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शायरी का हुनर नहीं आता -- (मिथिलेश वामनकर)

212—212—1222

 

पास दिल के जो डर नहीं आता

राहे-हक हमसफर नहीं आता

 

आज बेटा बदल गया कितना

एक आवाज़ पर नहीं आता

 

मान लेता अगर कहा मेरा

लौटकर तर-ब-तर नहीं आता

 

बारहा तेरे दर पे आता हूँ 

तू कभी मेरे घर नहीं आता 

 

गाँव से शह्र लोग आते हैं

किन्तु बूढ़ा शजर नहीं आता 

 

घूरता हूँ मैं आसमां, जब तक

मेरे दिल में उतर नहीं आता

 

मेरी औकात जो बताता है

आइना देख कर नहीं आता

 

हौसला हाथ बस हिलाता है

पास मेरे मगर नहीं आता

 

रात दिल में उतर गई ऐसे

दिन निकलता नज़र नहीं आता

 

जिंदगी आज बुझ गई होती

चाँद गर बाम पर नहीं आता

 

दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन

कोई भी पूछकर नहीं आता

 

आँख बादल हुई तो दिल का ये 

मोर क्यों रक्स पर नहीं आता

 

-----------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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Comment by मिथिलेश वामनकर on August 4, 2015 at 12:51am

आदरणीय हर्ष जी ग़ज़ल पर आत्मीय प्रशंसा के लिए आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 3, 2015 at 9:11pm

दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन

कोई भी पूछकर नहीं आता

 

रास्ता इश्क का, सफ़र मुश्किल

एक भी राहबर नहीं आता .....वाह ,,,वाह  सभी शेर  एक  से  बढ़कर  एक  दिल से बधाई लीजिये मिथिलेश भैया 

 

Comment by मनोज अहसास on August 3, 2015 at 4:57pm
नमस्कार सर
रात दिल में ऎसे कब तक उतरी रहेगी


बहुत खूब
बेमिसाल
सादर
Comment by saalim sheikh on August 3, 2015 at 4:39pm

बेहद उम्दा !!! दिली दाद क़ुबूल फरमाएं !!

''मान लेता अगर कहा मेरा 

लौट कर तर-ब-तर नहीं आता ''  वाह !!! दिल को छू गया ये शेर 

''दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन
कोई भी पूछकर नहीं आता ''   बेहतरीन !
एक बार फिर से ढेरों बधाई !

Comment by Samar kabeer on August 3, 2015 at 3:16pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,छोटी बह्र में अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। दो मिसरों की तरफ आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा :-

'आम का यूँ समर नहीं आता'
इस मिसरे को इस तरह करलें :-
"उस पे कोई समर नहीं आता"
उर्दू में समर का अर्थ होता है फल।

'बस खयाली लुगत लगाने से'
लुग़त का अर्थ होता है शब्दकोष,इस मिसरे को इस तरह करलें :-
"बस ख़याली उड़ान भरने से"

बाक़ी शुभ शुभ।
Comment by विनय कुमार on August 3, 2015 at 1:49pm

// दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन
कोई भी पूछकर नहीं आता // , वाह , गज़ब का शेर और इस पर ये कथन // खुद को शायर तो खूब कहता, पर
शायरी का हुनर नहीं आता //,माशा अल्लाह , अगर आप को नहीं आता तो हमें पढ़ना नहीं आता , समझना नहीं आता |
एक शेर आपके लिए अर्ज़ है
// वो तो आप हैं कि फिक्र नहीं , जानने का हुनर नहीं आता //. दिली दाद क़ुबूल कीजिये आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 3, 2015 at 1:43pm

निवेदन है कि इस शेर को यूं कहा है-

रात दिल में उतर गई ऐसे

दिन निकलता नज़र नहीं आता


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 3, 2015 at 1:40pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय रवि जी ... मेरा ध्यान ही नहीं गया था. बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Ravi Shukla on August 3, 2015 at 1:35pm

आरणीय मिथिलेश जी

दिन निकलता वाले शेर में नही लफज एडिट कर दीजिये टंकण त्रुटि  रह गई  है ।

Comment by Harash Mahajan on August 3, 2015 at 1:23pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर  जी बाकमाल कलाम पेश किया है आपने ...

आज बेटा बदल गया कितना

एक आवाज़ पर नहीं आता...........बेहद खूबसूरत ....सच्चई आजकल की

मेरी औकात जो बताता है

आइना देख कर नहीं आता...............इन्तेहाई खूबसूरत अहसास

खुद को शायर तो खूब कहता, पर 

शायरी का हुनर नहीं आता.............अधिकतर हम जैसे लोगों का यही हाल है ...बहुत ही खूब

एक एक शेर अपनी पूरी विदा में समाया हुआ है सर दिली दाद आपके हर अहसास पर |

साभार !!

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