For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन

"तज़मीन बर ग़ज़ल हज़रत सय्यद रफ़ीक़ अहमद "क़मर" उज्जैनी साहिब"

ख़ज़ाँ देखी कभी मौसम सुहाना हमने देखा है
अँधेरा हमने देखा है,उजाला हमने देखा है
फ़सुर्दा गुल कली का मुस्कुराना हमने देखा है
"ग़मों की रात ख़ुशियों का सवेरा हमने देखा है
हमें देखो कि हर रंग-ए-ज़माना हमने देखा है"

_____

वो मंज़र जब कि माँओं से जुदा होने लगे बच्चे
वो दिन भी याद है जब फूल से मुर्झा गये चहरे
लहू से सुर्ख़ थे दरिया,गली,बाज़ार और कूचे
"हज़ारों आफ़तें टूटीं, हज़ारों हादसे गुज़रे
न पूछो दौर-ए-आज़ादी में क्या क्या हमने देखा है"
_____

बताओ किस तरह बर्बादियों का ये समाँ देखें
कली को फूल को भँवरों को हम मातम कुनाँ देखें
यहाँ क्या देखने को रह गया है,क्या यहाँ देखें
"अब इन आँखों से क्या वीरानीए दौर-ए-ख़ज़ाँ देखें
जिन आँखों से बहारों का ज़माना हम ने देखा है"
_____

बजा है दोस्तों इनकी शिकायत हम समझते हैं
हमें मालूम है इसकी हक़ीक़त हम समझते हैं
नहीं समझोगे तुम इनकी मुसीबत हम समझते हैं
"ग़रीबों को है कयूँ दुनिया से नफ़रत हम समझते हैं
ग़रीबों से सुलूक-ए-अह्ल-ए-दुनिया हम ने देखा है"
_____

बग़ावत की "समर" हर सम्त से आवाज़ उठ्ठेगी
सदाए-बैकस-ओ-मजबूर ऐसा रंग लाएगी
हक़ीक़त है,ज़माने की रविश कुछ ऐसे बदलेगी
" "क़मर" इक दिन बुलंदी पस्तियों के पाँव चूमेगी
कि यूँ भी इन्क़िलाब-ए-नज़्म-ए- दुनिया हम ने देखा है"

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1052

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on June 2, 2016 at 10:54pm
जनाब अनुज जी आदाब,सुख़न नवाज़ी और दाद-ओ-तहसीन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by shree suneel on June 2, 2016 at 9:47pm
आदरणीय समर कबीर सर जी, तजमींन विधा से आपने परिचय कराया इसके लिए आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. मुशायरे में हीं आपकी तजमींन पढ़ कर उत्साहित था.. और इस तजमींन पर तो दिल बाग़ बाग़ हुआ जाता है. हार्दिक बधाई आपको इस प्रस्तुति पर आदरणीय. मेरी भी कोशिश होगी कि कोई तजमींन लिखूं और आपका मार्गदर्शन प्राप्त हो. पुनः शुक्रिया सर, इस विधा से परिचय कराने के लिए. सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2016 at 4:19pm

दिल से और बड़े लिहाज़ से पढ़ गया आदरणीय. एक-एक विन्दु इस विधा का बेजोड़ दिख रहा है. हार्दिक बधाई .. 

आपने इस मृतप्राय सी विधा को इस पटल पर पुन्रुज्जीवित कर दिया है. इस केलिए आपके प्रति हृदयतल से साधुवाद आदरणीय समर साहब. 

सादर 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 3:53pm

वाह वाह | बेमिसाल | अलग ही तरह की अपने आपमें एक अलग और गज़ब की शैली है | समर साहब धन्यवाद अपने इस शैली के बारे में जानकारी भी दी है | कमाल की कलम है आपकी | इस मंच पर बहुत कुछ नया पढने को मिल रहा है यह भी उसमे से एक है | बधाई स्वीकारें जनाब |

Comment by kanta roy on June 1, 2016 at 9:59pm
वाह ! बहुत बढ़िया है यह भी ।आभार व बधाई भी प्रेषित है आपको इस नवीन तज़मीन के लिए । सादर ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 30, 2016 at 11:05pm

आदरणीय  समर कबीर  साहब  सादर  नमस्कार, सही  कहा  है आपने. मैंने  भी  प्रथम  बार ही  इस  तरह  की रचना पढ़ी   है और  आपने  जो  जानकारी  दी  है. उससे  साफ़  लगता  है  की  यह  आसान  कला  नहीं  है. फिरभी  मैंने  आपकी  दी जानकारी  और  आपकी  यह  रचना  अपने  पास  समझने के  लिए  सुरक्षित  रख  ली  है.  आप  पुनः  बधाई  स्वीकारें.जानकारी  देने  के  लिए  बहुत-बहुत  आभार. मैं  आपकी  दी  गई  जानकारी  के  अनुसार  फिर  एक  बार  यह  'तजमीन'  पढता  हूँ.  सादर.

Comment by Ravi Shukla on May 30, 2016 at 10:31pm
आदरणीय समर साहब कमाल।का कलाम है आपका वाह । इसी बहाने एक विधा के बारे जानकारी मिली कोशिश होगी तबअ आजमाई की । इसे अगर थोडा विस्तार से एक लेख के रूप में डिस्कशन उदाहरण सहित पोस्ट कर सके तो ज्यादा लाभ मिल सकेगा । हालाँकि हम जानते है आपके लिए काफी मुश्किल काम होगा ऐसा पोस्ट तैयार करवाना । बहरहाल बेहतरीन कलाम के लिए दाद और मुबारक बाद हाज़िर है । सादर
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 30, 2016 at 10:16pm

आदरणीय समर साहेब ..............वाह वाह .........बहुत खूब 

Comment by दिनेश कुमार on May 30, 2016 at 5:47pm
वाह वाह वाह। कमाल है आदरणीय समर साहब। क्या रवानी है । वाह। बेहतरीन तज़मीन। वाह
Comment by Samar kabeer on May 30, 2016 at 12:24am
जनाब अशोक कुमार रक्ताले साहिब आदाब,तज़मीन आपको पसंद आई ,लिखना सार्थक हुवा,आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

"तज़मीन"उर्दू शायरी की एक सिन्फ़् है जो आजकल देखने में नहीं आती,आप अपनी पसन्द के किसी शाइर की ग़ज़ल ले लीजिये,सबसे पहले मतला के सानी मिसरे पर तीन मिसरे कहिये उसी भाव में,फिर पहले शैर का ऊला मिसरे पर तीन मिसरे कहिये जो सानी पर चस्पाँ हो रहे हों,ऊला मिसरे पर मिसरा लगाने में रदीफ़ और क़ाफ़िया मज़कूर मिसरे को देखते हुए आप खुद तजवीज़ कर सकते हैं,और फिर इसी तरह मिसरे चस्पाँ करते जाइये,जिस ग़ज़ल की आप ताज़मीन कहें और उसमें मक़्ता है तो आपको भी अपने तीन मिसरों में से किसी एक में अपना तख़ल्लुस का इस्तेमाल करना लाज़मी है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
19 minutes ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
7 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
20 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service