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फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन

है यही मिशन हमारा कि हराम तक न पहुँचे
कोई मैकदे न जाए कोई जाम तक न पहुँचे

थे ख़ुदा परस्त जितने,वो ख़ुदा से दूर भागे
जो थे राम के पुजारी,कभी राम तक न पहुँचे

ज़रा सीखिये सलीक़ा,नहीं खेल क़ाफ़िए का
वो ग़ज़ल भी क्या ग़ज़ल है जो कलाम तक न पहुँचे

लिखो तज़किरा वफ़ा का तो उन्हें भी याद रखना
वो सितम ज़दा मुसाफ़िर जो मक़ाम तक न पहुँचे

लिया नाम तक न उसका,ए "समर" यही सबब था
मिरी आशिक़ी के क़िस्से रह-ए-आम तक न पहुँचे

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on September 1, 2016 at 7:31pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by रामबली गुप्ता on September 1, 2016 at 6:21pm
वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल आद० समर भाई जी। दिल से बधाई लीजिये
Comment by Samar kabeer on August 31, 2016 at 7:42pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ ।
ये ग़ज़ल मैने तरही मुशायरे के चलते ही फिल्बदीह कही थी और अपनी ग़ज़ल के रिप्लाय में ही इस नोट के साथ पेश की थी कि शैर न.2 में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ के दोष को नज़र अंदाज़ कर के पढ़ें,यहां लिखना भूल गया ।
Comment by Samar kabeer on August 31, 2016 at 7:35pm
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 31, 2016 at 7:26pm

मोहतरम  जनाब  समर कबीर  साहिब आदाब  , बेहतर ग़ज़ल हुई है , शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं -----शेर नंबर --2 में शायद तक़ाबुले रदीफेन का दोष आगया है , देख लीजियेगा -- 

Comment by Ravi Shukla on August 31, 2016 at 6:57pm
आदरणीय समर साहब बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय दिनेश जी ने जिस शेर का ज़िक्र किया है वो शेर वाकई उस्तादाना कलाम है जिसकी जुस्तजू हम जैसे तालिबे इल्म को होती है आपकी ग़ज़ल में काफिया खुद ब् खुद आता है मतले से मक्ते तक दाद और मुबारक बाद हाज़िर है ।
Comment by Samar kabeer on August 31, 2016 at 5:44pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण जी आदाब,दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका शुक्रिया अदा करता हूँ ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 30, 2016 at 8:38pm

बेहतरीन आदरणीय , उस्तादाना गजल .  वाह

Comment by Samar kabeer on August 29, 2016 at 10:44pm
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 29, 2016 at 10:42pm
जनाब नवीन जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

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