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"देश प्रेम" लघुकथा

कमांडर ऑफ़ चीफ़ - "शाबाश राकेश ! तुम्हारा शौर्य पराक्रम अन्य सैनिकों से अलग है । तुम्हारे शौर्य और पराक्रम में जोश है,दीवानगी है,आक्रोश है । वेल डन ।"
राकेश राणा - "यस सर । देश प्रेम मेरा परम धर्म है । देखना एक दिन मैं इस धर्म को निभाकर दिखाऊँगा । माँ को यही वचन देकर आया हूँ ।"
सीमा पर से गोली बारी शुरू हुई और देखते ही देखते युद्ध छिड़ गया । राकेश राणा अंत समय तक लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गया ।
तिरंगे में लिपटा ताबूत जैसे ही गाँव पहुँचा ,जन सैलाब उमड़ पड़ा । राकेश राणा की माँ शारदा देवी राणा चीख़ चीख़ कर यही कह रहीं थी कि "आज मेरे बेटे ने देश प्रेम का धर्म शहीद होकर निभाया है । मैं भी अपना धर्म निभाऊँगी । अपने बेटे को ख़ुद मुखाग्नि दूँगी ।" सारे गाँव वाले हतप्रभ थे ।

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on September 10, 2016 at 10:52am
मोहतरमा अल्का जी आदाब,आपको लघुकथा अच्छी लगी लिखना सार्थक हुआ,सराहना के लिये आपका शुक्रिया ।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 9, 2016 at 8:23pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, मैं लघुकथा की बारीकियों को तो नहीं जानती मुझे  यह लघुकथा बहुत अच्छी लगी. सादर.

Comment by Samar kabeer on July 13, 2016 at 11:34pm
जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,रचना की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on July 13, 2016 at 11:32pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,मोहतरमा प्रतिभा पांडे जी की शंका का समाधान तो आपने कर दिया ,उसके लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ,लघुकथा की पुनः सराहना और उत्साहवर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
बाक़ी आपने जो मार्गदर्शन दिया है उसके लिये गुणीजनों का इन्तिज़ार कर लेते हैं ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 13, 2016 at 10:36pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, मैं लघुकथा की बारीकियों को बहुत अच्छे से नहीं जानता किन्तु मुझे यह लघुकथा अच्छी लगी. सादर.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 13, 2016 at 9:38pm
एक मशहूर ग़ज़लकार की लेखनी से लघुकथा सृजन अभ्यास के क्रम में यह कुछ अलग ही तरह की शैली की बढ़िया लघुकथा बन पड़ी है, जिसमें प्रवाह व घटनाओं की निरंतरता के कारण *'कालखण्ड दोष नहीं है'* यह पूरी तरह विवरणात्मक शैली की हो सकती थी, लेकिन रचनाकार ने संवाद सम्मिलित करते हुए इसे पाठकों के लिए रुचिकर बनाया है। इसमें मुझे सिर्फ़ एक ख़ास कमी लग रही है। वह यह कि रचना के आरंभ में दो संवाद 'नाटिका' की शैली में पेश किए गए हैं-
1- कमांडर ऑफ़ चीफ़ - "शाबाश राकेश ! तुम्हारा शौर्य ...."
2- राकेश राणा - "यस सर । देश प्रेम मेरा परम धर्म है । देखना एक दिन मैं इस धर्म को ...."

लघुकथा शैली में ऐसा कुछ लिखा जा सकता था-
1- कमांडर ऑफ़ चीफ़ ने सैनिक के शौर्य और पराक्रम की तारीफ़ करते हुए कहा -"....."
2- सैनिक राकेश राणा ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ ओजस्वी स्वर में उत्तर देते हुए कहा- "....."

मुझे नहीं पता कि मैं सही कह रहा हूँ या ग़लत। मुझे भी यहाँ सुधी गुणीजन के मार्गदर्शन की आवश्यकता है। एक बार फिर से बेहतरीन प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय समर कबीर साहब।
Comment by Samar kabeer on July 12, 2016 at 11:54pm
मोहतरमा प्रतिभा पांडे जी आदाब,आपने रचना को अपना क़ीमती समय दिया,उसकी कमी की तरफ़ इशारा किया ,शायद आप यह कहना चाहती हैं कि इसमें कालखंड दोष है,लेकिन मैं ऐसा नहीं समझता ,फिर भी कुछ गुणीजन तो इस रचना से गुज़र चुके ,उन्होंने इसकी तरफ़ कुछ इशारा नहीं किया,कुछ और गुणीजनों का इन्तिज़ार कर लेते हैं । राकेश तो शहीद हो चुका इसलिये फ़्लैश बेक वाली बात तो जमेगी नहीं । इस मार्गदर्शन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,ऐसे ही स्नेह बनाए रखियेगा ।
Comment by Samar kabeer on July 12, 2016 at 11:42pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,साहित्य से प्रेम करता हूँ और चाहता हूँ कि हर विधा पर क़लम आज़माई करूँ,रचना आपको पसंद आई,मेरा लिखना सार्थक हुवा , सराहना और उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by Samar kabeer on July 12, 2016 at 11:40pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,ये सब ओबीओ का कमाल है ।
रचना आपको पसंद आई,मेरा लिखना सार्थक हुवा , सराहना और उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by pratibha pande on July 12, 2016 at 9:57pm

  देश प्रेम से ओत प्रोत प्रभावशाली रचना पर बधाई  प्रेषित है आदरणीय   समर कबीर जी ... घटनाओं  के समय अलग अलग हो गए  हैं. .,  आप कमांडर के साथ राकेश के वार्तालाप को फ़्लैश बेक में डाल सकते हैं जो वो सोच रहा है राकेश के दाह संस्कार  के समय  और फिर  वर्तमान में लौटता है राकेश की माँ के  संवाद  को सुनकर

सादर  

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