For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरी मुस्कान तेरी शान तेरा ये जलवा

२१२२  ११२२   १२२२   २२/११२

तेरी मुस्कान तेरी शान तेरा ये जलवा

काजू किशमिश से भरा जैसे बादामी हलवा

तू न होता तो भला कैसे दिल से दिल मिलते

ऐ हंसी गुल किसी जूही से मुझे  भी मिलवा

तेरी खुशबू में छुपा धड़कने दूंगा दिल की

बात जैसे भी बने बात तो मेरी बनवा

फायले दिल में हैं उनके तमामों नाम लिखे

फैसला होने से पहले मेरी अर्जी लगवा

उसके पहलू में जियूं आरजू है इतने सी

उसके सीने में मेरा प्यार जगा दे मितवा

आखरी है ये मेरा फैसला तू भी सुन ले

गर जो उसका न हुआ पहनूं मैं कपडे भगवा 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 985

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 4, 2015 at 5:04pm

आदरणीय आशुतोष भाई , अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ 

Comment by Pari M Shlok on March 4, 2015 at 1:40pm
उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई
Comment by Pari M Shlok on March 4, 2015 at 1:40pm
उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई
Comment by Shyam Narain Verma on March 4, 2015 at 9:58am
इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 
Comment by umesh katara on March 3, 2015 at 9:19pm

वाह वाह वाह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 3, 2015 at 9:13pm

आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी सुन्दर अशआर हुए है .. हार्दिक बधाई... आदरणीय गुमनाम सर जी की बात पर ध्यान जरुर दीजियेगा.

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 3, 2015 at 8:06pm

आशुतोष जी ग़ज़ल अच्छी कही है पर मुझे काफिये थोडा सा गलत लग रहे है.............

Comment by somesh kumar on March 3, 2015 at 7:38pm

हंसी -दिल्लगी -मिन्नत-ख्वाहिश -पूर्ण समपर्ण के भावों की यात्रा करती गेय और आनन्ददायनी गज़ल 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 3, 2015 at 7:26pm

तू न होता तो भला कैसे दिल से दिल मिलते

ऐ हंसी गुल किसी जूही से मुझे  भी मिलवा

तेरी खुशबू में छुपा धड़कने दूंगा दिल की

बात जैसे भी बने बात तो मेरी बनवा--------------- आदरणीय आशुतोष जी  i मैंने आपकी  गजल् तरन्नुम  में गुनगुनायी  i बहुत मजा आया  i सादर i

Comment by Hari Prakash Dubey on March 3, 2015 at 5:49pm

आखरी है ये मेरा फैसला तू भी सुन ले

गर जो उसका न हुआ पहनूं मैं कपडे भगवा ...वाह , डॉक्टर आशुतोष  जी ,सुन्दर ग़ज़ल बधाई आपको !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"सीख गये - गजल ***** जब से हम भी पाप कमाना सीख गये गंगा  जी  में  खूब …"
3 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
10 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
21 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service