For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कितना कम चाहिए...

कितना कम चाहिए 
नून, तेल, गुड के अलावा 
फिर भी मिल नही पाता 
मुंह बाये आ खड़ी होती है 
लाचारी सी हारी-बीमारी 
डागदर-दवाई में चुक जाती है 
जतन से जोड़ी रकम 
जबकि हमारी इच्छाएं है कितनी कम...

कितना कम चाहिए
रोटी और कपड़े के अलावा 
फिर भी मिल नही पाता 
आ धमकता वन-करमचारी
थाने का सिपाही 
या अदालत का सम्मन 
और हम बेमन 
फंसते जाते इतना 
कि छूटते इनसे बीत जाती उमर
दीखती न मुक्ति की कोई डगर.....

(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 505

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 1, 2015 at 2:09pm

बहुत सघन पंक्तियाँ. एक आम आदमी के संघर्ष को सार्थक करती, रचना. बधाई आदरणीय अनवर साहब

Comment by somesh kumar on March 1, 2015 at 11:57am

निसंदेह मानव-संघर्ष को बहुत सटीकता से शब्द दिए हैं आपने पर कई जगह टंकन त्रुटी दिखाई दे रही है हो सकता है डागदर कहना ज्यादा सही हो पर कई जगह चन्द्रबिन्दु बिंदु से प्रतिस्थापित लग रहे हैं |कृपया देख लें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 1, 2015 at 7:25am
आम आदमी के संघर्ष को पूरी सघनता से अभिव्यक्त करती सार्थक रचना की प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई।
Comment by Hari Prakash Dubey on February 28, 2015 at 9:54am

आदरणीय अनवर सुहैल जी, बहुत सुन्दर रचना  , बहुत बहुत बधाई, सादर।

Comment by maharshi tripathi on February 27, 2015 at 4:46pm

बहुत सुन्दर ,,,कितना कम चाहिए
रोटी और कपड़े के अलावा 
फिर भी मिल नही पाता 
आ धमकता वन-करमचारी
थाने का सिपाही 
या अदालत का सम्मन 
और हम बेमन 
फंसते जाते इतना 
कि छूटते इनसे बीत जाती उमर
दीखती न मुक्ति की कोई डगर....,,,सच है कोई कितने ऊँचे पोस्ट पर क्यूँ न हो,,,आवश्यकताओं  की पूर्ति कभी नही हो सकती |

आपको ,,हार्दिक बधाई|

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 27, 2015 at 1:04pm

आ० मित्र

इतने  कम शब्दों में आपने मनुष्य के वैवश्य  की पूरी दास्ताँ कह डाली i सादर  i

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 27, 2015 at 11:53am

प्रणाम! आदरणीय,पूरी कविता आम आदमी की जिंदगी का कटु सत्य ब्यान करती हुई... लाजवाब कविता ...कब मिलेगी मुक्ति की कोई डगर..कैसे मिलेगी..इस प्रश्न उत्तर अधुरा ही रह गया...शायद आपकी अगली कविता में मिल जाये..प्रश्न करने के दुश्साहस के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ..आदरणीय प्रश्न मन में रह गया सो आग्रह किया है!!

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 27, 2015 at 10:59am
बस यही तो मजबूरी है,
हमको उनसे बहुत कम चाहिए ,
उनको हमसे बहुत कछ चाहिए ,
सच कहें तो क्या क्या नहीं चाहिए ॥
तिस पर से उनका दावा है कि क्या ,
क्या नहीं कर दिया उन्होंने हमारे लिए ॥
आदरणीय अनवर सुहैल जी, बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ , बहुत बहुत बधाई, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Sunday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service