For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-नूर: जिस्म का क्या हुआ ख़बर न हुई.

२१२२/१२१२/२२ (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)

ज़िन्दगी हाल का सफ़र न हुई
जैसे इक रात की सहर न हुई.
.

तेरी जानिब मैं देखता ही रहा
मेरी जानिब तेरी नज़र न हुई.
.
फ़ायदा क्या हुआ ग़ज़ल होकर
तर्जुमानी तेरी अगर न हुई.
.
पहले पहले हया का पर्दा रहा
फिर ज़रा भी अगर मगर न हुई .
.
दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी
याद तेरी इधर उधर न हुई.
.
ख़ुद को भूला तुझे भुलाने में
कोई तरकीब कारगर न हुई.
.
‘नूर’ बिखरा था याद है मुझको
जिस्म का क्या हुआ ख़बर न हुई.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 773

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 21, 2015 at 11:14am
जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,पुख़्ता, मुकम्मल, ख़ूबसूरत,कामयाब ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

"दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी
तेरी यादें इधर उधर न हुई "

सानी मिसरा इस तरह कर लें तो ठीक रहेगा :-

"याद तेरी इधर उधर न हुई"

क्यूँकि "याँदें" बहुवचन है,और रदीफ़ एक वचन है |
Comment by H. S. Yadava on April 21, 2015 at 7:53am

आत्मा के  तल   पर प्रेम!!

बड़ी सिद्दत  से  दी गई आवाज (शब्द).


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 20, 2015 at 9:26pm

'खफीफ मुसद्दस मखबून मक्तुअ' बह्र पर पर कसी हुई बहुत सुन्दर ग़ज़ल  हुई नीलेश जी, दिल से बधाई 

तेरी जानिब मैं देखता ही रहा 
मेरी जानिब तेरी नज़र न हुई.-----क्या बात 

फ़ायदा क्या हुआ ग़ज़ल होकर 
तर्जुमानी तेरी अगर न हुई.---शानदार वाह्ह्ह 
.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 20, 2015 at 8:55pm

ख़ुद को भूला तुझे भुलाने में
कोई तरकीब कारगर न हुई.   वाह! वाह!

सुन्दर गजल पर बधाई आदरणीय!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 8:25pm

शुक्रिया आ. दिनेश जी ...आपने महीन त्रुटी की ओर ध्यान दिलाया ..दरअसल ये समस्या हम मराठी भाषियों के साथ सहती ही है.
आप सबके सानिध्य में सुधार हो सकेगा.
 

दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी 
तेरी यादें इधर उधर न हुई....इस शेर को अब यूँ पढ़ा जाए 
.
दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी 
याद तेरी इधर उधर न हुई.
.
सादर 

Comment by दिनेश कुमार on April 20, 2015 at 7:38pm
बेहतरीन मकता , वाह वाह
Comment by दिनेश कुमार on April 20, 2015 at 7:30pm
Excellent....दाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय भाई निलेश जी।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 7:25pm

शुक्रिया आ. डॉ विजय शंकर जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 20, 2015 at 7:16pm
पहले पहले हया का पर्दा रहा
फिर ज़रा भी अगर मगर न हुई ॥
वाह ! क्या बात है , बहुत बहुत बधाई, आदरणीय नीलेश नूर जी , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"गांव शहर और ज़िन्दगीः दोहे धीमे-धीमे चल रही, ज़िन्दगी अभी गांव। सुबह रही थी खेत में, शाम चली है…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"सादर अभिवादन "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"स्वागतम"
yesterday
Samar kabeer replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"बहुत बहुत शुक्रिय: जनाब अमीरुद्दीन भाई आपकी महब्बतों का किन अल्फ़ाज़ में शुक्रिय:  अदा…"
Thursday
Samar kabeer replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"बहुत धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी, सलामत रहें ।"
Thursday
Samar kabeer replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"बहुत बहुत धन्यवाद भाई अशोक रक्ताले जी, सलामत रहें ।"
Thursday
Samar kabeer commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"//मुहतरम समर कबीर साहिब के यौम-ए-पैदाइश के अवसर पर परिमार्जन करके रचना को उस्ताद-ए-मुहतरम को नज़्र…"
Thursday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"चूंकि मुहतरम समर कबीर साहिब और अन्य सम्मानित गुणीजनों ने ग़ज़ल में शिल्पबद्ध त्रुटियों की ओर मेरा…"
Sep 9

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service