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यूँ ज़िन्दगी में अब मेरी वो बात नहीं है

221 1221 1221 122

यूँ ज़िन्दगी में खुशियों सी वो बात नहीं है,
बिछुड़ा है जरा साथ मगर मात नहीं है |

मैं शिकवों भरी शामो सहर देख रहा हूँ,
ये घाव उठा दिल पे है सौगात नहीं है |

चलने लगी है आखों में रुक-रुक के ये नदिया,
ये गम का दिया रंग है बरसात नहीं है |

क्यूँ काल से उम्मीद रखूँ कोई रहम की,
है कर्मों की ये बात कोई घात नहीं है |

कुछ लोग लुटाते हैं शबो रोज़ नसीहत,
मैं कर सकूं ये बात भी औकात नहीं है |


________________________

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Harash Mahajan on August 4, 2016 at 12:10am
आ० समर कबीर सर आपका बहुत आभारी हूँ | आपने व्याकरण की इतनी बारीकी से वाकिफ करवाया | उम्मीद है सर आप अपनी बेशकीमती राय से हमें यूँ ही नवाजते रहेंगे |

सादर !!

यूँ ज़िन्दगी में खुशियों सी वो बात नहीं है,
बिछुड़ा है जरा साथ मगर मात नहीं है |

मैं शिकवों भरी शामो सहर देख रहा हूँ,
ये घाव उठा दिल पे है सौगात नहीं है |

चलने लगी है आखों में रुक-रुक के ये नदिया,
ये गम का दिया रंग है बरसात नहीं है |

क्यूँ काल से उम्मीद रखूँ कोई रहम की,
है कर्मों की ये बात कोई घात नहीं है |

कुछ लोग लुटाते हैं शबो रोज़ नसीहत,
मैं कर सकूं ये बात भी औकात नहीं है |
Comment by Samar kabeer on August 3, 2016 at 6:54pm
लेकिन दूसरे शैर में आपने रदीफ़ 'हैं'लिख दी है उसे "है" कीजिये
Comment by Samar kabeer on August 3, 2016 at 6:51pm
जी हाँ,वो दोष अब नहीं रहा ।
Comment by Harash Mahajan on August 3, 2016 at 4:49pm

आ० समर कबीर जी इंगित मिसरों में ही गलती को जरा सुधार कर एक अदना सी कोशिश फिर से की है ......जरा नज़रें इनायत कीजिये सर !!

"यूँ ज़िन्दगी में खुशियों सी वो बात नहीं है,
बिछुड़ा है जरा साथ मगर मात नहीं है |

मैं शिकवों भरी शामो सहर देख रहा हूँ,
ये घाव उठा दिल पे है सौगात नहीं हैं |"

Comment by Harash Mahajan on August 2, 2016 at 3:49pm
आदरणीय गिरिराज जी नमस्कार । कृति को पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार ।
Comment by Harash Mahajan on August 2, 2016 at 3:43pm
आदरणीय समर कबीर जी नमस्कार । प्रोत्साहन के लिए तहेदिल शुक्रगुजार हूँ । सर आपने जिन बिंदुओं पर निशानदेही की है उसके लिए मैं बहुत आभारी हूँ । उनको दुरुस्त कर फिर से हाज़िर होता हूँ ।
सादर !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:43pm

आदरनीय हर्ष भाई , बहुत अक्छी गज़ल हुई है . दिली बधाइयाँ स्वीकार करें । बाक़ी बातें आ. समर भाई कह ही चुके हैं , खयाल कीजियेगा।  आखों को आँखों कर लीजियेगा ।

Comment by Samar kabeer on August 2, 2016 at 10:43am
जनाब हर्ष महाजन साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है इसके लिये बधाई स्वीकार करें ।
मतले और दूसरे शैर के सानी मिसरे में "हालात"और "जज़्बात"शब्द बहुवचन हैं इसलिए इन मिसरों में रदीफ़ 'है' की जगह "हैं" हो रही है, जबकि पूरी ग़ज़ल में आप "है" रदीफ़ लेकर चले हैं,इस तरफ ध्यान दीजियेगा ।
Comment by Harash Mahajan on August 2, 2016 at 8:27am
आ0 सुशील सरना जी आपको ग़ज़ल का आनंद आया मेरी मेहनत वसूल हुई । आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

सादर !!
Comment by Harash Mahajan on August 2, 2016 at 8:22am
"आदरणीय सुरेश कुमार जी बहुत बहुत आभार आपका।आपको रचना पसन्द आई,दिल को सुखद अनुभव हुआ।
सादर !!

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