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सर झुकाये हयात आई इसरार पर- शिज्जु शकूर

212 212 212 212
आये उश्शाक़ खुद को लिये दार पर
सर झुकाये हयात आई इसरार पर

ओस की बूंद सा चाँद ढलता हुआ
खूब है सुब्ह के सुर्ख़ रुखसार पर

माह अफ़्लाक़ पर जल उठे हैं कई
नूर उछला है उनका शबे तार पर

मारने हक़ हज़ारों खड़े हैं यहाँ
और मक़्तूल तलवार की धार पर

अपनी नाकामियों का ख़मोशी के साथ
रख दिया उसने इल्ज़ाम अगयार पर

कौन अपना नुमाइंदा है मुल्क में
फूल है तो कहीं हाथ दस्तार पर

ढूँढ ही लेते हैं राह अहले जिगर
खत्म मौके नहीं होते इक हार पर

(उश्शाक़- आशिक़ का बहुवचन; इसरार- आग्रह, हठ; रुखसार- गाल;
अफ़्लाक़- फ़लक़ का बहुवचन; मह- चाँद; शबे तार- अँधेरी रात;
मक़्तूल- मरनेवाला; अगयार- दुश्मन; दस्तार- पगड़ी)

-मौलिक,अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 4, 2015 at 6:06pm
आदरणीय मिथिलेश जी रचना की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 4, 2015 at 6:05pm
आदरणीय श्याम नारायण शर्मा जी आपका हार्दिक आभार
Comment by kanta roy on November 4, 2015 at 12:11pm

ढूँढ ही लेते हैं राह अहले जिगर
खत्म मौके नहीं होते इक हार पर----वाह !!! बहुत खूब जिगरवाली ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय  शिज्जु शकूर जी । बधाई कबूल फरमाइए

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 4, 2015 at 11:22am

आ0 भाई शिज्जू  जी , बहुत ही बेहतरीन गजल हुई है हार्दिक बधाईl

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on November 4, 2015 at 9:49am

khoobsoorat gazal  - badhaee


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2015 at 8:55pm

बहुत खूब ग़ज़ल हुई शिज्जू भैया शेर दर शेर दाद कुबूलें ,

ओस की बूंद सा चाँद ढलता हुआ
खूब है सुब्ह के सुर्ख़ रुखसार पर---बहुत  प्यारा शेर इसके लिए विशेष दाद 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 3, 2015 at 7:27pm
बहुत खूब आदरणीय शिज़्ज़ु सर

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Comment by गिरिराज भंडारी on November 3, 2015 at 6:46pm

आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बढ़िया गज़ल कही है , दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।

ढूँढ ही लेते हैं राह अहले जिगर
खत्म मौके नहीं होते इक हार पर    -- इस शे र के लिये ख़ास बधाई ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 3, 2015 at 5:09pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Shyam Narain Verma on November 3, 2015 at 10:59am

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए कोटि कोटि बधाई ,

 सादर 

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