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क्या है जीवन, आज समझने मैं आया हूँ

कठिन समय का दर्द सदा ही पाया मैंने

बस आशा का गीत   हमेशा गाया मैंने

जब तुम बनते धूप, बना तब मैं साया हूँ

 

जन्म काल से सत्य एक जो जुड़ा हुआ है

मानव की उफ़ जात बनी ये आदत कैसी

सदा ज्ञात यह बात मगर क्यों भूले जैसी

वहीँ शून्य आकाश एक पथ मुड़ा हुआ है

 

आया है जो आज उसे निश्चित है जाना

इस माटी का मोह, रहे क्यों साँझ सकारे?

इस माटी का रूप बदल जायेगा प्यारे 

फिर भी रे इंसान सत्य को कब पहचाना

 

कठिनाई पर व्यर्थ मनुज तेरा रोना है

जीवन का उत्थान कर्म पथ से होना है

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Ram Ashery on May 5, 2016 at 2:32pm

very nice work 

Comment by vijay nikore on April 26, 2016 at 2:08pm

 प्रथम प्रयास ही इतना कामयाब हुआ है तो आगे क्या होगा ! हार्दिक बधाई।

Comment by Ravi Shukla on April 24, 2016 at 3:55pm
आदरणीय मिथिलेश जी इस विधा के बारे में जानकारी नही है किन्तु भाव तक पंहुच रहे है । सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई आपको ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 24, 2016 at 2:28pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..सोनेट के बिषय में जानकारी नहीं है लेकिन आपकी रचना को पढ़कर समझ आया ..इस उम्दा रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 5, 2016 at 10:40pm
 खूबसूरत रचना 


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Comment by rajesh kumari on March 23, 2016 at 8:13pm

वाह  वाह  अतीव सुन्दर प्रयास सानेट में रोला का छोंका वाह्ह्ह्हह  दिल से बधाई लीजिये भैया इस शानदार प्रस्तुति पर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2016 at 4:59pm

आ० मिथिलेश जी , सानेट की  २४ मात्राएँ  रोला के ११,१३ में खूबी छजती है . मैंने रोला में एक प्रयोग भी किया है  मैंने विषम चरण को भी तुकांत रखने की कोशिश की है  इससे रोला का सौन्दर्य बढ़ जाता है .पर सानेट में  ऐसा संभव नहीं है . आपका प्रथम प्रयास ही बेजोड़ है . सादर . 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 23, 2016 at 12:12pm

शिल्प  विधा  की  तो  मुझे  जानकारी  नहीं | 11-13  मात्राओं  में  रचित  रचना के  सुंदर भावों के लिए  बधाई  

कठिनाई पर व्यर्थ मनुज तेरा रोना है

जीवन का उत्थान कर्म पथ से होना है | --- यथार्थ  भावों  की अनुपम प्रस्तुति | वाह  !

 

Comment by narendrasinh chauhan on March 23, 2016 at 12:07pm
नव प्रयास एवं सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई।
Comment by Rahila on March 23, 2016 at 11:42am
सभी उलझे है जीवन की उलझन में,सुन्दर रचना प्रस्तुत की आद. मिथलेश सर जी! काफी समय से आपकी रचनाओं की प्रतिक्षा में थी।बहुत बधाई रचना के लिये ।सादर

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