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"अरे ताऊ इलेक्शन आ गए हैं, इस बार वोट किस को दे रहे हो ?"
"अरे हमें तो अभी ये ही नहीं पता कि इस बार ससुरा खड़ा कौन कौन है।"
"एक तो वही कुर्सी पार्टी वाला है।"
"अरे वो चोर ? छोडो, साले पूरा देश लूट कर खा गये।"
"नई पार्टी वाला भी खड़ा है।" 
"कौन ? वो जो आपस में लोगों को लड़ाता फिरता है? दफ़ा करो उसको।"
"एक नीली पार्टी वाली भी है न।"
"उसको वोट दे दिया तो पीछे वाली बस्ती सर पर मूतेगी हमारे।"
"तो फिर कामरेडों को वोट किया जाए?"
"कौन वो ज़िंदाबाद मुर्दाबाद वाले? अरे वो तो होम्योपैथी की दवाई जैसे हैं - न कोई फायदा न नुकसान।"
"तो आख़िर वोट डालोगे किस को ?"
"हम तो अपनी जात वाले को ही डालेंगे, वोट ख़राब थोड़े न करना है।"

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 3, 2015 at 10:49am

बहुत सटीक ...आज का वोटर और राजनीती ...बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिये ...सादर 

Comment by saras darbari on June 3, 2015 at 10:09am

बहुत करारा कटाक्ष आदरणीय ...ढेरों  बधाई  इस सशक्त अनावरण के लिए  

Comment by Archana Tripathi on June 3, 2015 at 1:22am
वोट अपनी जात वालों को ,बेहतरीन रचना बधाई आपको आ योगराज प्रभाकर जी ।
Comment by maharshi tripathi on June 2, 2015 at 9:55pm

हम तो अपनी जात वाले को ही डालेंगे, वोट ख़राब थोड़े न करना है।",,,आखिरी पंक्ति इस लघुकथा का सारांश है ,,,बहुत बढ़िया आ. योगराज प्रभाकर सर |

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 2, 2015 at 9:42pm

वाह! आ० योगराज सर! साष्टांग प्रणाम!

"कौन वो ज़िंदाबाद मुर्दाबाद वाले? अरे वो तो होम्योपैथी की दवाई जैसे हैं - न कोई फायदा न नुकसान।'' 

लघुकथा में माँइक्रोस्कोपिक दृष्टी की बात पढ़ी थी,पर यह कथा तो माइक्रोफोनिक श्रवण और अनुभव का बेहतरीन उदा० है! नतमस्तक !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 2, 2015 at 9:30pm

गजब  ----गजब

अनुज आपने कमाल  कर दिया -------------- भारत भाग्य विधाता  से परिचित कराया . इस रचना हेतु आपको  शतशः बधाई . सादर .

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 2, 2015 at 7:31pm

बहुत सटीक करारा व्यंग है. ऐसे भाग्य विधाता और ऐसे मतदाता. दुनिया कहाँ से कहाँ पहुंच गई, आदमी की बेइंतेहा कीमत है, हुनर कि हर जगह आदमी से ऊपर कीमत है। पर उनकी क्या कहिये जो एक ही हथियार से देश निर्माण में लगे हैं , और लगे रहेंगे , दुनिया की अंत तक.
बहुत बहुत बधाई इस लघु - कथा पर आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, सादर।

Comment by Sudhir Dwivedi on June 2, 2015 at 3:47pm

नजर गडाए बस पढ़ रहा हूँ सम्वादों की वाचालता . हर सम्वाद एक नवीन परिभाषा रचने को आतुर ज्यूँ .. हर कथा हर दफा नया ही सिखाती रही है मुझे ..सादर 

Comment by विनय कुमार on June 2, 2015 at 1:25pm

// वोट ख़राब थोड़े ही करना है // , सिर्फ ये ताऊ ही नहीं , अधिकांश पढ़े लिखे और बुद्धिजीवी भी अपना वोट ख़राब नहीं करते और अपनी जाति के सुयोग्य(?) उम्मीदवार को ही देते हैं | पिछले एक चुनाव ने कुछ आशा की किरण जगाई है , देखना है बाकि प्रदेशों में भी लोग इस जात पात से उठकर सोचते हैं कि नहीं | बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन लघुकथा पर आदरणीय योगराज सर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2015 at 12:41pm

ना वादों ना बात पर, बटन दबेगा जात पर ! 

जय हो..

इस प्रश्न पर कि ’भारत-भाग्य-विधाताओं’ को इस लाचारी निर्लिप्तता की दशा में झोंक देने का जिम्मेवार कौन है, यह लघुकथा कितनी महीनी से अपनी बातें कहती है ! 

इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय योगराजभाईजी.

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