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"रिपोर्ट्स  आ गईं  बहू ?''

"जी "

"इतना परेशान होने की ज़रुरत नहीं है I चार साल  ही तो हुए हैं शादी को I  लग कर इलाज करवाना , सब ठीक होगा I  नारी  की पूर्णता माँ बनने में ही है ,   ऐसी  दकियानूसी  बातें  मत सोचना I  तुम्हे  एक  मॉर्डन सास मिली है , भाग्यशाली हो तुम "I

"पर मेरी सारी रिपोर्ट्स नॉर्मल है , प्रॉब्लम इनकी रिपोर्ट्स में है "I

"क्या ? इसने भी करवाया था टेस्ट ?"

"हाँ , और  मै  भी  इन्हें ये ही समझा रही थी  कि  सब ठीक हो जायगा I  और ये भी समझाया कि  संतान नहीं पैदा  कर पाने का ये अर्थ थोड़ी है कि स्त्री या पुरुष की पूर्णता में कोई कमी है I  अब  आप  भी समझा देनाI" 

"क्या  चपड़  चपड़  बोले जा रही हो I  दूसरी  जगह  से  फिर से करवाउंगी  मैं  टेस्ट I  और  तुम ज्यादा मॉर्डन  बन रही हो ,  कुछ  लिहाज शर्म  है कि नहीं ?"

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by kanta roy on July 22, 2015 at 12:37pm
बरदास्त के बाहर है यह मानना कि पुरूष बाँझ हो सकता है । बरसों लगे है समाज को इसे स्वीकार करने में । मेरा तो ये मानना है कि मानव जीवन में संतानोत्पत्ति ही जीवन की सार्थकता नहीं होती है । सार्थक जीवन समाजिक स्तर पर दूसरों के लिए जीने में होती है । सोच कर देखे तो जरा कि बाँझपन हमें कितना विस्तार दे सकता है ! पूरे दुनिया में समस्त अनाथों में हम अपने ममता को न्योछावर कर कई बच्चों के माता - पिता हो सकते है । अपना बच्चा होना हमें स्वार्थ के वशीभूत कर जाता है ।हम निज हित ,निज सुख में विलुप्त हो जाते है । मै तो कहती हूँ बाँझ होने को हमें वरदान समझना चाहिए कि ईश्वर ने हमें किसी खास काम के लिए चुन लिया है और हमें उस खास जीवन को खास तरीके से जीने की उत्साह करना चाहिए ।निज हित ,निज सुख के लिए तो जानवर भी प्रयास कर लेते है । जीवन की सार्थकता तो परहित में जीने से ही है । बधाई आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी कि आपकी कथा ने चिंतन को बडा ही विस्तार दिया है । सादर
Comment by TEJ VEER SINGH on July 21, 2015 at 3:41pm

आदरणीय  प्रतिभा जी,बहुत ही उमदा लघुकथा!अपना सिक्का किसी को भी खोटा नज़र नहीं आता!सासु जी के तेवर एक दम से बदल गये!हार्दिक बधाई!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 21, 2015 at 10:34am
बढ़िया लघुकथा, बधाई
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 20, 2015 at 10:27pm
आदरणीय प्रतिभा जी कथा में सास रूपी नारी की मानसिकता कितनी मुखर हो कर आयी है यही विशेषता इस कथा का लाजवाब पक्ष है। इस सुन्दर लघुकथा के लिये सादर बधाई स्वीकार करे।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 20, 2015 at 9:59pm

अपने बेटे में कमी कहाँ हजम होती है आसानी से ,बहु में कमी दुनिया भर में गाती फिर जायेंगी किन्तु बेटे की कमी हरगिज नहीं बतायेंगी ये डबल स्टैण्डर्ड वाली मानसिकता ही सास बहू के रिश्तों को बदनाम किये हुए है बहुत अच्छाई से आपने इसे लघुकथा के माध्यम से दर्शाया है बहुत अच्छी लघु कथा हार्दिक बधाई प्रतिभा जी| 

Comment by विनय कुमार on July 20, 2015 at 9:51pm

बढ़िया लघुकथा हुई है आदरणीया , बधाई .

Comment by Ram Ashery on July 20, 2015 at 9:21pm

आपके विचार अति उत्तम हैं सभी लोगों को अपनी सोच स्त्री के प्रति सहज रखना चाहिए क्योकि सब कुछ अपने हाथ में नहीं होता 

Comment by Omprakash Kshatriya on July 20, 2015 at 9:03pm

"क्या  चपड़  चपड़  बोले जा रही हो I  दूसरी  जगह  से  फिर से करवाउंगी  मैं  टेस्ट I  और  तुम ज्यादा मॉर्डन  बन रही हो ,  कुछ  लिहाज शर्म  है कि नहीं ?"......कथनी  में  अंतर व्यक्त करती बेहत्तर रचना .

बधाई आप को आ    pratibha pande जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 20, 2015 at 8:55pm

आदरणीया प्रतिभा जी, बढ़िया लघुकथा हुई है हार्दिक बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 20, 2015 at 8:36pm

कृपया शब्दों के मध्य इतना ज़्यादा गैप न दिया करें आ० प्रतिभा पाण्डेय जी।

कृपया ध्यान दे...

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