For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुनगुनाते हुए ज़िन्दगी की ग़ज़ल

२१२  २१२   २१२   २१२

गुनगुनाते हुए ज़िन्दगी की  ग़ज़ल

मैं चला जा रहा राह अपनी बदल

हुस्न को देख दिल जो गया था मचल

आज उसको भी देखा है मैंने अटल

वो  घने गेसू गुल से हसीं लव कहाँ

है मुकद्दर खिजाँ तो खिजाँ से बहल

उनके कूचे में मेरा जनाजा खड़ा

सोचता अब भी शायद वो जाए पिघल

शक्ल में गुल की ये मेरे अरमान हैं

नाजनी इस तरह तू न गुल को मसल

चैन मुझको मिला कब्र में लेटकर

शोरगुल भी नहीं न किसी का खलल

घुट रहा दम मेरा शहर में आजकल

गाँव के हाल देखे तो आँखें सजल

मूल्य सब बेंचकर जो तिजोरी भरे

उसको ही मानती आज दुनिया सफल

हुस्न को देख आँखें ये भौचक हुयी

मन मचलने लगा तो गया दिल फिसल 

अब न तहजीब है न अदब कायदा

है नयी सभ्यता है नयी अब फसल

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 669

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 11, 2015 at 12:38pm

आदरणीय पवन जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 11, 2015 at 12:37pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..मैंने जब से इस मंच से जुड़ कर लिखना शुरू किया ..तबसे लगातार आप का स्नेह और मार्गदर्शन मुझे हमेशा मिला ..आपकी प्रतिक्रिया का मुझे हमेशा इंतज़ार रहता है ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 11, 2015 at 12:27pm

आदरणीय रवि सर ..आप जैसे विद्वतजनो के मार्गदर्शन , स्नेह और हौसला अफजाई से लेखन को उर्जा मिलती है ..सादर प्रणाम के साथ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 11, 2015 at 12:24pm

आदरणीय रवि सर ..आप जैसे विद्वतजनो के मार्गदर्शन , स्नेह और हौसला अफजाई से लेखन को उर्जा मिलती है ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 11, 2015 at 12:22pm

आदरणीय मिथिलेश जी . .. आपकी प्रतिक्रिया से मुझे बहुत हौसला मिलता है .ग़ज़ल के इस सफ़र पर मैं चलता हुए अपनी ग़ज़लों को निखार सकों इस हसरत के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 11, 2015 at 12:19pm

आदरणीय लक्ष्मण जी ..रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिर्किया के लिए ह्रदय से धन्यवाद सादर 

Comment by Pawan Kumar on August 11, 2015 at 10:57am

मूल्य सब बेंचकर जो तिजोरी भरे

उसको ही मानती आज दुनिया सफल

आदरणीय, हकीकत को गजल मे इतने अच्छे तरह से पिरोने के लिए हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2015 at 9:22am

आदरनीय आशुतोष भाई , क्या खूब ग़ज़ल कही है , हर शे र काबिले दाद है , मुबारकबाद  कुबूल करें ।

Comment by Ravi Shukla on August 10, 2015 at 1:24pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत बढ़िया दाद कुबूल फरमाएं.

उनके कूचे में मेरा जनाजा खड़ा

सोचता अब भी शायद वो जाए पिघल... उम्‍मीद की इंतिहा क्‍या बात है 

चैन मुझको मिला कब्र में लेटकर

शोरगुल भी नहीं न किसी का खलल... इस हकीकत को केवल एक शायर ही बयान कर सकता है । अच्‍छा कथ्‍य है

अब न तहजीब है न अदब कायदा

है नयी सभ्यता है नयी अब फसल ..... पाये का शेर है जनाब

दाद कुबूल करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 11:53am

आदरणीय आशुतोष जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है, गुनगुनाते हुए आनंद आ गया. इस ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं.

अब न तहजीब है न अदब कायदा

है नयी सभ्यता है नयी अब फसल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service