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हाथों को मेरे तुम थाम लो

मेरा ही बस तुम नाम लो

कानों में अमृत रस घोलो

मैं सुनती रहूँ बस तुम बोलो|

 

केशों को मेरे तुम सहलाओ

बातों से मेरा जी बहलाओ

बादल तुम नेह के बरसाओ

नैनों में छिपा लूँ आ जाओ|

 

नज़रों से मुझे तुम पढ़ते रहो

नित स्वप्न सुरीले गढ़ते रहो

आगे ही आगे बढ़ते रहो

सोपान ह्रदय के चढ़ते रहो|

 

जीवन की मुझे तुम आस दो

नेह का अपने विश्वास दो

यौवन का मुझे मधुमास दो  

एहसास मुझे कुछ ख़ास दो|

 

पलकों को चूम लो हौले से

मासूम अधर ये भोले से

हैं नैन शरारत घोले से

कुछ बंद हुए कुछ खोले से|

 

जब सूरज डूबे शाम ढले

जब जीवन की हर बात चले

पुरे हो जाए स्वप्न पले

लग जाऊ पिया मैं तुमसे गले||

सरिता पन्थी "मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by sarita panthi on April 23, 2016 at 8:04pm

Narendrasin Chauhan जी ह्रदय से आभार आपका 

Comment by sarita panthi on April 23, 2016 at 8:03pm

Dr Ashutosh Mishra उत्साहं वर्धन के लिए आपका ह्रदय से आभार 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 1, 2016 at 10:07pm
आदरणीया सरिता इस सूंदर मनभावन सूंदर रचना के लिए हार्दिक नधायी
Comment by narendrasinh chauhan on March 30, 2016 at 10:42am

बहुत  सुंदर रचना 

Comment by रामबली गुप्ता on March 30, 2016 at 10:08am
वाह क्या बात है आदरेया सरिता जी
बहुत ही सुंदर

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