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खुदाया उसकी तकलीफें मेरी जागीर हो जाएँ

1222-1222-1222-1222
-------------------------------

ख़ुदाया उसकी तकलीफ़ें मेरी ज़ागीर हो जाएँ,
ज़माने भर की ख़ुशियाँ उसकी अब ताबीर हो जाएँ |

यूँ दर्दों में तडपना और आन्हें मेरे सीने में,
कहीं तब्दील हो आन्हें न अब शमशीर हो जाएँ |

खुदा की हर अदालत में उसे गर चाह मिल जाए,
वो देखे ख्वाब दुनिया के, सभी तस्वीर हो जाएँ |

न मंज़िल है न वादा है न उसकें बिन मैं ज़िन्दा हूँ,
कहीं ये आदतें उसकी न अब तकदीर हो जाएँ |

जुबां से चुप ये आँखें बंद उसके कानों पर फालिज,
शहर ज़ख्मों के, सीने में, न अब तामीर हो जाएँ |

यूँ किस्से अपने लिक्खे ख़ूब उसने ख़ुद सफ़ीनों पर,
फ़कत चाहत थी उनकी वो सभी तहरीर हो जाएँ |


हर्ष महाजन  

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Harash Mahajan on May 4, 2018 at 2:10pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज'  जी उत्साहवर्धक टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया |

सादर |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 3, 2016 at 8:02pm

बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय 

Comment by Harash Mahajan on August 20, 2016 at 6:32pm
आ0 समर कबीर जी सादर प्रणाम । सर आपने पसंद किया मेहनत सफल हुई । आप इसी तरह नज़रें इनायत रखियेगा सर । बहुत बहुत शुक्रिया ।

आभार ।
Comment by Samar kabeer on August 17, 2016 at 10:53pm
अब क़ाफ़िये ठीक बैठे हैं ,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Harash Mahajan on August 17, 2016 at 5:52pm

आ० Samar kabeer जी मैं अपनी तहरीर में कुछ परिवर्तन कर आपके समक्ष लेकर आया हूँ सर !.....उम्मीद है इस बार आप निराश नहीं होंगे.....नज़रें इनायत कीजिये सर !!

सादर !!

खुदाया उसकी तकलीफें मेरी जागीर हो जाएँ,
ज़माने भर की खुशियाँ उसकी अब ताबीर हो जाएँ |

यूँ दर्दों में तडपना और आन्हें मेरे सीने में,
 कहीं तब्दील हो आन्हें न अब शमशीर हो जाएँ |

खुदा की हर अदालत में उसे गर चाह मिल जाए,
वो देखे ख्वाब दुनिया के, सभी तस्वीर हो जाएँ |

न मंजिल है न वादा है न उसकें बिन मैं जिंदा हूँ,
कहीं ये आदतें उसकी न अब तकदीर हो जाएँ |

जुबां से चुप ये आँखें बंद उसके कानों पर फालिज,
शहर ज़ख्मों के, सीने में, न अब तामीर हो जाएँ |

यूँ किस्से अपने लिक्खे खूब उसने खुद सफीनों पर,
फकत चाहत थी उनकी वो सभी तहरीर हो जाएँ |
***

Comment by Harash Mahajan on August 17, 2016 at 5:44pm

आ० मनोज कुमार जी नमस्कार .....आभार >>>>>
आज कुछ तब्दीली के साथ अपनी ग़ज़ल मैं वापिस लेकर आया हूँ तो देखा आपके हाथों सुधर कर ग़ज़ल उम्दा हुई है.....आपने मेरी तहरीर पर इतना वक़्त देकर उम्दा किया इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया |
उम्मीद है आप इसी तरह हौंसिला अफजाई करते रहेंगे |

आभार |

Comment by Harash Mahajan on August 17, 2016 at 5:41pm

आ० सतविन्दर कुमार जी बहुत बहुत शुक्रिया अहसास पसंद करने हेतु...


सादर !!

Comment by मनोज अहसास on August 14, 2016 at 4:18pm
कुछ परिवर्तन किया है आदरणीय
केवल काफिया
हालांकि काफिया शेर के साथ ही या पहले ही निर्धारित होने पर पूरा अर्थ देता है
यहाँ मेरे काफिया डालने से हो सकता है कुछ शेर अर्थ हीन भी हो गए होंगे
फिर भी आप काफिया इस तरह से ही डालिये
सादर



खुदाया उसकी तकलीफें मेरी जागीर हो जाएँ,
ज़माने भर की खुशियाँ उसकी अब तक़दीर हो जाएँ |

यूँ दर्दों में तडपना उसका, आन्हें मेरे सीने में,
खुदा से इल्तिजा सब आहें ये बेपीर हो जाएँ |

खुदा की हर अदालत में उसे गर चाह मिल जाए,
वो देखे ख्वाब दुनिया के, सभी तस्वीर हो जाएँ |

न मंजिल है न वादा है न उसके बिन मैं जिंदा हूँ,
कहीं ये आदतें उसकी न अब तकदीर हो जाएँ |

यहाँ अब मौत भी बेबस खडी उसके अहाते पर,
ये ऐसी चाहतें दुनियां में अब तहरीर हो जाएँ |
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 13, 2016 at 1:02pm
बहुत् उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय हर्ष महाजन जी।
Comment by Harash Mahajan on August 12, 2016 at 4:39pm
आ0 समर कबीर जी रचना पर आपकी उपस्थिति से दिल को होउन्सिल मिलता है । सर आपके पास इस रचना में काफिये के साथ फिर से उपस्थित होता हूँ । बहुत बहुत धन्यवाद् ।

साभार ।

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