जी , बहुत बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
13 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service