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पत्थरों की नोक से घायल करें उगता सवेरा ( नव गीत 'राज ')

किश्तियों का छोड़ चप्पू

रौंदते पगडंडियों को

पत्थरों की नोक से

 घायल करें उगता सवेरा

 

आग में लिपटे हुए हैं

पाखियों के आज डैने

करगसों  के हाथ में हैं

लपलपाती  लालटेनें

कोठरी में बंद बैठी

ख्वाहिशों की आज मन्नत

फाड़ कर बुक्का कहीं पे

रो रही है देख जन्नत

जुगनुओं की अस्थियों को

ढो रहा काला अँधेरा

 

घाटियों की धमनियों से

रिस रहा है लाल पानी

जिस्म में छाले पड़े हैं

कोढ़ में लिपटी जवानी

मौत के साए उठा के

पूँछ पीछे भागते हैं

सी रहे हैं जो कफन को

सिर्फ दर्जी जागते हैं

उललुओं का हर शज़र की

शाख़ पर बेख़ौफ़  डेरा

 

धँस गई धर्मान्धता में

एतिहासिक भीत निर्मित

वादियों में हो रहे हैं

खंडहरों के गीत चर्चित

दांत अपने जीभ अपनी

वर्जनाएँ  हँस रही हैं  

सरहदों की मुट्ठियाँ

बदनामियों को कस रही हैं  

देख धूमिल रंग सारे ठोकता माथा चितेरा

पत्थरों की नोक से घायल करें उगता सवेरा

 

मौलिक एवं अप्रकाशित  

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Comment

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Comment by pratibha pande on September 3, 2016 at 9:32pm

धँस गई धर्मान्धता में

एतिहासिक भीत निर्मित

वादियों में हो रहे हैं

खंडहरों के गीत चर्चित

दांत अपने जीभ अपनी....घाटी के आज के हालात पर बहुत प्रभावशाली प्रस्तुति , शब्द कम हैं इसकी सराहना को ....हार्दिक बधाई प्रेषित है इस उत्कृष्ट सृजन पर आदरणीया राजेश जी 

 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 3, 2016 at 8:46pm
सादर आदरणीया राजेश दीदी।बहुत ही सुंदर ओजपूर्ण गीत के लिए सादर हार्दिक बधाई
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 2, 2016 at 9:40pm

आ० दीदी , इस गीत में ओज देखते ही बनता है. एक तूफ़ान सा उठाये यह गीत अद्वितीय है . बधाई दीदी .  

Comment by Samar kabeer on September 2, 2016 at 2:07pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत सुंदर भाव समेटे हैं आपने अपने नवगीत में,बहुत अच्छा लगा,बधाई स्वीकार करें इस शानदार प्रस्तुति पर ।
Comment by Sushil Sarna on September 2, 2016 at 12:19pm

देख धूमिल रंग सारे ठोकता माथा चितेरा
पत्थरों की नोक से घायल करें उगता सवेरा

वाह बहुत सुंदर .... गहन भावों को समेटे इस नवगीत की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया राजेश कुमारी जी।

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