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ग़ज़ल :- हज़रत-ए-'मीर' की ज़मीन में

फाइलातुन मफाइलुन फेलुन / फइलुन / फेलान

चैन इस दिल को कब नहीं आता
बाम पर चाँद जब नहीं आता

ख़ुश मिज़ाजी हमारा शैवा है
हमको गैज़-ओ-ग़ज़ब नहीं आता

सब हैं सैराब आपके दर से
एक भी तिश्ना लब नहीं आता

नामा उनका लिये हुए क़ासिद
पहले आता था अब नहीं आता

तल्ख़ लहजा मिरा मुआफ़ करें
बे अदब हूँ अदब नहीं आता

'मीर' साहिब,ग़ज़ल कही लेकिन
शैर कहने का ढब नहीं आता

ज़िक्र तेरा "समर" करेंगें वो
नाम भी ज़ेर-ए-लब नहीं आता

समर कबीर
मौलिक / अप्रकाशित

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Comment

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Comment by vijay nikore on March 14, 2016 at 1:06pm

बहुत ही खूबसूरत गज़ल है, पढ़ कर दिल बाग-बाग हुआ । बस, ऐसा ही लिखते रहें।

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 5, 2016 at 10:25am

जनाब समर साहब सलाम अर्ज़ है, सुन्दर गजल है ..उर्दू लफ्ज मुझे तो बहुत कम मालूम है फिर भी मजा आया..नादिर जी की बातों से कुछ तो आप ने स्पष्ट कर ही दिया ..कुछ कठिन शब्द के मायने अगर लिख देंगे तो मुझसे लोगों को और आनंद आएगा 

भ्रमर ५

Comment by Samar kabeer on February 15, 2016 at 10:57pm
जनाब तस्दीक़ अहमद जी,आदाब,जी मुझे मालूम है !
ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on February 15, 2016 at 10:54pm
जनाब रवि शुक्ल जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 11, 2016 at 9:15pm

मोहतरम जनाब समर  कबीर साहिब आदाब,बेहतर ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं / टाइप मिस्टेक की वजह से गड़बड़ हुई है / मेरे ख़याल से  आपने जो लफ्ज़ ग़ज़ल में इस्तेमाल किया है वह शेवा नहीं बल्कि शेवह है। ...... जिसका मतलब तौर , तरीक़ ,अंदाज़ है /  शुक्रिया 

Comment by Ravi Shukla on February 11, 2016 at 2:09pm

आदरणीय समर कबीर जी, कमाल की ग़ज़ल कही है आपने.  इस शानदार और लाजवाब ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Samar kabeer on February 10, 2016 at 10:28pm
जनाब नादिर ख़ान जी,वालेकुमस्सलाम,

"ये मयख़ाना है बज़्म-ए-जम नहीं है
यहाँ कोई किसी से कम नहीं है !"

आपका बहुत बहुत शुक्रिया,एडिट करवाता हूँ,"शैवा" का मतलब है :- तौर-तरीक़-अंदाज़ ।
Comment by Samar kabeer on February 10, 2016 at 10:22pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on February 10, 2016 at 10:20pm
मोहतरमा राहिला जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by नादिर ख़ान on February 10, 2016 at 12:36pm

 जनाब समर साहब सलाम अर्ज़ है, देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ |

आदरणीय मिथिलेश साहब ने रिप्लाई कर दिया उनका शुक्रिया ...
शैर को शेर कर लीजियेगा और ज़ैर-ए-लब को ज़ेर-ए-लब, मुझे शैवा का मायने नहीं पता कृपया बताने का कष्ट करें |
सादर ..

(छोटे मुँह बड़ी बात हो गयी हो तो माफ़ कर दीजियेगा क्योंकि हमें अंग्रेजी आती नहीं है, उर्दू बहुत कमज़ोर है और हिंदी सीख रहे है ।  )

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