For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बढ़ता जीवन,घटती ताकत(कुण्डलिया)/सतविन्द्र कुमार

जीवन का यह खेल है,जो चलता दिन रैन
समझे जो इस बात को,वह पाता है चैन
वह पाता है चैन,कभी फिर दुःख ना पाए
मस्ती में ले काट,समय जैसा मिल जाए
सतविंदर कह बात,वही जो हो सच्ची जी
कटते जब दिन -रात,चले ताकत घटती जी।।


मौलिक एवम् अप्रकाशित।

Views: 587

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 22, 2016 at 4:56pm
आभार सँग नमन आदरणीय विजय निकोरे सर।
Comment by vijay nikore on August 22, 2016 at 4:11pm

सुन्दर छंद के लिए बधाई, सतविन्द्र जी

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 17, 2016 at 12:15pm
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी,सादर प्रोत्साहन के लिए कोटिशः आभार।इस छंद से सम्बंधित समग्र ज्ञान हो जाए इसी अपेक्षा से यह यूँ लिखा है।इसको सही सीखने के लिए आप सब सुधिजनों की समीक्षात्मक टिप्पणियाँ सहृदय अपेक्षित हैं।सादर नमन
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 17, 2016 at 10:14am

वाह ! वाह ! आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी बहुत सुंदर कुण्डलिया छंद रचा है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. शब्दांश से अंत में कोई बुराई नहीं है, किन्तु जब छंद एक चतुश्कल से प्रारम्भ हो रहा है तो अंत भी उस शब्द से करना श्रेष्ठ होता. जब छंद किसी त्रिकल से प्रारम्भ किया गया हो तब शब्दांश का प्रयोग उचित जान पड़ता. सादर.

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 17, 2016 at 7:25am
आदरणीय समर कबीर जी आपको कुण्डलियाँ अच्छी लगी।उसके लिए बहुत बहुत आभार।नमन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 17, 2016 at 7:23am
आदरणीय रामबली जी पहले हम भी यही समझते थे।श्रद्धेय सौरभ पाण्डेय जी ने मई में छंदोत्सव में ऐसा ही कुण्डलियाँ छंद पेश किया था बाद में उस पर चर्चा हुई थी। तब उन्होंने अनेक ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए थे जिनमें ऐसे शब्दांश ही अंत में फिट किए गए हैं।श्रद्धेय सौरभ सर न माननीय प्रधान सम्पादक पूज्य श्री योगराज प्रभाकर जी जिज्ञासा पर यह विधान विस्तृत रूप से बताया था।यदि यह कुण्डलियाँ छंद विधान अनुरूप न होता तो प्रधान सम्पादक जी द्वारा ख़ारिज कर दिया गया होता।क्योंकि प्रारम्भ में मुझे कारण बताते हुए ऐसा किया जा चुका है।सादर
Comment by रामबली गुप्ता on July 17, 2016 at 5:38am
आद0 सतविंदर जी बताना चाहूँगा *जी* शब्दांश है शब्द नही। कुण्डलिया जिस शब्द या शब्द-समूह से शुरू होता है उसी पर समाप्त होता है।सादर
Comment by Samar kabeer on July 16, 2016 at 10:36pm
जनाब सतविंदर कुमार जी आदाब,में इस विधा को नहीं जनता,मगर अच्छी लगी,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 16, 2016 at 3:58pm
जी से शुरू जी पर खत्म हुई। प्रोत्साहन के लिए आभार आदरणीय राम बली जी
Comment by रामबली गुप्ता on July 16, 2016 at 12:50pm
सतविंदर जी सुंदर प्रयास है किन्तु कुण्डलिया जिस शब्द से शुरू होता है उसी पर समाप्त होता है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
7 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service