For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम न समझ पाओगे .....

तुम न समझ पाओगे .....

तुम न समझ पाओगे
मुहब्बत की ज़मीन पर
कतरा कतरा बिखरते
रूमानी अहसासों के सायों का दर्द
तुम तो बुत हो
सिर्फ बुत
जिसपर कोई रुत असर नहीं करती
तुम से टकराकर
हर अहसास संग -रेज़ों में तक़सीम जाता है
और साथ चलते साये का वज़ूद
सिफर में तब्दील हो जाता है
रह जाते हैं बस शानों पर
स्याह शब में गुजरे चंद लम्हे
जो आज मुझे किसी माहताब में
लगे दाग़ की तरह लगते हैं
तुम्हारी याद का हर अब्र
मेरी चश्म को
सावन का कहर दे जाता है
मेरे ख़्वाबों को
दर्द का आफ़ताब दे जाता है
मेरे रुखसार पर बहता काजल
अहसास के आगाज़ को अंजाम दे जाता है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 497

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on October 8, 2015 at 6:03pm

आदरणीय  narendrasinh chauhan जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा  का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on October 8, 2015 at 6:03pm

आदरणीय   Dr. Vijai Shanker    जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on October 8, 2015 at 6:02pm
आदरणीय Samar kabeer जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।
Comment by narendrasinh chauhan on October 8, 2015 at 5:27pm

खूब सुन्दर रचना

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 7, 2015 at 11:55pm
तुम न समझ पाओगे
मुहब्बत की ज़मीन पर
कतरा कतरा बिखरते
रूमानी अहसासों के सायों का दर्द
तुम तो बुत हो
सिर्फ बुत
जिसपर कोई रुत असर नहीं करती
तुम से टकराकर।
बहुत खूब, आदरणीय सुशील सरना जी , बधाई , सादर।
Comment by Samar kabeer on October 7, 2015 at 11:12pm
जनाब सुशील सरना जी,आदाब,वाह,बहुत ख़ूब,आपकी कविताऐं मुझे बहुत पसंद आती हैं,ये कविता भी उन्हीं कविताओं में से है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं।
Comment by Sushil Sarna on October 7, 2015 at 5:18pm

आदरणीय हर्ष महाजन  जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा  का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on October 7, 2015 at 5:17pm

आदरणीया कांता रॉय     जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Harash Mahajan on October 7, 2015 at 1:36pm

आ० Sushil Sarna जी एक अच्छी और दिल को छूने वाली रचना !! बधाई !!

Comment by kanta roy on October 7, 2015 at 12:57pm

तुम न समझ पाओगे
मुहब्बत की ज़मीन पर
कतरा कतरा बिखरते
रूमानी अहसासों के सायों का दर्द
तुम तो बुत हो
सिर्फ बुत ...........बहुत खूब कही है आपने इन् बुतों की दास्तान। दिल को छूकर निकली है ये पंक्तियाँ।

तुम्हारी याद का हर अब्र
मेरी चश्म को
सावन का कहर दे जाता है
मेरे ख़्वाबों को
दर्द का आफ़ताब दे जाता है..... भाव में डूबी हुई ये अल्फ़ाज़ बेहतरीन  है। बधाई आपको इस सार्थक रचना के लिए आदरणीय सुशील सरना जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service