For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल--१२२२--१२२२--१२२२--१२२२...मुझे मालूम है यारों

मेरा देहात क्यूँ रोटी से भी महरूम है यारों

कहाँ अटका है रिज़्के-हक़ मुझे मालूम है यारों

 

उठा पेमेंट उसका क्यूँ नरेगा की मज़ूरी से

घसीटाराम तो दो साल से मरहूम है यारों

करें किससे शिकायत हम , कहाँ जायें गिला लेकर

व्यवस्था हो गई ज़ालिम बशर मज़लूम है यारों

सिखाओ मत इसे बातें सियासत की विषैली तुम

मेरा देहात का दिल तो बड़ा मासूम है यारों

लिए फिरता है वो कानून अपनी जेब में हरदम

जो कायम कायदों पर है बशर वो बूम है यारों       बूम = उल्लू \मूर्ख

 

सियासत ने कई खाँचे कई हिस्से बना डाले

लहू का रंग तो इक है मगर मक़्सूम  है यारों      मक्सूम = विभाजित

 

उफ़ुक ओझल हुआ ‘खुरशीद’ भी जाने कहाँ गायब

उजाला गुम अँधेरे ने मचाई धूम है यारों

मौलिक व अप्रकाशित 

 

Views: 1273

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 11:42pm

आदरणीय खुरशीद साहब शानदार रचना है आनंद आ गया

उठा पेमेंट उसका क्यूँ नरेगा की मज़ूरी से

घसीटाराम तो दो साल से मरहूम है यारों...........वाह

सिखाओ मत इसे बातें सियासत की विषैली तुम

मेरा देहात का दिल तो बड़ा मासूम है यारों.......बहुत सुन्दर ! सादर 

Comment by ajay sharma on February 25, 2015 at 10:49pm

speechless......again.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 9:14pm

वाह वाह आदरणीय खुर्शीद सर, कई प्रासंगिक सवालों की ओर इशारा करती हुई बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं. 

ये अशआर तो बस कमाल है- 

मेरा देहात क्यूँ रोटी से भी महरूम है यारों

कहाँ अटका है रिज़्के-हक़ मुझे मालूम है यारों

 

उठा पेमेंट उसका क्यूँ नरेगा की मज़ूरी से

घसीटाराम तो दो साल से मरहूम है यारों

सियासत ने कई खाँचे कई हिस्से बना डाले

लहू का रंग तो इक है मगर मक़्सूम  है यारों 

करें किससे शिकायत हम , कहाँ जायें गिला लेकर

व्यवस्था हो गई ज़ालिम बशर मज़लूम है यारों..... सर ज़ालिम, बशर, मज़लूम जैसे लफ़्ज़ों के साथ व्यवस्था की बजाय निज़ामत ही सही लगता. वैसे लगता है आपने व्यवस्था का प्रयोग जानबूझकर किया है. 

सिखाओ मत इसे बातें सियासत की विषैली तुम

मेरा देहात का दिल तो बड़ा मासूम है यारों..... मेरा देहात के स्थान पर मेरे देहात का दिल तो बड़ा मासूम है यारों.....

पुनः इस बेहतरीन प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई 

Comment by umesh katara on February 25, 2015 at 8:48pm

शेर दर शेर वाह वाह सर क्या गजल है वाहहहहहहह

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 25, 2015 at 7:43pm
उठा पेमेंट उसका क्यूँ नरेगा की मज़ूरी से

घसीटाराम तो दो साल से मरहूम है यारों

वाह सर जी बहुत खूब ग़ज़ल कही है बधाई
Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 7:05pm

आदरणीय खुर्शीद जी आपकी इस पूरी खूबसूरत ग़ज़ल के साथ खासतौर पर इस शे'र के लिए हार्दिक हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं
''सियासत ने कई खाँचे कई हिस्से बना डाले
लहू का रंग तो इक है मगर मक़्सूम है यारों '' .... वाह वाह और वाह बस

Comment by Nirmal Nadeem on February 25, 2015 at 5:48pm

Bahut achchhi ghazal kahi hai janab. Mubarak ho. daad hazir hai.

Comment by maharshi tripathi on February 25, 2015 at 5:42pm

आ. खुर्शीद जी इस सुन्दर गजल पर बधाई स्वीकार करें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2015 at 5:27pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है !! हार्दिक बधाइयाँ ॥

सिखाओ मत इसे बातें सियासत की विषैली तुम

मेरा देहात का दिल तो बड़ा मासूम है यारों  ---  अति सुन्दर !! दिली बधाइयाँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 4:07pm

उफ़ुक ओझल हुआ ‘खुरशीद’ भी जाने कहाँ गायब

उजाला गुम अँधेरे ने मचाई धूम है यारो

आ 0 सारी गजल को आपने मक्ते में निचोड़ दिया है i अति सुन्दर i  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
10 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
11 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
11 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service