For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं तड़प जाता हूँ मुझको न सताओ ऐसे -आशुतोष

२१२२  ११२२  ११२२  २२

मैं तो दीवाना हूँ मुझको न जलाओ ऐसे

मेरे ख़त आज हवा में न उड़ाओ ऐसे

चांदनी रात में ऐ चाँद यूं छत पे आकर

मेरे सोये हुए अरमाँ न जगाओ ऐसे

रेत पे जैसे निशाँ क़दमों के बैसे ही सही

दिल से धुंधली मेरी यादें न मिटाओ ऐसे

अब्र-ए- जुल्फ में खुद को यूं छुपा लेते हो

मैं तड़प जाता हूँ मुझको न सताओ ऐसे

तुम समंदर ए गुहर हो ये सभी को है पता

पर न आँखों के गुहर अपने लुटाओ ऐसे

बिन बुलाये मैं तेरी बज्म में आया माना

अजनबी  हूँ न जमाने को जताओ ऐसे

रात इक ख्वाब ने सोने न दिया है मुझको

बस अभी सोया हूँ मुझको न जगाओ ऐसे

दिल धडकते हैं कई देख तुम्हे महफ़िल में

लोग जल जाते हैं मुझको न बुलाओ ऐसे 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 879

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 4, 2015 at 10:58am

आदरणीय समर कबीर जी ..आपकी प्रतिक्रियाओं से मुझे हमेशा ही कुछ न सीखने को मिलता है ..अपनी रचनाओं पर हमेशा ही आपकी प्रतिक्रियाओं का मैं इंतज़ार करता हूँ एवं अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर भी आपकी प्रतिक्रियाओं से भी सतत कुछ न कुछ सीख रहा हूँ ..आपके सुझाव बहुत बढ़िया हैं ..मैं इस ग़ज़ल में संशोधन कर लूँगा ..आप का स्नेह और मार्गदर्शन सतत मिलता रहे इसी कामना के साथ सादर  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 2, 2015 at 9:28pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..आपकी प्रतिक्रिया से मैं बहुत उत्साहित महसूस कर रहा हूँ काफी दिनों गुनगुनाने के बाद ही ये ग़ज़ल पोस्ट की थी ..ईता दोष के सम्बन्ध में बिद्वत जनों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहा हूँ ..आपने बढ़िया मशविरा दिया है ..मार्गदर्शन और हौसला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 2, 2015 at 9:23pm

आदरणीय मनोज जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..आपका सुझाव अच्छा है अभी इस पर बिद्वत जनो के मशविर का इंतज़ार कर रहा हूँ / सादर 

Comment by Rahul Dangi Panchal on August 2, 2015 at 7:58am
बहुत सुन्दर गजल हुई आदरणीय । बधाई स्वीकार करें
Comment by Samar kabeer on August 1, 2015 at 11:17pm
जनाब आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
तीन मिसरों की तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा :-

(1)"रेत पे जैसे निशाँ क़दमों के बैसे ही सही"

:-इस मिसरे में 'बैसे ही' को "वैसे ही" कर लें"

(2)"अब्र-ए- जुल्फ में खुद को यूं छुपा लेते हो"

:- इस मिसरे में "अब्र-ए-ज़ुल्फ़" की तरकीब सही नहीं है,अब्र शब्द में इज़ाफ़त ज़रूर लगती है लेकिन ये देखना होगा कि "इज़ाफ़त" के बाद का शब्द कौन सा है,ये देखना भी ज़रूरी है,इस मिसरे को अगर इस तरह कर लेंगे तो बहतर होगा ,इसमें आपके भाव भी वही रहेंगे :-

"ज़ुल्फ़ के अब्र में यूँ ख़ुद को छुपा लेते हो"

(3)"तुम समंदर ए गुहर हो ये सभी को है पता"

:- इस मिसरे पर भी ऊपर वाले मिसरे की बात लागू होती है,इस मिसरे को इस तरह कर लें :-

"तुम समंदर के गुहर हो ये सभी को है पता"

बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 11:13pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra  जी इस बज़्म-ए-सुखन को एक बहतरीन इंतेखाब से नवाज़ा है ..हर शेर अपने में पूरे खयालात समेटे हुए है...."

बिन बुलाये मैं तेरी बज्म में आया माना

अजनबी  हूँ न जमाने को जताओ ऐसे

रात इक ख्वाब ने सोने न दिया है मुझको

बस अभी सोया हूँ मुझको न जगाओ ऐसे"..क्या बात है ...दिली दाद वसूल पाइयेगा !!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 1, 2015 at 8:58pm

बिन बुलाये मैं तेरी बज्म में आया माना

अजनबी  हूँ न जमाने को जताओ ऐसे

 बेहतरीन सर! तहेदिल से गज़ल पर ढ़ेरों दाद प्रेषित हैं!

Comment by मनोज अहसास on August 1, 2015 at 5:05pm
मुझको न
कई बार प्रयोग हुआ हैं
इस पर भी विचार किया जाये
बेहतरीन ग़ज़ल की हार्दिक बधाई
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 5:02pm

आदरणीया आशुतोष जी, बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है, पूरी ग़ज़ल कई बार गुनगुनाई और झूम गया. इस रसीली ग़ज़ल ने मुग्ध कर दिया. इस बेहतरीन ग़ज़ल के एक एक शेर पर दिल से दाद दे रहा हूँ. इस मुहब्बत की ग़ज़ल से सच में मुहब्बत हो गई. आपको बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर. आपकी शानदार ग़ज़लों में से एक ग़ज़ल हो गई है. वाह वाह वाह 

मतला में शायद ईता दोष की सम्भावना है इसलिए कुछ इस तरह या इससे बेहतर जैसे भी मगर मतले में एक छोटे से संशोधन की आवश्यता होगी. यदि दोष नहीं है तो बहुत बढ़िया.... थोड़ा गुणीजनों की इस्लाह की प्रतीक्षा कीजियेगा. 

मैं तो दीवाना हूँ यूं कहर न ढाओ ऐसे

मेरे ख़त आज हवा में न उड़ाओ ऐसे

बहरहाल इस शानदार, जानदार, मजेदार, रसदार और लाज़वाब ग़ज़ल पर बहुत बहुत दाद और दुआएं ....

Comment by मनोज अहसास on August 1, 2015 at 5:02pm
एक निवेदन है
पता नहीं उचित है या नहीं
ऐसे की जगह अगर इस तरह रदीफ़ हो तो कैसा रहेगा
क्षमा प्रार्थना सहित
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service