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गुंचा गुंचा गुलाब हो जाये

२१२२    १२१२    २२/112

गुंचा गुंचा गुलाब हो जाये 

सारा पानी शराब हो जाये 

उसके वालिद को देख इश्क मेरा 

हड्डी वाला कबाब हो जाये

क्या जरूरत है खोलने की लब 

जब नजर से जबाब हो जाये

मेरी नजरों के रुख पे पड़ते ही

हाथ उसका नकाब हो जाये

साथ उनके गुजारे जो लम्हे

लिख सकूँ तो किताब हो जाये

साक़िया बात कल की कल होगी

आज का तो हिसाब हो जाये

आज जीभर पिला मुझे साकी

आशु मुफलिस नवाब हो जाये  

.

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 11, 2016 at 3:39pm

आदरणीय सौरभ सर ..मेरे लेखन के इस सफ़र में आप मेरे मार्गदर्शक है ..मैं सतत प्रयत्नशील हूँ ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मैं पूर्णतया सहमत हूँ ... कथ्य में कुछ नया पन हो इस मशविरे पर अमल का पूरा प्रयास करूंगा ...आप जैसे बिद्वत जनो का स्नेह और मार्गदर्शन यूं ही मिलता रहे इस कामना और सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 11, 2016 at 3:33pm

आदरणीय गोपाल सर आपकी प्रतिक्रिया के तहे दिल आभारी हूँ ..आदरणीय समर सर की बात से अब मैं बिलकुल सहमत हूँ सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 11, 2016 at 3:31pm

आदरणीय समर सर ..आपकी प्रतिक्रिया के तहे दिल आभारी हूँ आप आपके नजरिये से देख रहा हूँ बाकी ये दोनों अलग मिसरे ही लग रहे हैं ..बस सर आप का आशीर्वाद और मार्गदर्शन सदैव मिलता रहे ताकि मेरी रचनाओं में सुधार के साथ सोच को भी नए आयाम मिलते रहे सादर प्रणाम के साथ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 24, 2016 at 8:26pm

ये पूरी ग़ज़ल ही ऐसी कई ग़ज़लों का कुल परिणाम लग रही है. अतः सोच के हिसाब से कोई नयी बात उभर के नहीं आयी.

मतले से मैं बहुत आश्वस्त नहीं हुआ. और, पहला शेर हास्य-प्रधान हो जाने से आगे के शेरों की रूमानियत मन में चढ़ नहीं पायी. 
वैसे इतना इसलिए कह पा रहा हूँ कि आप हमारे मंच के पुराने ग़ज़लकार हैं. तो नये ग़ज़लकारों के बनिस्पत अधिक की उम्मीद गलत नहीं है. 
:-))

शुभ-शुभ

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 20, 2016 at 10:59pm

क्या बात  है आदरणीय क्या बात है बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 19, 2016 at 8:37pm

आ० आशुतोष जी  मतले को छोड़ दे तो गजल अच्छी कही है आपने ,. मैं  बहुत जानकार नहीं हूँ पर उस्तादों से सुना है की मतले के पहले मिसरे में कोई  दावा पेश करते है और सानी मिसरे में उसका जवाब होता है . सादर .

Comment by Samar kabeer on May 18, 2016 at 11:15pm
ग़ुंचा का अर्थ आपने कलियों का समूह लिखा है जो सही नहीं है,ग़ुंचा का अर्थ होता है फूल की कली ।
आपने जो मतले के भाव बताए हैं वो उजागर नहीं हो रहे हैं ,ये सिर्फ़ आपकी मात्र सोच है,मतले के दोनों मिसरों में रब्त (तुकांतता) आवश्यक है,जो आपके मतले में नदारद है,ये सिर्फ़ दो अलग अलग मिसरे हैं ,इसके अलावा कुछ नहीं ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 18, 2016 at 10:26pm
आदरणीय डॉ साहेब, आपका प्रयास बहुत अच्छा है। समर कबीर साहब की सलाह से सबको लाभ मिलता है जो कि आपको भी मिला।

हार्दिक बधाई। सादर!!
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 18, 2016 at 4:26pm

आदरणीय समर सर .आपके इस मार्गदर्शन से एक नयी दृष्टी मुझे मिली है मैं आपका शुक्रगुजार हूँ ..सर मैंने जो सोचा था उसके अनुरूप कलियों के समूह को जिसे गुंचा कहते है से मैं चाहता था कि इस तरह के तमाम फूलों के गुच्छे गुलाबों में तब्दील हो जाए ताकि बातावरण रूमानियत से भर जाए और फिर साथ में सारा पानी भी शराब हो जाए तो मयकशी और रूमानियत से भरा बाताबरण सोने पर सुहागे जैसा हो जाये यहाँ मेरी दो कामनाएं थीं जो स्वतंत्र थी किन्तु एक दूसर के प्रभाव को बढाने में कारगर होंगी यह सोचकर लिखा था ..लेकिन आप के सुझाव् से मुझे अपनी सोच को नया आयाम मिला है //मेरी सोच थोड़ी बहुत सही है या पूर्णतया गलत इस पर आपको एक बार और कष्ट देना चाहता हूँ सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Samar kabeer on May 17, 2016 at 6:40pm
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी आदाब,मतले के बारे में बात स्पष्ट करने की कोशिश करता हूँ ।

आपके मतले का ऊला मिसरा :-

'ग़ुंचा ग़ुंचा गुलाब हो जाये'

ग़ुंचा ग़ुंचा गुलाब क्यूँ हो जाए साहिब ? अब इस का सानी मिसरा देखिये :-

'सारा पानी शराब हो जाये'

ग़ुंचा ग़ुंचा गुलाब होने से सारा पानी शराब कैसे हो सकता है,इसकी वजह नहीं है कुछ ,अब आपके ऊला मिसरे पर यह मिसरा देखिये :-

"वो अगर बे हिजाब हो जाये
ग़ुंचा ग़ुंचा गुलाब हो जाये"

"डाल दे पाँव तू अगर इसमें
सारा पानी शराब हो जाये"

उम्मीद है आप मेरी बात समझ गए होंगे, बाक़ी शुभ-शुभ ।

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