For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख़ौफ़ खाता हूँ …

ख़ौफ़ खाता हूँ 

तन्हाईयों के फर्श पर रक्स करती हुई
यादों की बेआवाज़ पायल से

ख़ौफ़ खाता हूँ
मेरे जज़्बों को अपाहिज़ कर
अश्कों की बैसाखी पर
ज़िंदा रहने को मज़बूर करती
बेवफा साँसों से

ख़ौफ़ खाता हूँ
हयात को अज़ल के पैराहन से ढकने वाली
उस अज़ीम मुहब्बत से
जो आज भी इक साया बन
मेरे जिस्म से लिपट
मेरे बेजान जिस्म में जान ढूंढती है
और ढूंढती है
ज़मीं से अर्श तक
साथ निभाने की कसमों के बेरहम लम्हे
जो रगों में दौड़ते लहू में
दर्द के दरिया बहाते हैं

चलो अच्छा हुआ
जिस्म का ज़मीं साथ छूट गया
उसके साथ होने का
इक तिलस्म टूट गया
लेकिन न जाने क्योँ
मैं फिर भी खौफ खाता हूँ
बारहा ख़ाके सपुर्द होने के बाद भी
कफ़स से जिस्मानी पिंजर के उठ 
गली के किसी नुक्कड पर
लौट आता हूँ
लेम्प पोस्ट की पीली रोशनी में
सर झुकाये बुत की तरह बैठी
बीते लम्हे की परछाई के चेहरे पर
पश्चाताप में पिघल
खारे पानी में भीगे
रुखसारों को देखने के लिए रुक जाता हूँ
मगर क्या मैं ये देख पाऊंगा
शायद हाँ या शायद नहीं
मैं कल भी ख़ौफ़ खाता था
शायद मैं आज भी ख़ौफ़ खाता हूँ
इसीलिये बिन देखे ही उसे

मैं अपने जिस्मानी पिंजर की कफ़स में लौट आता हूँ

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 597

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on October 8, 2015 at 6:05pm

आदरणीय  सतविंदर कुमार जी रचना के भावों पर आपकी भावात्मक उपस्थिति का हार्दिक आभार। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 7, 2015 at 8:59pm
बहुत सुंदर रचना के लिए हृदयतल से बधाई आदरणीय सुशील sarna जी
Comment by Sushil Sarna on October 6, 2015 at 12:37pm

आदरणीय समीर कबीर  जी प्रस्तुति में निहित अहसासों ने आपके जज़्बातों को छुआ ये रचना  के लिए सुखद अनुभूति है। इस मान के लिए आपका दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on October 6, 2015 at 12:34pm

आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी प्रस्तुति में निहित अहसासों को आपने  जो मान दिया है उसके लिए आपका हृदय से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on October 6, 2015 at 12:32pm

आदरणीय डॉ गोपाल जी भाई साहिब रचना ने आपको स्पंदित किया ये मेरे लिए गर्व  की बात है। आपको दिल से शुक्रिया सर। 

Comment by Samar kabeer on October 5, 2015 at 11:31pm
जनाब सुशील सरना जी,आदाब,आपकी ये कविता बहुत पसंद आई ,बहुत डूब कर लिखते हैं आप,वाह क्या कहने,इस सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by pratibha pande on October 5, 2015 at 9:21pm

चलो अच्छा हुआ 
जिस्म का ज़मीं साथ छूट गया 
उसके साथ होने का 
इक तिलस्म टूट गया 

बहुत गहरी भावनाएं लिए है आपकी ये पूरी रचना ,हार्दिक बधाई आपको इस भाव पूर्ण कृति के लिए आदरणीय सुशील जी 
 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 5, 2015 at 8:51pm

इसीलिये बिन देखे ही उसे

मैं अपने जिस्मानी पिंजर की कफ़स में लौट आता हूँ------ बहुत खूब . वाह सरना जी

Comment by Sushil Sarna on October 5, 2015 at 7:29pm

आदरणीया कांता रॉय जी रचना में निहित भावों को आत्मीय स्वीकृति देती आपकी मधुर शाब्दिक शैली ने रचना को जो मान दिया है उसके लिए हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on October 5, 2015 at 7:27pm

आदरणीय गिरिराज भाई साहिब रचना के भावों पर आपकी भावात्मक उपस्थिति का हार्दिक आभार। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service