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मेरे कंधे पे अपना सर रक्खो (ग़ज़ल)

2122 1212 22

पूरे करने का जब हुनर रक्खो
ख़्वाब आँखों में तो ही भर रक्खो

इक नज़र ख़ुद पे डाल लो पहले
बाद में दुनिया पर नज़र रक्खो

बच्चे हैं, बचपना दिखाएँगे
चाहे कितना भी डाँटकर रक्खो

चैन की नींद चाहिए जो तुम्हें
ख्वाहिशें अपनी मुख़्तसर रक्खो

मेरा ईमान ही ख़ुदा है मेरा
अपनी दीनारें अपने घर रक्खो

आओ कुछ दर्द बाँट लूँ तुमसे
मेरे कंधे पे अपना सर रक्खो

तीरगी है जो दिल की बस्ती में
एक जलता दिया उधर रक्खो

इससे पहले कि कोई दस्तक दे
दिल का दरवाज़ा खोलकर रक्खो

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 495

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 20, 2017 at 9:46pm
वाह वाह बहुतखूब...खूबसूरत ग़ज़ल हुई
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 20, 2017 at 2:48pm

वाह भाई जय्नित जी सुन्दर लफ्जों में सरल तरीके से कही गयी दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 18, 2017 at 11:01pm

अच्छी ग़ज़ल कही है आद० जयनित जी बाकी समर भाई जी ने मार्गदर्शन कर ही दिया .

Comment by Sushil Sarna on January 18, 2017 at 7:19pm

तीरगी है जो दिल की बस्ती में
एक जलता दिया उधर रक्खो

इससे पहले कि कोई दस्तक दे
दिल का दरवाज़ा खोलकर रक्खो

बहुत खूब आदरणीय जयनित कुमार जी .... इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं सर।

Comment by Samar kabeer on January 18, 2017 at 3:25pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,ग़ज़ल उम्दा हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'पूरे करने का जब हुनर रक्खो
ख़्वाब आँखों में तो ही भर रक्खो'

'ख़्वाब'शब्द चूँकि एक वचन है इसलिए ऊला में 'पूरे'नहीं कह सकते,मतला यूँ किया जा सकता है :-

'पूरा करने का जब हुनर रक्खो
ख़्वाब आँखों में तब ही भर रक्खो'

वैसे तो पूरी ग़ज़ल में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, उस पर दूसरे शैर में एक और,'डाल लो',ऊला यूँ कर सकते हैं :-

'इक नज़र खुद को देख लो पहले'

पांचवें शैर के सानी मिसरे में 'दीनारें'शब्द अच्छा नहीं लगता,कारण ये कि 'दीनार' हमारे देश की मुद्रा नहीं है,ये मिसरा यूँ कर सकते हैं :-

'अपनी दौलत को अपने घर रक्खो'

बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by नाथ सोनांचली on January 18, 2017 at 1:18pm
आदरणीय जयनित मेहता जी सादर अभिवादन, उम्दा गजल पर शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद कबूल फरमाएँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 12:23pm

आदरणीय जयनित जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है. हार्दिक बधाई. मतला में गुंजाइश लग रही है. बाकी गुनीजन मार्गदर्शन करेंगे ही. सादर 

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