For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वापसी जीवन के उस पार से /कहानी / कान्ता रॉय , भोपाल।

अचानक से कुछ होने लगा था । हल्का सा चक्कर और  पेपर हाथ से सरककर नीचे गिर पडा़ । उठाने को हाथ बढाया तो एहसास हुआ कि  शिथिल पड़ चुका  था मै । देह भी निष्प्राण से हो चले थे । आँखों में ही अब   होश बाकी था शायद ।सब देख और सुन पा रहा था  ।  बगल वाले कमरे में नये साल की पार्टी  अब भी जारी  थी । घर के सब सदस्य ,  बेटे- बहू, नाती- पोते , आज इकट्ठे हो गये थे  जश्न मनाने के लिए ।

मुझे पार्टी में ही तबियत नासाज   लग  रही थी । मै चुपके से  अपने कमरे में आकर  इस आराम चेयर पर एकदम से  निढाल हो गया । सोचा ,जरा पेपर पढ लू , पेपर पढकर मन को बहलाना काम ना आया । बिना दर्द के ही , अचानक से , बेबसी का आलम छाता जा रहा था ।

नीचे से भी सुन्न पड़े देह को गीले हो जाने का भी एहसास ना रहा । अब लग रहा था   कि अभी कोई नहीं आया तो मेरा बचना  मुश्किल है । पार्टी में संगीत का स्वर तेज हो चला और मेरा मन उद्विग्न ।  आँसुओं की धार ही बची थी अब मन की अभिव्यक्ति के लिये ।

पत्नी रात का दवा लेकर कमरे में  प्रवेश कर चुकी है । शायद अब मै बच जाऊँ ...! जीवन जीने की जीजिविषा  मानो तेज हो चुकी है  और मेरा देह यहाँ निष्प्राण सा । पत्नी ने दवा लेने  को कहा ... मै बस देखता ही रहा उसे । वो पूछती रही , बिना प्रतिउत्तर के मै सिर्फ देखता रहा  ।   मेरे तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना पाकर  , व्याकुल हो, मेरे निष्प्राण हो चुके देह को हिलाने लगी  ।

मै लाचार था जबाव देने से ... मेरे होंठ भी  हिल ही नही पा रहे थे । पल भर में जश्न का शोर और हंगामा थम  कर रूदन और कोलाहल में बदल चुका था । बेटे बहू और  बच्चे मेरे आस पास ही  हैरान परेशान हो रहे थे ।

थोड़ी ही देर में ,  एम्बूलेंस आ गई । कई लोगों द्वारा मै उठा कर बाहर दरवाजे की तरफ  ले जाया जा रहा था ।

आज मुझे खुद के भारी होने पर गुस्सा भी आ गया । मुझे वेट कंट्रोल करने के उपाय अपनाने चाहिए थे । कई बार डाॅक्टर कह चुके थे कि मै अपनी डाईट प्लान करू  , लेकिन तब ना सुनि किसी की  । आज  बच्चों की कमर टुट रही है  मेरी वजह से । मै दुखी हो रहा हूँ अपने बच्चों के माथे पर पड़े पसीेनों के बूंदों  को देख कर । मैने अपने समस्त जीवन ,बच्चों की सुख - सुविधा जुटाने में ही बिताये थे । आज मुझे लेकर मेरे बच्चे हैरान ,परेशान है।

अस्पताल में तुरंत ही मुझे एडमिट कर लिया गया । सिटी स्कैन  में खून के थक्के  चिन्हित किये गये थे । ई सी जी में और इको में भी ब्लॉकेज खतरनाक श्रेणी के  चिन्हित किये गए।  अब मुझे आई. सी.  यू. में शिफ्ट किया  गया । वेंटिलेटर ... आॅक्सीजन मास्क ... सुई .. ड्रीप और फिर अनेकों टेस्ट  ।

डाक्टर सेन ने कहा कि मेरा समस्त शरीर लकवाग्रस्त हो चुका है । मै सिर्फ सुन सकता हूँ और देख सकता हूँ । ये तो मै पिछले कई घंटों से जान ही रहा हूँ । कोई पूछे तो उनसे मै कब ठीक होऊँगा ?

अचानक मृणाल पूछ ही बैठी डाक्टर से मेरे लिए कि मै ठीक कब होऊँगा । बेटियाँ पिता के मन को समझ लेती है  आज यह भी साक्षात् देखा ।

निष्प्राण पिता के लिए बच्चों का हताश होना ,  मेरा कलेजा फटा जा रहा था  । पत्नी को  आज तक इतनी बेबस और असहाय  नहीं पाया   था  ।

मुझे जीना है और स्वस्थ होना ही है । डाक्टर ने कह दिया कि मेरे ठीक होने की कोई ग्यारंटी नहीं है । हो सकता है कि मै कुछ दिनों में ही ठीक हो जाऊँ या ऐसे ही रहू आगे , जब तक  सांस चलेगी  ।

मेरा मन बहुत ही घबरा गया  था । मै डर गया था । नहीं , मुझे इस तरह नहीं रहना है । मुझे ठीक होना ही होगा ।

मेरी पत्नी का पीला  चेहरा मेरे मन को कचोट रहा था । मै बहुत प्यार करता हूँ उसको । उसके  दुख दर्द का साँझा साथी रहा हूँ मै । वो मेरे लिए ही जीती है ।

मै पलकें झपका कर  कहना चाहता था उससे कि तुम चिंता ना करो ,ये डॉक्टर ऐसे ही कहते है ,   मै अवश्य ठीक हो जाऊँगा ।

वो मेरी करीब आ कर मुझे निहार रही है । आँसू भरे चेहरे से , अपना प्यार जता रही है । उसके चेहरे से आँसू का , मेरे चेहरे पर गिरना ,  मुझे सकून दे रहा है । सिंदूर भरा माँग , उसके चेहरे की लालित्य को , जैसे बढ़ा जाते है । मै कई बार रात को भी अनायास उसके माँग भर दिया करता था और वह पहली रात की ही तरह लजा उठती थी । दाम्पत्य जीवन और सुख के क्षणों में , मेरे पसीने से उसका तरबतर होना ,  मुझे सहसा याद आ गया  । हृदय की गति उन क्षणों की याद में बढ़ गई ।  अचानक मैने अपने हाथों में कंपन महसूस की ।  पत्नी की नजर मेरे काँपते हाथों पर जैसे ही पड़ी ,वह  खुशी से चीख उठी   -"देख तो , अभी तेरे पापा का हाथ हिला था । देख ना , ऐसे , यहाँ ...."

" हाँ , माँ , मैने भी देखा " बेटा अपनी माँ को पुचकार कर सम्भाल रहा था और वह मासूम बावली -सी हो रही थी ।

मेरे चारों ओर नर्स और डाक्टर की भीड़ खड़ी हो गई ।

पत्नी पीछे रह गई । मेरी आँखें अभी भी उसी पर टिकी हुई है मानो मै उसके सिवा कुछ और  देखना ही नही चाहता हूँ ।

डाॅक्टर मेरे हाथ के कंपन से आश्वस्त हो उठे और कह पड़े कि मरीज के नब्बे प्रतिशत चाँस है कि वो ठीक हो जायेंगे । दवा रिस्पांस कर रही है  ।

उन्हे नहीं मालूम कि मेरी पत्नी की आँखें मुझे जीने को उकसाती हैै । उसके गीली आँखों से टपके हुए आँसू मेरे मन को चंचल कर जाते है । उसके संग के संगम मुझे उद्वेलित कर जाते है ।

आज पाँच दिन हो गये है । मै अब मुस्कुरा   पा रहा हूँ ।  जरा- जरा सा हाथ  उठ रहे है । मैने महसूस किया कि  मेरे मुस्कुराने से पत्नी का हृदय भी चंचल हो उठता है । वो सदा ही मेरे होठों पर फिदा हो जाया करती थी ।  यह असर अभी भी , इस उम्र तक कायम है , बरसों बाद बेहद सुखद एहसास को जिया   है मैंने  आज ।

बच्चों में सदा व्यस्त रहने वाली पत्नी का , अब हर वक़्त  मेरे पास होना , मुझे अच्छा लगता है । वो गर्म सूप पिला कर  ,बच्चों की तरह , जब प्यार से पुचकारते हुए  ,मेरा मुंह पोछती है ,तो  सकून पाता हूँ  । अस्पताल में नर्स  जब मेरा स्पांजिंग करने लगती है ,तो उसके हाथ से  टाॅवेल झटक कर ,स्वंय ही मेरे देह को पोंछने लगती है। मैने देखा था कि पत्नी आज भी मेरे नजदीक रहना चाहती है । पिछली बार हमारी जब लड़ाई हुई थी , तो चार दिन का अबोला बडा भारी पडा़  था मुझे   । अब तो एक महीने हो गये है अस्पताल में आये हुए   । अब  करवटें लेने लगा हूँ और टुटी - फुटी  बोलने भी लगा हूँ । मिलने वालों का ताँता भी लगा ही रहता है   ।

लेकिन इन सबसे इतर मुझे अस्पताल भा रहा था । कारण था पत्नी का सामीप्य ,जो घर में बहुओं की सास और नाती पोतों की दादी बन कर मुझे भूल बैठी थी । अब यहाँ दिन - भर मेरे इर्द - गिर्द ही घूमती रहती है । डेढ़ महीने होने को आये । अब डाॅक्टर नें वाॅकर के सहारे चलने की इजाज़त दे दी है ।

यहीं बरामदे में जरा देर के लिए अपने कँपकपातें टाँगों पर , पैरों को जमाने का प्रयास कर रहा था मै ।

 

दो दिन लगे प्रयास को सफल होने में । ऐसा लगा कि मै फिर से पैदा होकर चलना सीख रहा हूँ । मेरी पत्नी ही मेरी जननी के समस्त फर्ज़ भी निभा रही थी । मै उसके आगे पानी सा तरल हो उठता हूँ हमेशा से । चाहे वो मुझे कैसे भी रख लें ।

आज डाॅक्टर ने इजाज़त दे दी है घर ले जाने की । मै भी खुश हूँ । अब अस्पताल में मन उबने लगा था पत्नी का भी । बेटे , बहुओं ने सब समेट लिया घंटे भर में मेरी पत्नी की दो महीने की इस जमी - जमाई गृहस्थी को । लिफ्ट से नीचे आते वक्त कुछ छुटता हुआ महसूस हुआ था । वाॅर्ड बाॅय , नर्स सब जैसे अपने से हो गये थे ।

" बाबूलाल ,घर आना मिलने के लिये । " बाबूलाल ने झट से पैर छू लिये । सौ का नोट उसके जेब में डाल दिया । ना - नुकुर करने लगा । मेरे जोर देने पर रख लिए उसने  ।

" सिस्टर , आज तुम्हारा बिगडा हुआ मरीज तुम्हें छुटकारा दे रहा है " कहते हुए जाते वक़्त भी  रमा सिस्टर को छेड़ने का सुख ले ही बैठा ।

" क्या है  शर्मा जी , मैने कब कहा कि आप बिगड़े हुए मरीज है  , वो तो नौ नम्बर वाले के लिए मैने कहा था उस दिन ! "

" अरे ,सिस्टर ,बुरा मान गई ! मैने सोचा जाते वक्त जरा छेड़ दूँ । "

" शर्मा जी , मै आपको मिस नहीं करूँगी यह पक्का है लेकिन आपकी वाईफ को जरूर मिस करूँगी ।  " कहते हुए  पत्नी से गले लग गई हठात् ।

हम गाड़ी में बैठ गये । आज कितने दिनों बाद अपने शहर को देख रहा था । आसमान को देखे हुए भी बहुत दिन हो गये थे । नीला सा , सफेद रूई से  बादलों की टुकड़ियों से भरा हुआ ।  सुखद  है इन जीवंत वातावरण में जीने की अनुभूति ।

" यह क्या ! आरती ? क्या मै कोई युद्ध जीत कर आया हूँ ? " बडा अजीब लगा यह सब , लेकिन सुखद था ।

दपदपाती सिंदूर भरी माँग भरकर ,गोरे मुख वाली मेरी पत्नी के चेहरे पर बडी़ सी लाल बिंदी चमक रही थी । वह अद्भुत सुख का क्षण था ।

कमरे में मेरे बिस्तर का कोना ,जैसे चहक उठा था मुझे देख कर । मै निश्चिंत हो ,वाॅकर दीवार  से टिकाकर,  अपने बिस्तर पर धीरे से बैठ गया । पत्नी ने मुझे सम्भाल ,धीरे से तकिया लगा कर लिटा दिया ।

" अब आप आराम किजिए , जरा रसोई  देख कर आती हूँ । " कम्बल ओढाते हुए जैसे ही वह बोली मैने उसके हाथ पकड़ लिए ।

" अभी यहीं रहो जरा देर मेरे पास  "

" आप भी ना ! यह अस्पताल नहीं है कि आपके पास ही रहूँगी दिन भर । यहाँ मेरी दूसरी जिम्मेदारी भी है । " वह चली गई , और मुझे अस्पताल का सुख बेचैन कर गया ।

 

 

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 807

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 21, 2016 at 9:23pm
बीमारी की हालत में व्यक्ति के मनोभावों एवम् वृद्धावस्था में दाम्पत्य जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत करती एक अद्भुत कथा।बहुत-बहुत हार्दिक बधाई वन्दनीया दी।
Comment by Nita Kasar on February 20, 2016 at 2:11pm
हर मन के आसपास घूमती कथा है दोनों में से कोई एक बीमार पड़ जाये तो दूसरा असहाय हो जाता है जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया जल्द ठीक कर देता है बधाई आपको आद०कांता राय जी एक साँस में पूरी पढ ली है कथा ।
Comment by Pawan Jain on February 17, 2016 at 11:10pm

बहुत बढ़िया कहानी ,दुख,बीमारी में जीवन साथी ही काम आता है,बढ जाती हैं नजदीकियां,एहसास होता है एक दूसरे की जरूरत का ।बहुत सुन्दर 

चित्रण।हां पत्नी की भरी मांग और बडी़ सी बिंदी कितना सुकून देती है ,जैसे जीवन की डोर उसी से जुड़ी हो।बहुत बहुत बधाई आदरणीय।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 17, 2016 at 8:12pm
....साथी, साथी और साथी....प्राणों का साथ, जीवन संगिनी का साथ....डॉक्टरों व नर्सों वार्ड-बाय सेवकों का साथ...यादों का सजीव साथ... वादों का साथ.. साथी...साथी और साथी... पत्नी धर्म का साथ ..फिर घर पर दूसरी ज़िम्मेदारियों का साथ...वाह रे साथ..जज़्बातों का ज़बरदस्त साथ... प्रवाह के साथ...कहानी के शिल्प के साथ ...पाठकों के जुड़ाव के साथ...संदेशों...कथ्य के सम्प्रेषण के साथ बेहतरीन कृति के सृजन के लिए हार्दिक बधाई के साथ ढेर सारी शुभकामनाएँ आदरणीया कान्ता राय जी।
Comment by Sushil Sarna on February 17, 2016 at 7:16pm

" अब आप आराम किजिए , जरा रसोई देख कर आती हूँ । " कम्बल ओढाते हुए जैसे ही वह बोली मैने उसके हाथ पकड़ लिए ।
" अभी यहीं रहो जरा देर मेरे पास "
" आप भी ना ! यह अस्पताल नहीं है कि आपके पास ही रहूँगी दिन भर । यहाँ मेरी दूसरी जिम्मेदारी भी है । " वह चली गई , और मुझे अस्पताल का सुख बेचैन कर गया ।

प्रस्तुति के अंतिम भाग में बहुत ही मार्मिक अभियक्ति है आ. कांता रॉय जी। इस दिल छूटी कहानी की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Shyam Narain Verma on February 17, 2016 at 7:12pm
बहुत बढ़िया कहानी , हार्दिक बधाई आपको
Comment by TEJ VEER SINGH on February 17, 2016 at 2:41pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी!बहुत मार्मिक और हृदय स्पर्शी कहानी!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
14 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
20 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
20 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
20 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
21 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service