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घर  से  बाहर  जिसे  मैं ,

दर दर  ढूँढता  फिरा 

वो  बच्चा,

 मेरे  ही घर में  छिपकर 

मेरी  बौखलाहट पे ,

हँसता   रहा I

मै रहा  देहरियाँ  चूमता ,

मज्जिद  बुतखाने  की

मेरे दर पे बैठा वो ,

राह तकता  रहा 

मेरे  घर  लौट  आने की I

ढली  शाम ,  खाली   हाथ 

अब मैं  हूँ  लौट आया ,

किया  ढूँढने में  जिसे  

सारा  दिन जाया 

हाय , घर के अन्दर उसे

 मुस्कुराते पाया I

पर  अब थक  गया हूँ  

उसके साथ,

, कहाँ खेल  पाऊँगा 

बस  उसे  देखते  देखते

 यूं  ही सो  जाऊँगा I      

 मौलिक  व् अप्रकाशित  

 

 

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Comment

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Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 7:38pm

 आपकी  प्रतिक्रियाएं  सदा ही  उत्साहित  करती हैं ,  हार्दिक  आभार  आ० मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 2:12pm

बहुत ही भावपूर्ण रचना. अपने घर में ही है उसका वास और उसे ताउम्र यहाँ वहां ढूंढते रहे और जब तक पता चला बहुत देर हो गई..... चिर निंद्रा में सोने का समय आ गया. घर और बच्चे के प्रतीकों से बहुत गहन भावना शाब्दिक हुई है. प्रतीकों का सहज प्रयोग मुग्ध कर रहा है, रचना कहीं भी असहज नहीं हुई. पाठक तक रचना का सहज सम्प्रेषण ही इसकी बड़ी विशेषता है. इस बेहतरीन रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रतिभा जी 

Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 9:11am

सराहना  के  लिए  धन्यावाद  ज्योत्स्ना कपिल जी 

Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 9:09am

आ०  विनय  कुमार जी ,  रचना  की  सराहना  के लिए  तहे दिल से आभार 

Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 9:02am

मेरे  इस छोटे से खोये  बच्चे  को  आपने  पहचाना   , धन्यवाद  कांता रॉय जी 

Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 8:58am

आ०  मोहन सेठी जी ,  आपको  रचना  अच्छी  लगी  ,मेरा  सौभाग्य    आपका  हार्दिक  आभार 

Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 10:09pm
बहुत ही सुंदर एवम् भावपूर्ण रचना आ.प्रतिभा पाण्डेय जी।
Comment by विनय कुमार on July 15, 2015 at 8:09pm

बहुत सुन्दर कविता , ये तो खुशियां हैं जिन्हे हम दर दर ढूंढते हैं लेकिन मिलती अपने अंदर ही हैं | बधाई इस रचना के लिए..

Comment by kanta roy on July 15, 2015 at 5:40pm
बहुत खूब लिखा हैै आपने यह छोटा सा बच्चा ..... बधाई आपको इस सुंदरतम रचना के लिए आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 15, 2015 at 4:59pm

वाह बहुत सुंदर शब्द है गहरे भाव लिये .....न जाने कहाँ कहाँ ढूंडा और जब मिला तो वक़्त ही ना रहा  ....हार्दिक बधाई इस रचना के लिये ....सादर 

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