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हर पर्व से पहले आते थे तुम

हँसती-हँसती, मैं रंगोली सजा देती ...

नाउमीदी में भी कोई उमीद हो मानो

मेरी अकुलाती इच्छाएँ तुम्हारी राह तकती थीं

श्रद्धा के द्वार पर अभी भी मेरे प्रिय परिजन

सूर्य की किरणें ठहर जाती हैं

चाँद जहाँ भी हो, पर्व की रातों कोई आस लिए

आकर छत पर रुक जाता है

तन्हा मैं, सोच-सोच में

ढूँढती हूँ बाँह-हाथ तुम्हारे

स्पर्श से पूर्व विलीन हो जाते हैं स्पर्श

उदास साँवले दिन की कलौंस

अन्धकार-अम्बर में हर रोज़

एक और लेप लगा जाती है

आन्तरिक खामोशी की दीवार

समय से और मोटी हुई जाती है

स्नेहिल शब्द ओंठों से तुम्हारे

सुखद बारिश-से बरसते

महकते थे वीरान हवाओं में भी

पर प्रणय के सूर्योदय से पहले ही

तुम चले गए क्षितिज के उस पार

दूर, बहुत दूर कहीं, मेरी पहुँच से परे

अनगिन अग्निमय फ़ासले, सदैव के लिए

मेरी सिकुड़ती बदनसीब सोच से भी परे

समय के खँडहरों के उजाड़ प्रसारों मे

मेरी आत्मा के कण्टकित एकान्तों में

ढूँढती रहती हूँ तुम्हारे वही स्नेहिल शब्द

आँसुओं-सिंचे अब दुखजनित शब्द

हृदय में बहती रहती है तुम्हारे प्रति स्नेह-लहरी

ममतामयी गंगा की लहरों-सी

तुम्हारे संवेदनमय सुगंधित शब्दों का विस्तार

मुस्काता है हर दिन मेरे क्षितिज के आर-पार

---------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on February 3, 2017 at 9:35am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 25, 2017 at 9:09pm

हमेशा की तरह कविता पाठक को बांधे रखती है एक संवाद स्थापित कर लेती है कोई अपना प्रियजन चला जाए उसकी मधुर्स्म्रतियाँ ही जीने का सहारा होती  हैं हृदय को छोटी हैं आपकी रचनाएँ आद० विजय निकोर से बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Sushil Sarna on January 25, 2017 at 7:25pm

तुम्हारे संवेदनमय सुगंधित शब्दों का विस्तार
मुस्काता है हर दिन मेरे क्षितिज के आर-पार


वाह वाह वाह क्या भाव हैं आदरणीय विजय निकोर जी .... सरल शब्दों में गहन भावों की सरिता जो दूर तक अपने साथ ले जाती है। इस अप्रतिम प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 6:42pm

आदरणीय विजय निकोर सर, हर बार की तरह एक प्रभावशाली प्रस्तुति जो पाठक को बहा ले जाती है अपने साथ. इस प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई. सादर 

Comment by Samar kabeer on January 25, 2017 at 6:01pm
जनाब विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह आपकी ये कविता भी दिल को छू गई,सच ही कहा है किसी ने'दिल से जो बात निकलती है असर रखती है',इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 25, 2017 at 12:03pm
यूं तो जीवन के हर एक पल को हम सिर्फ और सिर्फ एक बार ही जीते हैं पर उन्हीं जिए हुए पलों में से कुछ पलों को हम आगे भी सौ सौ बार जीते हैं।
वही पल एक बहुत खूबसूरत कविता बन जाते हैं। इस बात को चरितार्थ करती इस खूबसूरत रचना के लिए ह्रदय से बधाई, आदरणीय विजय निकोर जी , सादर।

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