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ग़ज़ल- शिज्जु शकूर

212 212 212 212
वो बहुत खुश है ‘उल्लू’ बनाकर मुझे
और तस्कीं है अहसाँ जताकर मुझे

करते हो फल की उम्मीद ऐ जान तुम*
रेत में मय तमन्ना दबाकर मुझे

कोयले की दहकती हुई आँच पर
रख दिया काँटों में से उठाकर मुझे

अपने अह्सान के बोझ को लादकर
मार तो डाला आखिर बचाकर मुझे

रोज़ बेचैनियाँ ही मिलीं रू-ब-रू
खुद को सारे जहाँ से छुपाकर मुझे

तस्कीं- संतोष

*फल की उम्मीद करते हो नादान तुम
साथ इच्छाओं के यूँ दबाकर मुझे

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 17, 2016 at 8:38am
मुआफ़ी चाहूँगा समर साहब मैं आपसे कुछ ज़ियादा की उम्मीद करता हूँ और बात जब तक मेरे समझ में नहीं आती मैं तरमीम नहीं करता ये सच कहा आपने। वैसे ओबीओ में प्रस्तुत ग़ज़लों में जैसी जहाँ इस्लाह मिली ज़रूरत के मुताबिक बदला भी है।
Comment by Samar kabeer on July 16, 2016 at 8:17pm
मैने पहले ही लिख दिया है कि ये शब्द 'मीम ऐन'मिलाकर बना है इसलिये ऐन की आवाज़ 'य'नहीं 'अ'होगी 'म'अ''मय नहीं,ये लफ़्ज़ ऐसा है कि इसका इस्तेमाल उर्दू शाइरी में नहीं देखा गया,इसकी जगह कुछ और रखना चाहिये था,वैसे आपका ये लहजा मुझे पसन्द नहीं आया,किसी से कुछ सीखने का ये अंदाज़ नहीं होता,लहजे में नर्मी चाहिये, मेरी पहली प्रतिक्रया में ही आपको इशारा समझ लेना चाहिये था,ख़ेर कोई बात नहीं,आप उन टिपिकल लोगों में हैं जो कुछ कहने के बाद उसमें मुश्किल से ही तरमीम करते हैं,हाँ एक बात और ये शब्द भी उर्दू के उन शब्दों में शामिल है जिन्हें देवनागरी में लिखना मुश्किल होता है ।उम्मीद है आप समझ गये होंगे ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 7:44pm
जनाब समर साहब मय का प्रयोग साथ के अर्थ में देखा है। लेकिन ये क्या बात हुई, यदि मैं ग़लत हूँ तो समाधान भी सुझाना चाहिये न आपने सवाल दाग ही दिया :-)
Comment by जयनित कुमार मेहता on July 16, 2016 at 5:45pm
आदरणीय शिज्जु शकूर जी, बहुत अच्छे अशआर निकले हैं आपने। हार्दिक बधाई

"मय" वाला शेर मुझे भी समझ नहीं आया।
Comment by Samar kabeer on July 16, 2016 at 4:56pm
"रेत में मय तमन्ना दबाकर मुझे"
"मय"का अर्थ तो शराब होता है, विस्तार से बाद में समझाऊंगा,पहले मुझे ये बताइये कि आपने इस शब्द का इस्तेमाल उर्दू शाइरी में कहीं देखा है ? अगर देखा है तो कृपया मुझे भी बताएं । बाक़ी बातें आपके जवाब के बाद ।

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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 11:02am

बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 11:01am

बहुत बहुत शुक्रिया आ. राजेश दीदी, 

पहले वैसा ही लिखा था कुछ ठीक नहीं लगा इसलिए बदल दिया,


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 10:59am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील सरना सर


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 10:58am

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर कबीर साहब, कृपया विस्तार से समझाएँ


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2016 at 10:58am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी

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