For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गम पे उठी ग़ज़ल तो वो दिल में उतर गयी (इस्लाही ग़ज़ल)

221 2121 1221 212

...

गम पे उठी ग़ज़ल तो वो दिल में उतर गयी,

खुशियों का ज़िक्र आया कयामत गुज़र गयी ।

इतनी थी खुशनसीब मेरी ज़िंदगी मगर,

इक प्यार की लकीर न जाने किधर गयी ।

वो छोटी- छोटी बातों पे रहने लगे खफा,

कहने लगे थे लोग कि किस्मत सँवर गयी ।

वो गैर सा हुआ मुझे अफसोस था मगर,

वो अजनबी हुआ मेरी दुनियाँ बिखर गयी ।

निकली जो आह दिल से असर कब कहां हुआ,

दिल से निकल के रूह के अंदर उतर गयी ।

---------

मौलिक व अप्रकाशित 

हर्ष महाजन

Views: 536

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on February 26, 2018 at 9:20pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी आदाब । आपकी आमद और हौंसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । आदरणीय समर साहब की देखरेख में ग़ज़ल का संवरना तो लाज़मी है । उनसे सीखने को बहुत कुछ मिला है ।शुक्रित एक बार फिर ।

सादर ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 7:59pm

आ. भाई हर्ष जी, अच्छा प्रयास हुआ है । माननीय भाई समर जी के मार्गदर्शन में यह और निखर जायेगी ।

Comment by Harash Mahajan on February 25, 2018 at 8:35pm
आदरणीय समर कबीर जी आदाब । खुशनसीब हूँ सर कि आप की नज़र मेरी इस कृति पर पड़ी । आपकी कला से थोड़े में ही बहुत कुछ सीखने को मिलता है । में शुक्र गुज़ार हूँ कि आपने मेरी इस गज़ल में जान फूंक दी । आपके मार्ग दर्शन के लिए बहुत बहुत आभार । में आपकी इज़ाज़त से अपनी ग़ज़ल को एडिट किये देता हूँ ।
सादर
Comment by Samar kabeer on February 25, 2018 at 6:10pm

जनाब हर्ष महाजन साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

क़वाफ़ी के बारे में जनाब आरिफ़ साहिब ने ठीक कहा ।

मतला यूँ कर लीजिए :-

"ग़म पर लिखी ग़ज़ल तो वो दिल में उतर गई

ख़ुशियों का ज़िक्र आया क़यामत गुज़र गई

दूसरे शैर के सानी मिसरे में 'अचानक' की जगह " न जाने" कर लीजिये ।

तीसरे शैर के सानी मिसरे में 'बदल' की जगह "सँवर" कर लीजिये ।

चौथा शैर क़ाफिये के हिसाब से ठीक है ।

आख़री शैर का सानी मिसरा यूँ कर लें :-

'दिल से निकल के रूह के अंदर उतर गई'

आप चाहें तो ऐडिट कर सकते हैं ।

Comment by Harash Mahajan on February 24, 2018 at 1:16pm

शुक्रिया आदरनीय मुहम्मद आरिफ जी...एक मुद्दत से सोच रहा था कि अलग से काफिये की खेप तैयार कर सकूं । मगर आपकी नजर से ये हो नही पाया । अब वापिस फिर से दुधार के साथ यही ग़ज़ल लेकर आने की कोशिश करता हूँ । उम्मीद है आप गुणीजनों का साथ मिलता रहेगा । शुक्रिया सर।

सादर ।

Comment by Mohammed Arif on February 23, 2018 at 5:33pm

आदरणीय हर्ष महाजन जी आदाब,

                     ओबीओ मंच पर आपका हार्दिक स्वागत है ।

                 आपकी ग़ज़ल ग़ज़ल के निर्धारित मापदंडों का कतई निर्वाह नहीं कर रही है । काफ़ियों में एकरूपता नहीं है । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे । बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
6 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
13 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"  कृपया  दूसरे बंद की अंतिम पंक्ति 'रहे एडियाँ घीस' को "करें जाप…"
15 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"पनघट छूटा गांव का, नौंक- झौंक उल्लास।पनिहारिन गाली मधुर, होली भांग झकास।। (7).....ग्राम्य जीवन की…"
16 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"    गीत   छत पर खेती हो रही खेतों में हैं घर   धनवर्षा से गाँव के, सूख गये…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"गांव शहर और ज़िन्दगीः दोहे धीमे-धीमे चल रही, ज़िन्दगी अभी गांव। सुबह रही थी खेत में, शाम चली है…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"सादर अभिवादन "
Friday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"स्वागतम"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service