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घर का लुक (लघुकथा)// शुभ्रांशु पाण्डेय

“अरे गुप्ता जी, ये क्या कर रहे हैं आप ?”

“बेटे के स्कूल में पर्यावरण दिवस पर एक नाटक है.. और उसको एक पेड़ बनना है.. इसीलिये ये डालियाँ काट-काट कर उसे दे रहा हूँ.”

“आपने तो इसे पूरा ही काट डाला.. अब तो ये कायदे का पेड़ बनने से रहा. अभी-अभी तो वन विभाग वालों ने इसे लगाया था..”

“भाईजी, सामने से घर का लुक भी खराब कर रहा था, इसी बहाने इसका काम तमाम करूँ..” - बुदबुदाते हुये गुप्ता जी के हाथ और तेज चलने लगे. 

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 9, 2015 at 2:28pm

आदरणीय शुभंशु जी ..आइना दिखाती इस शानदार लघुकथा के लिए ह्रदय से बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 6:21pm

आ. शुभ्रांशु भाई , ऐसा लगा जैस एकोई ज़बन को काट रहा है , ता ति वो बोलना सीख सके । आपकी कथा बहुत अच्छी लगी । हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 7, 2015 at 5:53am

अच्छा व्यंग है ...उम्दा 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2015 at 3:12am

इस जागरूकता के समय पर भी, बे-बजह कि आधुनिकता भारी पड़ रही है. बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय शुभ्रांशु जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by maharshi tripathi on June 6, 2015 at 7:46pm

सुन्दर,कम शब्दों में सही कटाक्ष आ. Shubhranshu Pandey जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2015 at 7:20pm

पर्यावरण पर अच्छी लघु कथा ,घर का लुक  जरूरी है जब आक्सीजन ही नहीं रहेगी घर के लुक को क्या चाटेंगे ?अभी जागरूकता की बहुत जरूरत है इस लक्ष्य को सार्थक करती प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई शुभ्रांशु जी| 

Comment by विनय कुमार on June 6, 2015 at 6:48pm

दिवस विशेष की अच्छी प्रस्तुति , आपसे और बेहतर की उम्मीद रहती है आदरणीय..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 6, 2015 at 1:01pm

अच्छी कथा है  प्रिय शुभ्रान्शु जी

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 6, 2015 at 8:46am

पर्यावरण दिवस पर अच्छी प्रस्तुति हुयी है,आ० शुभ्रांशु जी,हार्दिक बधाई!

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