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ये कैसी नियति

तुम चलाओ गैंती-फावड़ा 
काटो पत्थर, बनाओ नाली 
दिन है तो सूरज को घड़ी मानो 
और रात है तो गिनते रहो एक-एक प्रहर
कुत्ते कब भौंके 
सियार कब चीखे
मुर्गे ने कब बांग दी 
यही है तुम्हारी नियति....

तुम चलाओ छेनी-हथौड़ी 
तुम्हारे लिए बन नहीं सकतीं 
ऐसी यांत्रिक घड़ियाँ 
जिनमे काम के घंटों का हिसाब हो 
और आराम के पल का ज़िक्र हो...

तुम लिखो कविता-कहानी 
फट जाए चाहे 
माथे की उभरी नसें 
फूट जाए ललाई आँखें 
लेकिन होना चाहिए ऐसी अभिव्यक्ति 
कि एकदम भोगा हुआ यथार्थ...

तुम्हे देखकर क्यों है ऐसा लगता 
कि कितनी बेताबी से तुम 
करते आ रहे हो प्रतीक्षा 
अपने रिटायर्मेंट की 
या मृत्यु की...

.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on March 15, 2015 at 8:30pm

आदरणीय अनवर सुहैलजी, एक अरसे बाद आपकी कोई सशक्त रचना पढ़ी है. दिल से बधाई स्वीकार करें.  
हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 26, 2015 at 5:01pm

तुम चलाओ गैंती-फावड़ा 
काटो पत्थर, बनाओ नाली 
दिन है तो सूरज को घड़ी मानो 
और रात है तो गिनते रहो एक-एक प्रहर
कुत्ते कब भौंके 
सियार कब चीखे
मुर्गे ने कब बांग दी 
यही है तुम्हारी नियति....

तुम चलाओ छेनी-हथौड़ी 
तुम्हारे लिए बन नहीं सकतीं 
ऐसी यांत्रिक घड़ियाँ 
जिनमे काम के घंटों का हिसाब हो 
और आराम के पल का ज़िक्र हो...

बहुत दिनों बाद इतनी सार्थक कविता पढ़ी...मजलूमों को सन्देश  देती और उनकी आवाज़ उठाती..आदरणीय अनवर जी प्रणाम स्वीकार करें!

Comment by anwar suhail on February 18, 2015 at 7:35pm

शुक्रिया परम-स्नेहीजन...मेरे विचार आप सभी को पसंद आये...एक बार फिर शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 18, 2015 at 12:05pm

आदरणीय अनवर सुहेल जी ,बहुत गूढ़ बात कहती बेहद सुन्दर प्रस्तुति हुई  है , बधाई l

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 18, 2015 at 11:07am
संरचना में लगे शिल्पी रिटायरमेंट या मृत्यु भी जानते हैं, उसकी प्रतीक्षा भी करते हैं ?
रोचक, बधाई ,सादर।
Comment by Pari M Shlok on February 18, 2015 at 10:17am
तुम लिखो कविता-कहानी
फट जाए चाहे
माथे की उभरी नसें
फूट जाए ललाई आँखें
लेकिन होना चाहिए ऐसी अभिव्यक्ति
कि एकदम भोगा हुआ यथार्थ...

बेहद सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
Comment by Hari Prakash Dubey on February 17, 2015 at 11:34am

बहुत गूढ़ बात कही है आदरणीय अनवर सुहेल जी

//तुम्हे देखकर क्यों है ऐसा लगता 
कि कितनी बेताबी से तुम 
करते आ रहे हो प्रतीक्षा 
अपने रिटायर्मेंट की 
या मृत्यु की// सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकार करें ! सादर 

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