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आदरणीय सतविन्द्र भाई , दोहों पर बहुत सफल प्रयास हुआ है , दिल से बधाइयाँ आपको । आदरणीय केवल भाई जी ने उचित और विस्तृत सलाह दे ही दी है , खयाल कीजियेगा ।
आ० सतविंद्र भाई जी, दोहों पर बहुत ही सुंदर प्रयास हुआ है. आपके दोहो पर मैंने भी कुछ प्रयास करके साधने की कोशिश की है... देखा लीजियेगा......बहुत बहुत बधाई भाई जी. सादर
जननी से ही तो मिला,जीवन ये अनमोल............जननी से सबको मिला, जीवन यह अनमोल.
कर्ज चुका सकते नहीं,यही समय के बोल।।..........कर्ज चुका सकते नहीं , चाहे जितना बोल.
माँ ममता की मूर्त है,भाए बस सन्तान.............मां ममता की मूर्ति में, बसे प्यार-सम्मान.
उनके खातिर त्याग दे,खुद का पीना-खान।।......अपने बच्चों के लिये, हो जाती कुर्बान.
भोलेपन का माँ सही,करती है उपचार.............बिलकुल सही.
ज्ञान-प्रथम है सौंपती,उन्नत सोच-विचार।।....प्रथम ज्ञान दे सौंपती.....उन्नत सोच विचार.
पहला शिक्षक मात ही,देती सन्तन ज्ञान.........पहली शिक्षक मात ही, दे संतों सा ज्ञान.
चलना-बढ़ना सीखते,रिश्ते लेते जान।।..........चलना-पढ़ना बोलना, रिश्ते हैं सोपान.
बोल-चाल की सीख को,माँ से लेते जान..............बोल चाल यश नीति के......समझाती मांं राज.
लेकर समाज में चलें,तो ही मिलता मान।।.........मिले सफलता संघ में........कहते उसे समाज..
जननी सबकी माँ सही,जन्मभूमि भी मात...........बसुधा - नारी शक्ति से........जीवन मिला सुबोध.
इन दोनों के ही लिए,ध्यान धरो हे तात।।............इन दोनों का नित्य ही .......करे नमन गुणशोध.
//"लेकर समाज में चलें" // दोहों के प्रथम व तृतीय चरण में जगण शब्द निषिद्ध है....और यहांं //समाज// जगण शब्द है...इसी लिये गेयता भंग हो रही है...शुभ.शुभ.....सादर
माँ पर सुन्दर दोहावाली रची है आपने हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय सतविंदर जी
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