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ग़ज़ल: इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,

2122. 2122. 2122. 212

इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,
देखकर सारे ज़माने की अदावत फिर गया,

टूटते हैं बेसबब जिस भी तरह पत्त्ती यहाँ,
वो नज़र से ख़ुद किसी के बेवजह ही गिर गया,

दर्द लेकर प्यार का ज़ख़्मी बना आशिक़ नया,
बन शराबी लड़खड़ाते उस तरफ़ से घर गया,

जानकर उसकी ख़ताओं की वजह,अहसास से,
आँख भरता हो दुखी का दिल मिरा बस भर गया,

लोग कहते थे उसे है साहसी कितना बड़ा,
प्यार के अंजाम के पहले निडर भी डर गया ।


-आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला'


-: मौलिक एवं अप्रकाशित :-

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Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 21, 2016 at 3:59pm

आ. श्री  गिरिराज भंडारी जी आभार और शुक्रिया आपका!!! आप सभी अग्रजों ने जो भी जो कहा वो आगे से ध्यान में रहेगा। सादर !!!

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 21, 2016 at 9:41am

आ.श्री सुरेश जी आभार !!!! शुक्रिया!!! मेरी इ स रचना को पढ़ने के लिए आभार!!!

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 21, 2016 at 9:36am

आदरणीय श्री अशोक कुमार जी धन्यवाद!!! हौसला अफज़ाई के लिए!!! मैं समझाइश का अनुसरण ज़रूर करूंगा!!! सादर!!!!

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 21, 2016 at 9:31am

आदरणीय अग्रज श्री समर कबीर जी...तहेदिल से आपका मैं आभारी हूँ... आपने मुझे मेरी ग़लती बताई जिसका मैं आगे ज़रूर ध्यान रखूँगा!!! OBO परिवार में शामिल होना सफ़ल हो रहा है... ये सब बारीकियाँ मुझे सीखने को मिल रहे है!!!
आप सभी को कोटिशः धन्यवाद!!!


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2016 at 9:22am

आदरणीय आशीष भाई , गज़ल अच्छी कही , हार्दिक बधाइयाँ ।  मतले मे काफिया का निर्धारण जो हुआ सभी शेर मे निभा नही पाये हैं । मै आदरणीय समर भाई की बातों से सहमत हूँ ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 20, 2016 at 10:29pm

आदरणीय आशीष जी सादर. सुंदर प्रयास हुआ है गजल पर. काफिये पर आदरणीय समर साहब ने कहा ही है. सादर.

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 19, 2016 at 2:06pm
आदरणीय श्री आशीष जी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Samar kabeer on September 18, 2016 at 3:07pm
जनाब आशीष सिंह ठाकुर'अकेला'जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,इसके लिये बधाई स्वीकार करें ।
मतले के सानी मिसरे और दूसरे शैर में क़ाफ़िया दोष है,आपने 'कर''डर''घर'काफियों के साथ 'फिर'और'गिर'के क़ाफ़िए लिये हैं जो गलत हैं,देखियेग ।
Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 17, 2016 at 11:15am

कोटिशः धन्यवाद आ. श्याम नारायण वर्मा जी हौसला अफ़ज़ाई  के लिए !!!

Comment by Shyam Narain Verma on September 17, 2016 at 10:46am
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

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