For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम परी हो / कविता

तुम घर मत आना कभी
तुम्हें कसम है मेरी

तुम्हारा संसार है सपनों सा
और तुम परी जैसी
तुम्हारा मन है कोमल
और तुम निर्मल सी
तुम्हारी कोमलता
तुम्हारी निर्मलता
सहन ना कर पायेंगी
यहाँ की विसंगति

यहाँ जल रहे है बाग
टूट रहे है आशियाने
सब है धुआँ धुआँ
घुट रही है जिंदगी


गये सब शानो असबाब
जल गये राजमहल
रह गई है बस सित्कार
जमीन पर यहीं

काँटे ही काँटे
ना सह पाओगी इन शूलों को
ना रह पाओगी इन धुआँओं में
तुम्हारी आँखें जल उठेंगी
तुमसे बहुत कुछ कह उठेंगी

इस खंडहर में सन्नाटे बहुत है
सन्नाटे में राजकुमारियों का
क्या काम
उसके लिए दुनिया की तमाम महफिलें है
उसके लिए दुनिया में तमाम रंगीनियाँ है
सतरंगी ख्वाबों को जीने वाली
इंद्रधनुष सी सपनीली
ओ राजकुमारी
रहो अपनी दुनिया में आबाद

तुम घर कभी मत आना
अब यहाँ घर नहीं है कहीं भी
वो बिखर गया है
एक आँधी उठी थी
बहुत कुछ टूटा था उस दिन
उन टुटे हुए टुकड़ों पर
मौत को ढूंढती है अब जिंदगी
इन वीरान गलियों में
कसम है तुम्हें
तुम मत आना कभी


तुम परी हो
परी ही रहो
तुम कोमल सी
सहन ना कर पाओगी
यहाँ की विसंगति

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1159

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 14, 2016 at 12:27pm

//तुम घर कभी मत आना
अब यहाँ घर नहीं है कहीं भी
वो बिखर गया है
एक आँधी उठी थी
बहुत कुछ टूटा था उस दिन
उन टुटे हुए टुकड़ों पर
मौत को ढूंढती है अब जिंदगी
इन वीरान गलियों में
कसम है तुम्हें
तुम मत आना कभी//

आपकी रचना को पढ़ता गया और लगा कि मेरा मन भी परी से वही आग्रह कर रहा है जो आपने किया, आपने लिखा ... कि जैसे यह कविता आपकी है परन्तु भावनाएँ पाठक की हैं .. संवेदना उमड़ती चली आती है ... पढ़्ते-पढ़ते मन को पकड़ना पड़ता है, संभालना पड़ता है। इस भाव-प्रधान रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई, आदरणीया कांता जी। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2016 at 10:15pm

आदरणीया कांता जी, प्रभावित करती इस सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई.

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 5, 2016 at 10:57pm
बहुत बहुत सुंदर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2016 at 10:09pm

वाह-वाह ! बहुत ही भाव भरा कथ्य लिये पंक्ति-दर-पंक्ति यह कविता खुलती जाती है, आदरणीया कान्ताजी. परी के ’यहाँ’ न आने का आह्वान दिल को कचोट कर रख देता है. यह सहज निर्णय कत्तई नहीं है कि परी को न आने के लिए मनाया जाय. आपके रचनाकार ने तमाम कारण गिनाये हैं. उन कारणों के प्रति पाठकों की भी सहमति बनती जाती है. पाठक के मन की ’माँ’ चीख उठती है. 

इस संवेदनापूरित प्रस्तुति केलिए हार्दिक बधाइयाँ. 

यह अवश्य है कि प्रस्तुतीकरण के सापेक्ष यह कविता लचर-सी दिखती है. व्याकरण और अक्षरी की अशुद्धियाँ सहज वाचन में बाधक हैं. इनके प्रति अवश्य संवेदनशील होना होगा. वर्ना आपका गहन मंथन शाब्दिक हो कर ढंग से संप्रेषित नहीं हो पायेगा. वैसे भी आपको इस पटल पर आये हुए अरसा हो गया है. 

सित्कार  की सही अक्षरी सीत्कार है.  लेकिन क्या इसका ऐसा ही कुछ अर्थ है जैसा आपकी कविता में प्रयुक्त हुआ है ? देख लीजियेगा. 

फिर राजकुमारियों संज्ञा के बाद उसके लिए का क्यों प्रयोग हुआ है ? उनके लिए आना था न ? और, धुआँ का बहुवचन धुआँओं कहाँ देख लिया आपने, आदरणीया ?

शुभ-शुभ

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2016 at 2:25pm


तुम घर कभी मत आना
अब यहाँ घर नहीं है कहीं भी
वो बिखर गया है
एक आँधी उठी थी
बहुत कुछ टूटा था उस दिन
उन टुटे हुए टुकड़ों पर
मौत को ढूंढती है अब जिंदगी
इन वीरान गलियों में
कसम है तुम्हें
तुम मत आना कभी

वाह आदरणीया वाह अंतर्द्वंद की दिल को छूती इस प्रवाहमयी मार्मिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by TEJ VEER SINGH on February 5, 2016 at 10:21am

हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी!बहुत ही मार्मिक एवम हृदय स्पर्शी प्रस्तुति!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service