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एक नज़्म: सूनापन

सूनापन

एक ख़ला है, ख़ामोशी है,
जिधर देखो उदासी है,
समय सिफ़र हो गया,
आंसू निडर हो गए,
घेरे हैं लोग,पर कोई साथ नहीं,
सर पर किसी का हाथ नहीं,
शाम खाली गिलास सा,
टेबल पर औंधे मुंह पड़ा है,
मन में चिंता दीमक की तरह,
मन को खाये जा रही  है,
दिल की गली ऐसी सूनी है,
मानो दंगे के बाद कर्फ़्यू लगा हो,
शरीर सूखे पेड़ की तरह खड़ा तो है पर,
पीसा के मीनार सा, झुक सा गया है,
कब तक और कहाँ तक
इस सूनेपन, इस अकेलेपन का
बोझ ढोते रहें 'अकेला'?
अब या तो तुम आ जाओ ज़िन्दगी में,
या फ़िर मौत आ मिले ज़िन्दग़ी से.......

मौलिक एवं अप्रकाशित

-आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला'

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Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 6, 2016 at 3:40pm

आदरणीया कांता रॉय जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!
मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए और नज़्म पढ़कर आनंद उठाने के लिए !!!
और इतने अच्छे कमेंट्स के लिए आभार !!!

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 6, 2016 at 3:34pm

आदरणीय समर कबीर जी दाद और मुबारकबाद के लिए कोटिशः धन्यवाद !!!
और आपके बहुमूल्य सुझाव एवं मार्गदर्शन के लिए आपका आभार !!!
मैंने ग़लती तुरंत सुधार ली !!!

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 6, 2016 at 3:29pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी.... तहेदिल से आपका शुक्रिया हौसला अफज़ाई के
लिए !!!!

Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:54pm
दिल की गली ऐसी सूनी है,
मानो दंगे के बाद कर्फ़्यू लगा हो,
शरीर सूखे पेड़ की तरह खड़ा तो है पर,
पीसा के मीनार सा, झुक सा गया है,..... बेहद शानदार तरीके से अभिव्यंजित किया है आपने कविता को। मन मुग्ध हुआ है पढ़ते ही। बधाई आपको आदरणीय आशीष जी।
Comment by Samar kabeer on September 2, 2016 at 10:34pm
जनाब आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी नज़्म,अपने एहसासात को अल्फ़ाज़ की डोर में ख़ूबसूरती से पिरोया है आपने, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

//मन में चिंता दीमक की तरह,
मन को खाये जा रहा है//

'खाये जा रहा' को 'खाये जा रही' कर लीजिये क्यूँकि दीमक स्त्रीलिंग है ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2016 at 5:08pm

आदरनीय आशीष भाई , व्यक्त निराशा हुई है , पर अभिव्यक्ति अच्छी है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 2, 2016 at 2:53pm

आ. अग्रज गोपाल जी बहुत बहुत धन्यवाद नज़्म पढ़ने के लिए।  जी आपकी बातों को ज़रूर अमल में लाऊँगा। सभी तरह के लिखता हूँ । ...धीरे-धीरे  हाज़िर करूँगा। आपकी सलाह  के लिए कोटिशः  धन्यवाद !!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 1, 2016 at 8:58pm

और भी गम हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा --- कहाँ जान देनेपर तुले है साहिब  कुछ आशाये  सजाएं कुछ  विश्वास जगाये . आमीन .

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