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भेड़िया, गिद्ध और कुत्ता

भेड़िए जैसे झपटते बच्चे

गिद्ध जैसे ताकते हुए

कुत्तों  की मानिंद

खाना छीनते हुए बच्चे

एक कूड़े के ढेर पर

मैंने देखे थे वो

भेड़िये ,गिद्ध और

कुत्ते जैसे बच्चे

इंसान का शेर या हाथी

जैसा होना सुहाता है

किन्तु भूख जब उसे भेड़िया,

गिद्ध या कुत्ता बना देती है

  और जब शिकार बचपन हो

तो आँखें शर्म से झुक जाती हैं

तब इस असमान बंटवारे पर

लज्जा आती है ,घृणा होती है

किसी ने तो खाना

बस फैंक दिया था

ज्यादा था उसके पास

या स्वाद नहीं था

या फिर  बस यूँ ही

और कुछ के पास

विकल्प ही नहीं है

खाने के ज्यादा या

बेस्वाद होने का

उनके लिए पेट में

धधकती आग एक प्रश्न है 

जिसे किसी भी तरह

बस बुझाया जाना है

फिर वह कूड़े में

पड़ी जूठन ही क्यों न हो

अबाध संवेदनहीन प्रचुरता

या कि अनवधि हीनता

दोनों ही मनुष्य को

भेड़िया, गिद्ध और

कुत्ता बना डालते है

मात्र सन्दर्भ अलग होते हैं I

                 

मौलिक व अप्रकाशित

 

 

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Comment

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Comment by Tanuja Upreti on August 13, 2015 at 11:06am

धन्यवाद मिथिलेश जी 

Comment by Tanuja Upreti on August 13, 2015 at 11:05am

आभार शिल्पी जी 

Comment by Shilpi Sinha on August 12, 2015 at 9:05pm
विचलित कर देने वाला सत्य

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 11:47am

आदरणीया तनूजा उप्रेती जी आपने बहुत मार्मिक रचना प्रस्तुत की है. ऐसे दृश्य भीतर तक हिला देते है किन्तु यही यथार्थ है. इस संवेदनशील प्रस्तुति हेतु धन्यवाद ...

Comment by Tanuja Upreti on August 12, 2015 at 11:35am

आभार गिरिराज जी ,आभार मैडम ,आभार लक्षमण जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 11:27am

इंसान का शेर या हाथी

जैसा होना सुहाता है

किन्तु भूख जब उसे भेड़िया,

गिद्ध या कुत्ता बना देती है

  और जब शिकार बचपन हो

तो आँखें शर्म से झुक जाती हैं

आ0 तनूजा जी, इस  मार्मिक प्रस्तुति  के लिये बहुत बहुत बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 12, 2015 at 8:00am

आदरणीया तनूजा जी , सत्य पर मार्मिक प्रस्तुति  के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 11, 2015 at 8:04pm

बहुत मार्मिक प्रस्तुति ..ये द्रश्य जो खुद मैंने देहली रेलवे स्टेशन पर देखा था एक चाय की दुकान के सामने डस्टबिन से निकाल कर बचाकुचा खाना खाते हुए बच्चों को ...सजीव हो उठा...अंत में ये पंक्तियाँ --

अबाध संवेदनहीन प्रचुरता

या कि अनवधि हीनता

दोनों ही मनुष्य को

भेड़िया, गिद्ध और

कुत्ता बना डालते है

मात्र सन्दर्भ अलग होते हैं I

          प्रस्तुति को ऊँचाई पर ले जाती हैं \बहुत बहुत बधाई प्रिय तनूजा जी ,इस प्रस्तुति पर |

Comment by Tanuja Upreti on August 11, 2015 at 3:31pm

आभार आनंद जी ,आभार प्रतिभा जी 

Comment by pratibha pande on August 11, 2015 at 3:11pm
संवेदनहीन प्रचुरता , क्या सही शब्द दिए हैं आपने इस 'मैं खाऊँ,और खाऊँ ,और बस खाते ही जाऊं' की बढ़ती हुई प्रवृति को बधाई आ०तनुजा जी

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