For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- आरज़ू दिल की दिल में दबी रह गई ....

212-212-212-212

आरज़ू दिल की दिल में दबी रह गई
ज़िन्दगी में मेरी कुछ कमी रह गई

ज़ख़्म नासूर मेरे सभी बन गए
दिल में अब आँसुओं की नदी रह गई

ज़ेहन के आईनों पर था पर्दा पड़ा
मुझ से कमज़ोरी मेरी छुपी रह गई

आस्तीनों में ख़ंजर छुपाए हुए
दोस्ती तो फ़क़त नाम की रह गई

बागबाँ ही चमन का है दुश्मन बना
सहमी सहमी यहाँ हर कली रह गई

अब न चिड़ियों का घर में बसेरा रहा
चहचहाहट की पीछे सदी रह गई

अब के बेमौसमी जो हुईं बारिशें
सब किसानों की आशा धरी रह गई

छोड़ कर जब बुढ़ापे में बेटा गया
बूढ़ी आँखों में बस बेबसी रह गई

हम सभी एक ईश्वर की सन्तान है
पुस्तकों में इबारत लिखी रह गई

मौत ने जब दबोचा तो इन्सान की
सारी तैय्यारी ठिठकी ठगी रह गई

-- दिनेश कुमार १५/०३/२०१५

( मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 18, 2015 at 12:04am
बधाई हो भाई अच्छी गजल कह पाये हो
Comment by gumnaam pithoragarhi on March 17, 2015 at 8:05pm
हम सभी एक ईश्वर की सन्तान है
पुस्तकों में इबारत लिखी रह गई

मौत ने जब दबोचा तो इन्सान की
सारी तैय्यारी ठिठकी ठगी रह गई

आस्तीनों में ख़ंजर छुपाए हुए
दोस्ती तो फ़क़त नाम की रह गई

दिनेश भाई जी , अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 16, 2015 at 9:56pm

अब न चिड़ियों का घर में बसेरा रहा
चहचहाहट की पीछे सदी रह गई

अब के बेमौसमी जो हुईं बारिशें
सब किसानों की आशा धरी रह गई

छोड़ कर जब बुढ़ापे में बेटा गया
बूढ़ी आँखों में बस बेबसी रह गई

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई दिनेश भैय्या ये शेर तो बहुत ही ख़ास लगे 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:35pm

आ० दिनेश जी

अब न चिड़ियों का घर में बसेरा रहा
चहचहाहट की पीछे सदी रह गई

छोड़ कर जब बुढ़ापे में बेटा गया
बूढ़ी आँखों में बस बेबसी रह गई------------------------बेहतरीन . सुंदर .

Comment by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 3:32pm

Aadarniya Denesh Kumar Ji,

Bahut sundar rachna ke liye dili mubarakbad. Sahi aayana dikhaya aapne.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 16, 2015 at 1:21pm

आदरणीय दिनेश भाई , अच्छी गज़ल हुई है , आपको  हार्दिक बधाई ।

छोड़ कर जब बुढ़ापे में बेटा गया
बूढ़ी आँखों में बस बेबसी रह गई    ----- बहुत खूब , आदरनीय ! दिली बधाई इस शे र के लिये ।

Comment by umesh katara on March 16, 2015 at 8:30am

छोड़ कर जब बुढ़ापे में बेटा गया
बूढ़ी आँखों में बस बेबसी रह गई---------वाहहहहहहहहहहह जनाब वाहहहहहहहहहहह

Comment by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 3:42am

आदरणीय दिनेश जी, सुन्दर ग़ज़ल है ,बधाई आपको !

Comment by दिनेश कुमार on March 15, 2015 at 11:53pm
ध्यान दिलाने के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ भाई मिथिलेश जी। मैंने इस मिसरे पर कोशिश की थी -- मेरी हसरत दबी की दबी रह गई...यह तरही मिसरा दिया गया था। मैं कल तक अपना मतला बदल दूँगा आदरणीय भाई। पुनः शुक्रिया। कल आता हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 15, 2015 at 11:34pm
आदरणीय दिनेश भाई बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
मतला किसी ग़ज़ल के मतले को छू रहा है। किसी एलबम में सुनी थी वो ग़ज़ल। कृपया मतला पर पुनर्विचार निवेदित है। मतला कुछ यूं है-
ये कसक दिल की दिल में दबी रह गई
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गई।
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
5 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
5 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
5 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service