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ग़ज़ल -- तू मेरे लिए है न अजनबी ( बराए इस्लाह )

न तो मंज़िलों की तलाश है, न ही रास्तों की तलाश है
जो सँवार दें मेरी रहगुज़र , उन्हीं रहबरों की तलाश है

तू मुआफ़ करना मुझे ख़ुदा, मुझे मस्जिदों से न वास्ता
मेरे ज़ेहन में तो हैं तितलियाँ, मुझे ख़ुशबुओं की तलाश है

मेरी ख़्वाहिशें हैं दबी दबी, मेरी ज़िन्दगी है बुझी बुझी
मेरा इश्क़ आब-ए-हयात अब, मुझे जन्नतों की तलाश है

तू मेरे लिए है न अजनबी, मैं तेरे लिए हूँ न अजनबी
है हमारे बीच जो राब्ता, उसे क़ुर्बतों की तलाश है

कोई पास मेरे भी बैठता, मेरे दर्द-ओ-ग़म कोई बाँटता
नहीं इस जहाँ में कोई मेरा, मुझे दोस्तों की तलाश है

मेरे ख़्वाब राख हैं हो चुके, मेरी चाह जीने की कम हुई
जो उबार लें मुझे अब ज़रा, उन्हीं हौसलों की तलाश है

मेरे दाग़-ए-दिल-ओ-जिगर को अब, सर-ए-बज़्म लोग हैं छेड़ते
मैं सुकूँन-ए-दिल को हूँ ढ़ूँढ़ता, मुझे मरहमों की तलाश है

मैं बयान अपना हूँ दे चुका, नहीं पास कहने को कुछ बचा
वो बरी करें या कि दें सज़ा, मुझे फैसलों की तलाश है

कभी वाइज़ों से मिला नहीं, कोई काम उनसे पड़ा नहीं
मुझे शौक दुख़्तरे रज़ का है, मुझे मैकदों की तलाश है

मुझे आज पढ़नी है इक ग़ज़ल, जो हर इक नज़र में हो लाजवाब
है रदीफ़ मुझको दिया हुआ, मुझे क़ाफ़ियों की तलाश है


-- दिनेश कुमार २३/०२/२०१५

( मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by दिनेश कुमार on February 23, 2015 at 8:36pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय भाई khursheed khairadi जी। हार्दिक आभार आप का हौसला अफजाई के लिए।
Comment by दिनेश कुमार on February 23, 2015 at 8:34pm
शुक्रिया pratibha tripathi जी, हौसला अफजाई के लिए आभार।
Comment by maharshi tripathi on February 23, 2015 at 5:28pm

आ. दिनेश कुमार जी मन को छूने वाली इस अच्छी गजल पर आपको हार्दिक बधाई |


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Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2015 at 3:07pm

क्या बात है ! दिनेश भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है इस कठिन बह्र में ॥

न तो रास्तों की तलाश है, न ही मन्ज़िलों की तलाश है
जो सँवार दें मेरी रहगुज़र , उन्हीं रहबरों की तलाश है

मुझे आज पढ़नी है इक ग़ज़ल, जो हर इक नज़र में हो लाजवाब
है रदीफ़ मुझको दिया हुआ, मुझे क़ाफ़ियों की तलाश है   -- बहुत खूब सूरत शे र हुये हैं । बधाई आदरणीय ॥

है हमारे बीच जो राब्ता   ----- ये शेर भी बढिया है पर  राब्ता को 212 नहीं पढ सकते , मेरे खयाल से वास्ता कर लेना चहिये , या अस्ल हर्फ शायद राबिता है , अगर ऐसा है ति यही लिख लें ॥ जैसा आप उचित समझें ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 23, 2015 at 2:27pm

दिनेश जी

क्या उम्दा गजल लेकर आये है  i मोटी पिरोया हुई आपने i गुनीजन आपकी अनुशंसा करें i सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 23, 2015 at 10:53am
आदरणीय दिनेश कुमार जी, बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल , बधाई हेतु , सादर.
Comment by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 10:44am

कभी वाइज़ों से मिला नहीं, कोई काम उनसे पड़ा नहीं
मुझे शौक दुख़्तरे रज़ का है, मुझे मैकदों की तलाश है

मुझे आज पढ़नी है इक ग़ज़ल, जो हर इक नज़र में हो लाजवाब
है रदीफ़ मुझको दिया हुआ, मुझे क़ाफ़ियों की तलाश है

उम्दा ग़ज़ल हुई है आदरणीय दिनेश जी ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें |सादर 

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