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ग़ज़ल-नूर- फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.

२१२२/२१२२/२१२/
मंज़िलों का जो पता दे जाएगा
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा दे जाएगा.
.
और थोड़ा फ़ासला दे जाएगा
ज़िंदगी की गर दुआ दे जाएगा.
.
दिल को सतरंगी छटा दे जाएगा
फिर धड़कने की अदा दे जाएगा.
.
ग़म हमें अब और क्या दे जाएगा
बस नया इक तज्रिबा दे जाएगा.
.
आएगा कोई पयम्बर फ़िर नया
फ़िर नया हम को ख़ुदा दे जाएगा.
.
जब वो सोचेगा हमारे वास्ते
फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.
.    
“नूर” बरसेगा ख़ुदा का एक दिन
मुश्किलों में रास्ता  दे जाएगा.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2015 at 1:37pm

और थोड़ा फ़ासला दे जाएगा 
ज़िंदगी की गर दुआ दे जाएगा....कमाल की सोच 

ग़म हमें अब और क्या दे जाएगा 
बस नया इक तज्रिबा दे जाएगा....पूरी तरह सहमत हूँ 

इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई आदरणीय नूर जी 
.


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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 1, 2015 at 2:47pm

नूर से मत मांगिये वो फिर हमें 

खूबसूरत सी कता दे जायेगा 

बढ़िया ग़ज़ल .... शेर दर शेर दाद हाज़िर है 

Comment by shree suneel on July 1, 2015 at 8:10am
आएगा कोई पयम्बर फ़िर नया
फ़िर नया हम को ख़ुदा दे जाएगा... उम्दा. . उम्दा
ख़ूबसूरत ग़ज़ल.. बधाई हो आदरणीय निलेश जी.

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Comment by rajesh kumari on June 30, 2015 at 9:30am

बहुत खूब अच्छी ग़ज़ल हुई बहुत बहुत बधाई नीलेश जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 29, 2015 at 8:25pm

नूर भाई

आप कितनी सहजता से गजल कहते हैं  लगता ही नहीं कि किसी मिसरे के लिये  कोई कोशिश की गयी हो . छोटे -छोटे  साधारण से वाक्य

बड़ी मकबूलियत है आप में ---- अल्लाह करे जोरे कलम और ज्यादा

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 29, 2015 at 6:18pm

बहुत खूब नूर साहब, दाद कुबूल करें

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 29, 2015 at 3:45pm
सुन्दर
Comment by saalim sheikh on June 29, 2015 at 1:07pm

बहुत उम्दा ग़ज़ल! बधाई!

Comment by मोहन बेगोवाल on June 28, 2015 at 10:18pm

    बेहतरीन ग़ज़ल जिस में चार मतले कहे गए  -बधाई हो 

Comment by मनोज अहसास on June 28, 2015 at 8:09pm
बहुत खूबसूरत
जैसे दुआ है कोई
सादर

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