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मसअले कितने मुझे तेरे सवालों में मिलें

संशोधित

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मसअले कितने मुझे तेरे सवालों में मिले

यूँ अँधेरों की झलक दिन के उजालों में मिले

 

आपके ग़म से किसी को कोई निस्बत ही कहाँ

बेबसी दर्द हमेशा बुरे हालों में मिले

 

अब मेरे शहर में भी लोग खिलाड़ी हुए हैं

पैंतरे खूब हर इक शख़्स की चालों में मिले

 

चंद लम्हात मसर्रत के सुकूँ के कुछ पल

ऐसे मौके तो मुझे सिर्फ ख़यालों में मिले

 

दोस्ती और मुहब्बत के मनाज़िर हर सुब्ह

मेज़ पर लुढ़के हुए मय के पियालों में मिले

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2016 at 12:15pm

आ० भाई शिज्जु जी इस सूंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 2, 2016 at 11:41am
अब मेरे शहर में भी लोग खिलाडी हुए हैं
पैंतरे खूब हर इक शख्स की चालों में मिले

बहुत खूब। इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है ।
Comment by Samar kabeer on August 2, 2016 at 10:51am
जनाब शिज्जु शकूर साहिब आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by Harash Mahajan on August 2, 2016 at 6:29am
आ0 शिज्जु जी बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
Comment by Sushil Sarna on August 1, 2016 at 9:04pm

चंद लम्हात मसर्रत के सुकूँ के कुछ पल
ऐसे मौके तो मुझे सिर्फ ख़यालों में मिलें

दोस्ती और मुहब्बत के मनाज़िर हर सुब्ह
मेज़ पर लुढ़के हुए मय के पियालों में मिलें

बहुत खूब आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब आपने नज़ाकत भरे अहसासों को बहुत ही ख़ूबसूरती से शेरों में पिरोया है। दिल से दाद कबूल फरमाएं सर।

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